भगवान कृष्ण की पावन भूमि पर विराजमान सन्त..बाबा श्यामानन्द गिरि ने मानव के सुख शान्ति के लिए कहा कि मनुष्य को शाकाहारी होना चाहिए।क्योंकि.. जैसा खाओ अन्न , वैसा होगा मन। की कहावत सही शिक्षा देती है। आगे उन्होंने बताया कि आदमी को सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।
उससे मनुष्य के अंतर्मन में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। जिससे कई बिगड़े काम भी बन जाते हैं।
श्री गिरी ने इस सम्बंध में एक
दृष्टांत प्रस्तुत किया कि....
एक व्यक्ति हमेशा भगवान
के नाम का जाप किया
करता था । धीरे धीरे वह
काफी बुजुर्ग हो चला था
इसीलिए एक कमरे मे
ही पड़ा रहता था
जब भी उसे शौच,
स्नान आदि के लिये
जाना होता था,वह अपने
बेटो को आवाज लगाता था
और बेटे ले जाते थे ।
धीरे धीरे कुछ दिन बाद
बेटे कई बार आवाज लगाने
के बाद भी कभी कभी
आते और देर रात तक
कभी नहीं भी आते थे।
इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता
दिया करते थे।
अब और ज्यादा बुढ़ापा
होने के कारण उन्हें कम
दिखाई देने लगा था।
एक दिन रात को निवृत्त होने
के लिये जैसे ही उन्होंने
आवाज लगायी, तुरन्त एक
लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको
निवृत्त करवा कर बिस्तर पर
लेटा जाता है !
अब ये रोज का नियम हो गया।
एक रात उनको शक हो जाता है।
कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर
भी नही आते थे। लेकिन ये
तो आवाज लगाते ही दूसरे
क्षण आ जाता है और बडे
कोमल स्पर्श से सब निवृत्त
करवा देता है ।
एक रात वह व्यक्ति उसका
हाथ पकड लेता है और पूछता
है कि सच बता तू कौन है ?
मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं
अभी अंधेरे कमरे में एक
अलौकिक उजाला हुआ और
उस लड़के रूपी भगवान ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।
वह व्यक्ति रोते हुये कहता है,
हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के
कार्य कर रहे है। यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही
दे दो ना ।
प्रभु कहते है कि जो आप
भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध
है। आप मेरे सच्चे साधक है।
हर समय मेरा नाम जप करते
हैं, इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी
आपकी सच्ची साधना के
कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।
👉 *व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे*
*प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे*
*है?*
👉 *क्या आपकी कृपा, मेरे,* *प्रारब्ध नही काट सकते है ?*
प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा
सर्वोपरि है। ये अवश्य
आपके प्रारब्ध काट सकती है!
लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर*
से आना होगा। यही कर्म नियम
है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं
स्वयं अपने हाथो से कटवा कर*
इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति
देना चाहता हूँ ।
*भगवान कहते है।*
*प्रारब्ध तीन तरह के*
*होते है ।*
👉 *मन्द*
👉 *तीव्र*
👉 *तीव्रतम*
मन्द प्रारब्ध मेरा नाम
जपने से कट जाते है
तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे
संत का संग करके-
श्रद्धा और विश्वास से मेरा
नाम जपने पर कट जाते है।
तीव्रतम प्रारब्ध भुगतने
ही पडते है।
लेकिन जो हर समय श्रद्धा और
विश्वास से मुझे जपते हैं, उनके
प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर
कटवाता हूँ और तीव्रता का
अहसास नहीं होने देता हूँ ।
प्रारब्ध पहले रचा,
पीछे रचा शरीर।
तुलसी चिन्ता क्यों करे,
भज ले श्री रघुबीर।।
घबराइए नही दैनिक जीवन
सभी का किसी ना किसी कारण
से क्लेशीत है। कोई मन
दुखी,कोई तन दुखी,
कोई धन दुःखी:।
*मन से फिर भी सकारात्मक रहिये,
नकरात्मक जीवन स्थिर
तो नही करता-
लेकिन शुभकर्म जरूर
स्थगित कर देता है।
जय श्री राधे-राधे ।।