बेटी को बेटा क्यों ? (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)

 



✍️रवीन्द्र दूबे


हम में से अधिकतर लोग चाहे वो राजनेता हो या अभिनेता, मंत्री हो या सेलिब्रिटी, पुरुष हो या महिला, सब के सब बेटी के प्रति ज्यादा प्यार दिखाने के लिए उसे ’बेटा’ कहकर बुलाते हैं।ऐसा क्यों? बेटा शब्द में ही ज्यादा प्यार दिखता है।आजतक किसी ने अपने बेटा को ’बेटी’ कहकर बुलाया क्या? क्यों नहीं बुलाया? क्या बेटी शब्द अच्छा नही है? कही बेटी शब्द कमतर होने कि निशानी तो नही है।आखिर हम क्यों अपनी बेटी को बेटी नही कहते सोचने और समझने का वक्त है।यह सत्य है कि चार बेटे मिलकर भी एक बेटी की बराबरी नहीं कर सकते। फिर भी ’बेटा’ शब्द में इतना आकर्षण क्यों है? इस आकर्षण के पीछे वह षडयंत्र है, जिसे पुरुषों ने कई वर्षों के मेहनत के बाद रचा है।

भारतवर्ष में यह बीमारी शुरू से नहीं थी। यहां तो वैदिक ऋचाओं में कहा गया है कि ’’यत्र नारयसु पूज्यंते तत्र रमंते देवताः।’’ निर्लज पुरुषों को जब लगा कि वे महिलाओं से हर क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं, तो महिलाओं को चाहरदीवारी में कैद रखकर, उनको अपने अधीन बनाने का ब्लूप्रिंट तैयार किया गया। भारत में, मध्य एशिया में, अफ्रीका में, खुद को जरुरत से अधिक काबिल समझने वाले यूरोप में और चीन-जापान में भी। सब जगह। इसमें सैकड़ों साल का समय लगा। महिलाओं के लिए नियम पुस्तिका तैयार किए गए और इस नियम पुस्तिका का आधार बनाया गया धर्म व संस्कृति को। क्यों? क्योंकि धर्म ऐसी बला है, जिसके विरोध में जुबान खोलने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। इसलिए धर्म के विकृत स्वरूप की आड़ में महिलाओं के दमन करने के फार्मूले तैयार किए गए। नियम पुस्तिका में लिखा गया कि महिला को सौम्य, सुशील, पति की सेवा करने वाली, धैर्य धारण करने वाली, सबका खयाल रखने वाली, चुप रहने वाली, जुबान न लड़ाने वाली…इत्यादि इत्यादि इत्यादि… होनी चाहिए। लेकिन, पुरुषों को कैसा होना चाहिए ये उसमें नहीं लिखा गया।

इतने सालों में इस नियम पुस्तिका का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि अब कोई महिला बहु के रूप में ब्याहकर नए घर में आती है, तो एक सीनियर महिला (यानी सास) अपने से जुनियर महिला (बहु) से कहती है कि उसे महिला (पोती) नहीं पुरुष (पोता) चाहिए। ज़रा सोचिए। महिला को गर्ल चाइल्ड नहीं, ब्वाय चाइल्ड चाहिए। महिला ही महिला के विरोध में।

 लड़की के मां-बाप यह सोचकर चिंतित रहते हैं कि बेटी घर के बाहर जा रही है, कहीं कुछ ऊँच-नीच न हो जाए। ऐसा हुआ, तो परिवार की नाक कट जाएगी। जबकि, आज के परिवेश में परिवार के नाट कटाने का काम लड़के कर रहे हैं। किसका लाडला कब लड़की छेड़ने या बदतमीजी करने के कारण थाने पहुंच जाए, कहना कठिन है। पाँच अनजान लड़कियों के बीच में एक लड़का सेफ है, लेकिन पाँच अनजान लड़कों के बीच में एक लड़की सेफ नहीं है। इसीलिए, वी नीड टू प्रोटेक्ट आवर ब्वायज, क्योंकि लड़कों को ज्यादा खतरा है। किससे? उनकी अपनी ही आदत से। और किससे?

आज अगर एक महिला कोई बड़ी उपलब्धि हासिल करती है, तो मीडिया में लिखा-बोला जाता है- ’’महिला होने के बावजूद उसने यह उपलब्धि हासिल की…।’’ महिला होने के बावजूद! मतलब? पुरुष को तो नहीं लिखा जाता कि पुरुष होने के बावजूद…। उदाहरण देखिए। ’’महिला होने के बावजूद उसने एवरेस्ट फतह किया…’’, ’’महिला होने के बावजूद रोज 22 किमी साइकिल चलाकर पढ़ने गई’’, ’’महिला होने के बावजूद ट्रक चलाती है।’’ ये क्या है? महिला होना कमतरी की निशानी तो नहीं हैं। मध्यप्रदेश की अवनी चतुर्वेदी ने अकेले ही फाइटर प्लेन उड़ाई थी तो बस, पुरुष आँखें फाड़कर देखने लगे। क्यों भाई? इतने दिन से पुरुष लड़ाकू विमान उड़ा रहे थे, तो यह एक सामान्य बात थी। आज अवनी ने उड़ा दिया, तो कौन सा आठवां आश्चर्य हो गया?

समय बदल रहा है। आज देश के पुरुष घरेलू काम कर रहे हैं और महिलाएं बाहर की।


आज के दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शुभकामनाएं देने के बजाय आज से,अभी से प्रत्येक माता पिता एक बेटी को बेटी कहकर ही पुकारें और दूसरे को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें यहि सच्ची शुभकामना होगी।