कांग्रेस के लिए चुनौती ,पाँच राज्यों के चुनाव।

 



प्रेम शर्मा (लखनऊ)

देश के पांच राज्यों में चुनावी माहौल पहले से बना हुआ। आयोग की घोषण के बाद पार्टियाॅ कमान थाम चुकी है। विशेष तौर पर पश्चिम बंगाल देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। पाॅच राज्यों की चुनावी रणभेरी का मतलब यह कि वर्ष 2021 में खिचड़ी किसकी पकेगी। लेकिन इतना तय है कि छोटे छोटे मामलों में भी प्रधानमंत्री पर बेसिपैर और आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाली कांग्रेस के लिए पंश्चिम बंगाल, असम, पुडुचेरी, तमिलनाडू और केरल चुनौती से कम नही है। यह चुनाव उन लोगों के लिए एक मौका है जो लगातार नरेन्द्र मोदी के बहाने लगातार केन्द्र सरकार को जनविरोधी बता रहे है। अगर वाकई केन्द्र में बैठी मोदी सरकार तानाशाह, पूंजीपतियों के इशारे पर काम कर रही है तो उसे सबक सिखाने के लिए पाॅच राज्यों की जनता उसके विरोध में अपना मत देकर देश की राजनीति की दशा और दिशा बदल सकती है। अगर यह नही हुआ तो पाॅच राज्यों के चुनाव परिणाम केन्द्र की भाजपा सरकार के लिए बोनस होगा।

वैसे तो कांग्रेस के नए नेतृत्व का असमंजस अभी दूर भी नहीं हुआ है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की बढ़ी सरगर्मियों ने पार्टी के लिए एक और बड़ी चुनौती के रूप में दस्तक दे दी है। अधिकांश राज्यों की सत्ता से दूर हुई कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत विपक्ष के रूप में फिर से वापसी के लिए अप्रैल-मई महीने में होने जा रहे पांच राज्यों के चुनाव बेहद अहम हो गए हैं। इसमें भी बंगाल के मुख्य चुनावी मुकाबले में कांग्रेस-वामपंथी गठबंधन की कमजोर स्थिति को देखते हुए पार्टी की आस केरल, असम और तमिलनाडु के चुनाव पर ज्यादा टिकी है। पार्टी का मानना है इन तीन राज्यों में गठबंधन या अपने बूते सत्ता की डगर तक पहुंच पार्टी को नया जीवन देने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकती है। कांग्रेस के भविष्य के लिहाज से इन चुनावों की अहमियत का ही तकाजा है कि नए अध्यक्ष के चुनाव पर जारी ऊहापोह के बावजूद पार्टी हाईकमान ने पांचों राज्यों की चुनावी तैयारियों को लेकर अपेक्षाकृत ज्यादा तत्परता दिखाई है। इसके लिए अपने चुनावी प्रबंधन की पुरानी शैली में बदलाव करते हुए पार्टी ने भाजपा की तरह वरिष्ठ नेताओं को अलग-अलग प्रदेशों के चुनाव का जिम्मा सौंपा है।

 अब अगर बाॅत ताजा सर्व की जाए तो फिलहाल पुडुचेरी और असम में भाजपा तो कांग्रेस को तमिलनाडू में फतह करते देखा जा रहा है। इधर बाॅत करे पश्चिम बंगाल में फिलहाल मुख्यमंत्री के रूप में ममता बनर्जी पहली पसंद कही जा रही है। ग्रेटर कोलकत्ता में टीएमसी का जादू चल सकता है। इस रीजन की 35 में से 25 से 28 सीटे ममता बनर्जी के खाते में दिख रही है। जबकि उत्तर बंगाल में 56 सीटों में से आधी से अधिक सीटों पर भाजप भारी पड़ रही है। बांग्लादेश से सटे दक्षिण पूर्व बंगाल रीजन की 84 सीटों पर ममता भारी है लेकिन अगर इस क्षेत्र में औबेसी ने दस्तक दी तो यहाॅ भाजपा को बड़ा मौका मिल सकता है। असम की बाॅत करे तो 126 विधानसभा सीट वाले इस प्रदेश में भाजपा फिलहाल तो 70 से 75 सीटो पर भारी दिख रही है। यानि यहाॅ कांग्रेस को बहुत मेहनत की जरूरत है। पुडुचेरी की 30 विधानसभा सीटों में से भाजपा और कांग्रेस फिलहाल काटे की टक्कर में है फिर भी भाजपा सर्व में आगे है। तामिलनाडू की 234 विधानसभा सीटों में डीएके कांग्रेस गठबंधन भारी दिख रहा है जबकि बीजेपी एआईएडीएमके गठबंधन विपक्ष में दिखाई पड़ रहा है। केरल में 140 विधानसभा सीटों में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट फिर से सत्ता की ओर अग्रसर है इसके बावजूद यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट फाइट करने को तैयार है लेकिन भाजपा यहाॅ कुछ अच्छा करने के लिए भरकस प्रयास कर रही है। 

वैसे इन पाॅच राज्यों में कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्थिति है।

 कांग्रेस का इन पाॅच राज्यों में प्रदर्शन उसके लिए संजीवनी साबित होगा। कांग्रेस के हिसाब से केरल इसमें सबसे पहले नंबर पर है जहां पार्टी वामपंथी दलों से सत्ता छीनने को तत्पर है। सूबे की वाममोर्चा सरकार के खिलाफ आए कई बड़े प्रकरण कांग्रेस की इस उम्मीद का आधार हैं। हालांकि बीते महीने केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में वाममोर्चा ने कांग्रेस को जिस तरह झटका दिया उससे साफ है कि पार्टी की चुनाव राह आसान नहीं है, इसीलिए सोनिया गांधी ने कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को केरल के चुनाव का जिम्मा सौंपा है। केरल में चुनावी कामयाबी की कांग्रेस की जरूरत का अहसास इससे भी लगाया जा सकता है कि स्थानीय निकाय के खराब परिणामों के बाद हाईकमान की पहल पर प्रदेश कांग्रेस के सभी नेता गुटबाजी को किनारे कर एकजुट होकर लड़ने पर सहमत हुए। वैसे भी असम के चुनावी अखाड़े में भी कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है जहां नागरिकता संशोधन कानून तथा एनआरसी विवाद को लेकर हुए आंदोलनों के बाद कांग्रेस चुनाव में अपनी वापसी की गुंजाइश देखने लगी है। छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस की कामयाबी के मुख्य सूत्रधार रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को असम की चुनावी जिम्मेदारी सौंपा जाना दर्शाता है कि पार्टी के लिए यह चुनाव कितना अहम है। बंगाल कांग्रेस प्रभारी जितिन प्रसाद ने बीते एक महीने से सक्रियता बढ़ाई है और वाम दलों के साथ गठबंधन भी लगभग तय हो गया है, मगर पार्टी को भी यह सियासी हकीकत मालूम है कि ममता और भाजपा के बीच मुख्य चुनावी मुकाबले को कहीं-कहीं त्रिकोणीय बनाने से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी होगी।तमिलनाडु में भी रजनीकांत के सियासत से हटने के एलान के बाद कांग्रेस को उम्मीद है कि द्रमुक राज्य की सत्ता में वापसी करेगा। ऐसे में द्रमुक के साथ गठबंधन में मनमुताबिक सीटें लेना पार्टी का लक्ष्य है, मगर बिहार चुनाव में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने पार्टी की चुनौती इस मोर्चे पर बढ़ा दी है। ऐसे में असम सर्वानंद सोनोवाल, केरल में पिनारमी विजयन, तमिलनाडू थ्रिरू एड्प्पालादी के पालानीस्वामी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और पुडुचेरी में वी.नारायणस्वामी के कार्यकाल की अग्नि परीक्षा होगी।  खैर इन चुनावों को हम 2024 के लोकसभा के सेमी फाइनल के रूप तो नही लेकिन क्वाटर फाइनल के रूप में जरूर देख सकते है।