एमिटी विश्वविद्यालय में सतत भविष्य एवं जलवायु परिवर्तन पर वेबिनार का आयोजन






- एमिटी विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के मध्य समझौता पर हुए हस्ताक्षर।


नोयडा।उ.प्र.

एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ एनवायरमेंटल साइंसेस और एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ एनवायरमेंटल टाॅक्सीकोलाॅजी, सेफ्टी एंड मैनेजमेंट द्वारा एमिटी के ग्लोबल रिर्सच हब के तत्वाधान में ‘‘ सतत भविष्य एवं जलवायु परिवर्तन’’ विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का शुभारंभ यूनाईटेड नेशनस के एस्सीटेंट सेक्रेटरी - जनरल  एवं प्रमुख श्री सत्या एस त्रिपाठी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री जिग्मेट तकपा, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के एक्जीक्यूटिव निदेशक मेजर जनरल एम के बिंडल, एमिटी शिक्षण समूह के संस्थापक अध्यक्ष डा अशोक कुमार चौहान, जीआईजेड के जलवायु परिवर्तन समूह के तकनीकी विशेषज्ञ डा (श्रीमती) विजेता रात्तानी, न्यूयार्क के सिटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रो निक क्राकउर, यूथ लैब और इनोपी के संस्थापक एंड सीईओ डा अजय झा, और ग्रुप एडिशनल प्रो वाइस चांसलर (आर एंड डी ) डा तनु जिंदल द्वारा किया गया। इस वेबिनार में एमिटी विश्वविद्यालय एवं संस्थान और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) के मध्य समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया गया।


यूनाईटेड नेशनल के एस्सीटेंट सेक्रेटरी - जनरल एवं प्रमुख श्री सत्या एस त्रिपाठी ने वेबिनार में संबोधित करते हुए वैश्विक जलवायु परिवर्तन और यह मानव के व्यवहार का परिणाम है के बारे में जानकारी प्रदान की। उन्होनें कहा कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई के लिए तत्परता भावना की कमी है। कोविड 19 ने कई चुनौतियां उत्पन्न की है किंतु आने वाले भविष्य के लिए यह आखरी महामारी नही है। उन्होनें कहा कि मानवता एक अच्छे संतुलन में मौजूद है लेकिन इसे पहचानने की आवश्यकता है। लोग इसकी संपूर्ण चुनौती का नही समझते है और छात्रों को जानकारी प्रदान करने के लिए वेबिनार का आयोजन हुआ है। श्री त्रिपाठी ने कहा कि लोगों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा और मानवता के प्रति जिम्मेदार बनना होगा, सामूहिक ज्ञान के जरीए समस्याओं के निवारण को प्राप्त करना होगा। उन्होने पर्यावरण की चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन के बारे में घर में बात करने और चुप्पी के षडयंत्र को तोड़ने पर जोर दिया। श्री त्रिपाठी ने कहा कि परिस्थितिकी तंत्र बहाली 2021 - 2030 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा दशक के रूप वैश्विक आंदोलन के बनाया गया है जिसमें प्रकृति और स्थानीय समुदाय की शक्ती का उपयोग करके गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, लिंग असमानता और परिस्थितिकी तंत्र के क्षरण को समाप्त करने का कार्य किया जायेगा। उन्होनें कहा कि इस क्षेत्र में चुनौती को संबोधित करने के लिए कई संभावनाए है।


पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री जिग्मेट तकपा ने जलवायु परिवर्तन के प्राथमिक कारणों की अक्सर अनदेखी की जाती है और मरूस्थलीकरण के बारे में बात की जाती है। ग्रह का केवल बीस प्रतिशत हिस्सा रहने योग्य है और उत्पादक भूमि के प्रत्येक 4 हेक्टेयर में से 1 बेकार हो गया है। उन्होनें कहा कि भूमि के हर हक टूकड़े का संरक्षण करना होगा क्योकी यह एक दुर्लभ संसाधन है। श्री तकपा ने कहा कि परिस्थितिकी तंत्र के रूप में विश्व भर में भूमि के प्रबंधन और उपयोग की एक योजना बनाने की आवश्यकता है। बेहतर अनुकूलन रणनिती के बिना, जिम्मेदारी से भूमि का प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा, भूमि मूल्य, मानव शांति और सुरक्षा को खतरा है। उन्होनें नए वैश्विक भूमि एजेंडे के साथ भूमि संसाधनों के भविष्य को आकार देने कहा अह्वान किया।


राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के एक्जीक्यूटिव निदेशक मेजर जनरल एम के बिंडल ने एडेपटेशन गैप रिपोर्ट 2020 पर अपने विचारों को प्रकट करते हुए जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के मध्य श्रृखंला को मजबूत बनाने पर जानकारी दी। पिछले दशक में प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियां और तेज हो गई है। जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक परिस्थितिकी तंत्र के साथ कृषि क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है जिससे देश में खाद्य और जल सुरक्षा की गंभीर चिंता पैदा हो रही है। भारत अपने राष्ट्रीय अनुकूलन योजना पर काम कर रहा है और समुदाय को लचीला बनाने के लिए कार्य हो रहा है। देश और विश्व भर में भविष्य में सहयोग के लिए यह समझौता पत्र प्रारंभिक बिंदु होगा।


एमिटी शिक्षण समूह के संस्थापक अध्यक्ष डा अशोक कुमार चौहान ने अतिथियों और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन और सतत भविष्य पर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होनें सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर कार्ययोजना बनाने के लिए नेटर्वक बनाने का आह्वान किया। डा चौहान ने कहा कि एमिटी का ग्लोबल रिर्सच हब इस मिशन को पूर्ण करने के लिए तालमेल लाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।


जीआईजेड के जलवायु परिवर्तन समूह के तकनीकी विशेषज्ञ डा (श्रीमती) विजेता रात्तानी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ रहा है और गरीब देश जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित हो रहे है। जर्मन शोध के अनुसार भारत पांचवे क्रमांक पर सबसे अधिक जलवायु प्रभाव जोखिम वाला देश हैै ंिकंतु जलवायु परिवर्तन के जोखिम से बचाव के क्षेत्र में गंभीर भूमिका निभा रहा है।


न्यूयार्क के सिटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रो निक क्राकउर ने आर्द्र गर्मी के रूप में खराब जलवायु के संर्दभ मे जानकारी प्रदान की। जलवायु परिवर्तन ग्रामीण क्षेत्रों के साथ शहरी क्षेत्रों में भी एक गंभीर मुद्दा है।


यूथ लैब और इनोपी के संस्थापक एंड सीईओ डा अजय झा ने वर्तमान समय में स्वास्थय देखभाल अधिकारियों को जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करनी चाहिए इस विषय पर जानकारी प्रदान की।

एमिटी विश्वविद्यालय के ग्रुप एडिशनल प्रो वाइस चांसलर (आर एंड डी ) डा तनु जिंदल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में किये जा रहे शोध कार्यो के बारे में जानकारी प्रदान की।


इस वेबिनार में एमिटी सांइस टेक्नोलाॅजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती, एमिटी गु्रप वाइस चांसलर डा गुरिंदर सिंह, एमिटी लाॅ स्कूल के चेयरमैन डा डी के बंद्योपाध्याय, एमिटी विश्वविद्यालय लाॅन्ग आईलैंड की रणनिती और संचालन की उपाध्यक्षा डा सविता अरोरा भी उपस्थित थे।