एमिटी विश्वविद्यालय में जिनोम एडिटिंग की उभरती प्रवृत्तियों पर परिचर्चा का आयोजन






- विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों ने साझा किये अपने विचार।


नोयडा।उ.प्र.

छात्रों और शोधार्थियों को जिनोम एडिटिंग की नवीनतम खोज और उनकी उभरती प्रवृत्तियों के संर्दभ में एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ माइक्रोबियल टेक्नोलाॅजी द्वारा परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस वेब परिचर्चा सत्र में हमदर्द विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डा सय्यद एहतेशाम हसनैन, एलांयस आॅफ बाॅयोवरसिटी इंटरनेशनल एंड सीआईएटी रिजन एशिया के भारत कार्यालय के वरिष्ठ सलाहकार डा के सी बंसल, सीएसआईआर - इंस्टीटयूट आॅफ जिनोमिक्स एडं इंटिग्रेटिव बायोलाॅजी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डा देबोज्योती चक्रवर्ती, एमिटी शिक्षण समूह के संस्थापक अध्यक्ष डा अशोक कुमार चौहान एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश के चांसलर डा अतुल चौहान, एमिटी विश्वविद्यालय हरियाणा के चांसलर डा असीम चौहान, एमिटी कैपिटल वेंचरस के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट श्री अमोल चौहान, एमिटी विश्वविद्यालय के गु्रप डिप्टी वाइस चांसलर डा अजित वर्मा, एमिटी सांइस टेक्नोलाॅजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती और एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ माइक्रोबियल टेक्नोलाॅजी के डिप्टी डायरेक्टर डा अमित खरकवाल ने अपने विचार व्यक्त किये।


परिचर्चा सत्र में हमदर्द विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डा सय्यद एहतेशाम हसनैन ने ‘‘ रोग मुक्त व्यक्ति के लिए जिनोम एडिटिंग’’ विषय पर जानकारी देते हुए कहा कि 19वी सदी इंजिनियिरिंग की सदी थी, 20वी सदी रसायन विज्ञान एवं भौतकी की सदी थी और 21वी सदी बायोलाॅजी की सदी होगी। जीवविज्ञान केवल जीवन वैज्ञानिकों के लिए नही है बल्कि अन्य क्षेत्रों में कार्य करने वाले वैज्ञानिक भी इसके ज्ञान का उपयोग कर रहे है। डा हसनैन ने जिनोम एडिटिंग के बारे में बताते हुए कहा कि एसआईटीयू में डीएनए के अनुक्रम को बदला जाता है और डीएनए को जीव के जीनोम में डाला, संशोधित या बदला जाता है। जिनोम एडिटिंग का उददेश्य जिनेटिक रोगों और कैंसर जैसे रोगों के उपचार के लिए होता है एवं प्रभावी एडिटिंग प्रक्रिया क्रिस्पर ने नई उम्मीद दिखाई है। उन्होनें जिनोम एडिटिंग टूल के विकास क्रम को बताते हुए जिनोम एडिटिंग के तरीके को बताया। डा हसनैन ने विभिन्न जिनोम एडिटिंग मेथड जैसे जेडएफएन, टेएएलईएन और क्रिस्पर के तुलनात्मक अध्ययन को बताते हुए किस्प्रर तकनीकी के प्रभाव को बताते हुए पौध जिनोम एडिटिंग में उसके महत्व की जानकारी प्रदान की। क्लिनिकल थिरेपी में एक्स विवो एंड इन विवो जिनोम एडिटिंग के विभिन्न चरणों के बारे में बताते हुए कहा कि कई जेनेटिक रोग लेबेरस काॅजिनेंटल अमारोसिस, हेमेटोलाॅजिकल रोग, हेरेडेट्री आई डिसेस, स्वत रोग आदि में क्रिस्पर तकनीक के उपयोग की जानकारी प्रदान की। डा हसनैन ने कहा कि जीन सुधार की विशिष्टता को बढ़ाना, न्यूक्लियस एडिटिंग की क्षमता को विकसित करना और वितरण प्रणाली का अनुकूलन आदि इस क्षेत्र की चुनौतियां है जिस पर कार्य करना आवश्यक है।


एलांयस आॅफ बाॅयोवरसिटी इंटरनेशनल एंड सीआईएटी रिजन एशिया के भारत कार्यालय के वरिष्ठ सलाहकार डा के सी बंसल ने ‘‘जलवायु विविधता के लिए फसल विविधता और जीनोम संपादन’’ विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय नेशनल जीनबैंक विश्व का द्वितीय सबसे बृहद जीन बैंक है। जिसके अंर्तगत लगभग 4,47,839 प्रकार के सीड जीनबैंक में उपलब्ध है। बृहद फसल विविधता और बायोतकनीक दृष्टिकोण जैसे जिनोमिक्स, माॅलेक्युल मारकर, जेनेटिक इंजिनियरिंग एवं जीएम क्राप्स के साथ जिनोम एडिटिंग से फसलों के विकास में सहायता होती है। डा बंसल ने गेंहू के फिनोटाइपिक कैरेकेटराइजेशन एवं इवोल्यूशन पर आधारित मेगा कार्यक्रम, टारेगेटेड जिनोम एडिटिंग, एसडीएन 1 और एसडीएन 2 के बारे में बताते हुए स्मार्ट कृषि के लिए जिनोम एडिटिंग के महत्वतता के बारे में जानकारी प्रदान की। नियामक के बारे में बताते हुए डा बंसल ने कहा कि जेनेटिकली माॅडिफाइड आॅरगेनिस्म और जीन एडिटेड फसल दोनो भिन्न है। एसडीएन 1 और एसडीएन 2 के लिए नियमित प्रजनन लाइनों की तुलना में अतिरिक्त नियामक निरीक्षण की आवश्यकता नही है जबकी एसडीएन 3 के लिए नियामक की आवश्यकता है। डा बंसल ने कहा कि कृषि मे आत्मनिर्भर को बढ़ावा देने के लिए जिनोम एडिटेड क्राप्स को आंतरिक भाग बनाना होगा जिसके लिए स्पष्ट निती की आवश्यकता, जिनोम एडिटेड क्राप्स के विकास हेतु राजनितिक सहयोग और एसडीएन 1 और एसडीएन 2 को नाॅन जेनेटिकली माॅडिफाइड आॅरगेनिस्म की तरह उपयोग करना होगा।


सीएसआईआर - इंस्टीटयूट आॅफ जिनोमिक्स एडं इंटिग्रेटिव बायोलाॅजी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डा देबोज्योती चक्रवर्ती ने परिचर्चा को संबोधित करते हुए ‘‘जीवन के कोड को फिर से लिखना’’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि जिनोम एडिटिंग कोशिकाओं के डीएनए में परिवर्तन करता है महत्वपूर्ण यह जानना है कि जीनोम एडिटिंग कहा हो सेामेटिक सेल या जर्मलाइन या एब्रियों में, यह एक्स विवो या इन विवो है और जिनोम एडिटिंग किस लिए है रोग से मुक्ती, या रोग से बचाव या विकास के लिए। डा चक्रवर्ती ने क्रिस्पर सिस्टम के विकास, एफएलयुडेए कार्य आदि के बारे में जानकारी प्रदान की।


एमिटी शिक्षण समूह के संस्थापक अध्यक्ष डा अशोक कुमार चौहान ने अतिथियों एव वैज्ञानिकों का संबोधित करते हुए कहा कि जिनोम एडिटिंग, वर्तमान समय में पौधों एवं जीवों के जीवन को रोग मुक्त रखने एवं विकसित करने में कई स्तर पर सहायता कर सकता है। एमिटी के वैज्ञानिकों द्वारा जिनोम एडिटिंग के क्षेत्र पर बृहद स्तर पर शोध कार्य किया जा रहा है। इस प्रकार की परिचर्चा सत्रों द्वारा हम विशेषज्ञों द्वारा शोधार्थियों और वैज्ञानिकों को नवीनतम शोध जानकारी प्रदान करते है और इसके अतिरिक्त उन्हे शोध में मार्गदर्शन प्राप्त होता है।


एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश के चांसलर डा अतुल चौहान ने अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि एमिटी सदैव शोध एवं नवाचार को प्रोत्साहन प्रदान करता है और हमारे संस्थापक अध्यक्ष डा अशोक कुमार चौहान का उददेश्य शिक्षा एवं शोध के जरीए विश्व को हम सभी के लिए बेहतर स्थान बनाना है और हम मिलकर इस दृष्टिकोण को सार्थक करेगें।


एमिटी विश्वविद्यालय हरियाणा के चांसलर डा असीम चौहान ने अतिथियों और वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान समय सूचना प्राद्यौगिकी का है किंतु आने वाले समय औषधी और कृषि तकनीकी का होगा और जिनोम एडिटिंग का विकास में काफी योगदान होगा। एमिटी के वैज्ञानिक मानव हित के लिए सदैव शोध कार्य करते है जिससे उनके शोध से आमजन को लाभ प्राप्त हो।


एमिटी कैपिटल वेंचरस के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट श्री अमोल चौहान ने संबोधित करते हुए कहा कि वैज्ञानिकों द्वार जिनोम एडिटिंग सहित कई क्षेत्रों में बेहतरीन कार्य किया जा जा रहा है और इस कार्यक्रम में आकर ना केवल जानकारी प्राप्त हुई बल्कि एमिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे कार्यो से प्रोत्साहन भी प्राप्त हुआ।


इस परिचर्चा सत्र का संचालन एमिटी सांइस टेक्नोलाॅजी एंड इनोवेशन फांउडेशन के अध्यक्ष डा डब्लू सेल्वामूर्ती द्वारा किया गया। इस अवसर पर एमिटी विश्वविद्यालय हरियाणा के एस्सीटेंट प्रोफेसर डा रवी दत्त शर्मा ने ‘‘ अल्टरनेटिव स्पलाइसिंग एएस ए टूल टू फाइंड बायोमेकर’’ पर, डा सौम्यादीप नंदी ने ‘‘ आंइडेटिफिकेशन आॅफ कंसरवेड आईएनसी आरएनए इन मायोजेनेसिस’’ विषय पर व्याख्यान प्रदान किया। इसके अतिरिक्त एमिटी विश्वविद्यालय उत्तरप्रदेश के वैज्ञानिकों डा काजल कंजन, डा मनोज गर्ग, डा शुभ्राजीत बिस्वास, डा मुहम्मद जमर्शीक डा आशीष श्रीवास्तव, डा मनोज कुमार, डा सुष्मीता शुक्ला, डा राजश्री दास, डा शिवानी शारदा और डा अजय जैन ने अपने शोध कार्यो की जानकारी दी। एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ माइक्रोबियल टेक्नोलाॅजी के डिप्टी डायरेक्टर डा अमित खरकवाल द्वारा एमिटी इंस्टीटयूट आॅफ माइक्रोबियल टेक्नोलाॅजी द्वारा संचालित किये जा रहे शोध कार्यो पर प्रस्तुती दी गई।