दो ऐसी सत्य कथाएं...



जिन्हें ..सुधी पाठक पढ़ने के  बाद अपनी ज़िंदगी जीने का अंदाज़ बदलना चाहेंगे!


 *प्रथम सत्य कथा...*👇🏼


दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार नेल्सन मांडेला अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गये !सबने अपनी-२ पसंद का खाना आर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे !

उसी समय मांडेला की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतजार कर रहा था ;मांडेला ने अपने सुरक्षा कर्मी से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो !

ऐसा ही हुआ ;खाना आने के बाद सभी खाने लगे !वह आदमी भी अपना खाना खाने लगा पर उसके हाथ खाते हुए कांप रहे थे !

खाना समाप्त कर वह आदमी सिर झुका कर रेस्तरां से बाहर निकल गया !उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा -वह व्यक्ति शायद बहुत बीमार था ;खाते वख़्त उसके हाथ लगातार कांप रहे थे और वह ख़ुद भी कांप रहा था !

मांडेला ने कहा -नहीं ऐसा नहीं है वह उस जेल का जेलर था जिसमें कभी मुझे कैद रखा गया था जब कभी मुझे यातनाये दी जाती थीं  और मै कराहते हुए पानी मांगता था तो यह मेरे ऊपर पेशाब करता था !

मांडेला ने कहा -मै अब राष्ट्रपति बन गया हूँ उसने समझा कि मै भी उसके साथ शायद वैसा ही व्यवहार करूंगा पर मेरा चरित्र ऐसा नहीं है !मुझे लगता है बदले की भावना से काम करना विनाश की ओर ले जाता है वहीं धैर्य और सहिष्णुता की मानसिकता हमें विकास की ओर ले जाती है ।


*द्वितीय सत्य कथा ..*👇🏼


Mumbai से Banglore जा रही ट्रेन में सफ़र के दौरान TT ने सीट के नीचे छिपी लगभग तेरह-चौदह साल की एक लड़की से पूछा -टिकट कहाँ है ?काँपती हुई लडकी ने जवाब दिया -नही है साहब !TT ने झल्लाकर कहा -तो गाड़ी से उतरो !

इतने में ही पीछे से आवाज आई -इसका टिकट मैं दे रही हूँ !यह सह यात्री ऊषा भट्टाचार्य की आवाज थी जोकि पेशे से Professor थी !

ऊषा जी ने लड़की से पूछा -तुम्हें कहाँ जाना है ?लड़की ने सकुचाते हुए कहा -पता नहीं Mam !ऊषा जी ने उसे साहस बंधाते हुए कहा -तो चलो मेरे साथ Banglore तक ;वैसे तुम्हारा नाम क्या है ?लड़की ने जवाब दिया -चित्रा !

Banglore पहुँच कर ऊषा जी ने चित्रा को अपनी जान पहचान की एक स्वंयसेवी संस्था को सौंप दिया और एक अच्छे स्कूल में भी Admission करवा दिया !

जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर Delhi हो गया जिसके कारण चित्रा से संपर्क टूट गया ;कभी-कभार केवल फोन पर बात हो जाया करती थी धीरे-२ वह भी बन्द हो गया !

करीब बीस साल बाद ऊषा जी को एक Lecture के लिए San Francisco (America) बुलाया गया !Lecture के बाद जब वह होटल का बिल देने Reception पर गई तो पता चला कि पीछे खड़े एक खूबसूरत दंपत्ति ने बिल चुका दिया था !

ऊषा जी ने जिज्ञासापूर्वक पूछा -तुमने मेरा बिल क्यों भरा ?-Mam यह Mumbai से Banglore तक के रेल टिकट के सामने कुछ भी नहीं है !यह सुनकर ऊषा जी ने आश्चर्यचकित होकर कहा -अरे चित्रा !

चित्रा और कोई नहीं बल्कि Infosys Foundation की चेयरमैन सुधा मूर्ति थीं जो Infosys के संस्थापक श्री नारायण मूर्ति की पत्नी हैं !

यह लघु कथा उन्ही की लिखी पुस्तक The Day I Stopped Drinking Milk से ली गई है !

कभी-२ आपके द्वारा की गई सहायता किसी का जीवन बदल सकती है !

यदि जीवन में कुछ कमाना है तो पुण्य अर्जित कीजिये क्योंकि यही वह मार्ग है जो स्वर्ग तक जाता है !

बहुत-२ धन्यवाद

राम राम