प.पूज्य ब्रह्मलीन ,पण्डित जगन प्रसाद रावत जी की 28 मई ,पुण्य तिथि विशेष।✍ गौ सेवक,खोजी बाबा ।

 



आज मेरे प.पू. ब्रह्मलीन पिताजी "मानस मर्मज्ञ" पं. जगन प्रसाद रावत "मानस मयूर" की आज द्वितिय पुण्यतिथि है। लिखने को अपने पिता के व्यक्तित्व म़े बैठूंगा। तो कदाचित अतिश्योक्ति होगी।

      सूक्ष्म म़े 1972 में पंचकुइयां आगरा स्थित शिव मंदिर से मानस प्रवचन की शुरूआत की। फिर वही सत्संग भारद्वाज आश्रम हरिया की बगीची सुन्दर पाडा पुलिस लाइन रोड पर पहुंचा। 


        श्रीचिंताहरण महादेव आलोक नगर जयपुर हाउस म़े 1978 म़े शुरूआत की। आगरा म़े नित्य पिताजी के आगरा म़े कई सतसंग भवनो़ प्रवचन हुआ करते थे।




1 - भारद्वाज आश्राम


2- श्रीचिंताहरण मंदिर


3- श्रीराम मंदिर , जयपुर हाउस


4- श्री विठ्ठलनाथ सत्संग म़डल , वैद्य गली, मन:कामेश्वर


5- काक कुटीर सत्संग भवन ,आगरा केंट


6- गीता भवन ,पालीवाल पार्क , आगरा


7- काली मंदिर शाहगंज आगरा


8- शिव मंदिर , पीएनटी कालोनी, ईदगाह


9- बुर्जीवाला मंदिर , प्रताप नगर


10- सूर्य नगर म़े मंदिर है वहां , नाम ध्यान म़े नहीं आ रहा।


11- रमणरेती गोकुल महावन में कार्षि गुरू शरणानंद जी महाराज का वर्ष में एक बार जन्मोत्सव मनाया जाता था। जो तीन दिन का हुआ करता था। 7 बार पिताजी को प्रवचन हेतु बुलाया गया। संत मोरारी बापू और भागवताचार्य श्री रमेशभाई ओझा जी के साथ मंच साझा किया। अब तो काफी वर्षो से गुरूजी ने जन्मोत्सव कार्यक्रम बंद कर दिया।


*नोट :- 1984 में चित्रकूटधाम म़े उ.प्र. के तत्तकालीन सीएम श्री एन.डी.तिवारी जी की अध्यक्षता म़े़ तीसरे स्थान पर मानस मर्मज्ञ और मानस मयूर की उपाधी से विभूषित किया गया। केवल भारतवर्ष के 10 वक्ताओं को ये उपाधी मिलनी थी।* 


       *पिताजी डोल मजीरा आदि जोकि आजकल सभी वक्ता करते हैं , म़ै विश्वास नहीं था। अमर उजाला के मालिक श्री डोरी लाल अग्रवाल जी भी मेरे गांव बल्देव (दाऊजी) के ही थे। पिताजी से अक्सर अखबार में छापने की बोलते थे। पिताजी इन सबसे परे थे। अर्थात मना कर दिया कर देते थे।*


       जूनियर हाईस्कूल म़े अध्यापक भी रहे।


*28 मई 2019 को ब्रह्मलोकवासी हो गये🙏🏻*


 *मानस मयूर तुमको प्रणाम।।*


*तुलसी के वंशज पूर्ण काम।।*


अवतरित हुये ब्राह्मण कुल में


      जन जन की भक्ति बढाने को।


है राम के मंदिर में गुंजित, आवाज़


                    यही समझाने को ।।


तुम ब्रह्म के लोक में चले गये


        मानस की अलख जगाने को।


हम सभी प्रतीक्षा में रत हैं,


          धरती पर पुनः बुलाने को ।।


*तुमको करने हैं कई काम ।।*


*मानस मयूर तुमको प्रणाम।।*


'मानस' की व्याख्या करने में 


        तुम थे अपूर्व ज्ञानी ध्यानी ।


कानों में मिश्री सी घुलती ,


        जब सुनते थे श्रोता वाणी ।।


तुमको पाकर के धन्य हुई


        ब्रजभूमि जगत की कल्याणी।


अब व्यास पीठिका है सूनी,


           खाली गद्दी की जिजमानी ।।


*लग गया सुरों में अब विराम।।*


*मानस मयूर तुमको प्रणाम ।।*


अवदान तुम्हारा यादों में भी


            है जीवित रहने वाला।


तुम सा न मिलेगा अब कोई भी


             कथा नई कहने वाला ।।


आने जाने का है विधान 


         जग में सिंचित रहने वाला ।


अपनी ही गोद सहेजेगा 


         तुमको दुनियां का रखवाला ।।


*तुम थे ग्रहस्थ के चार धाम ।।*


*मानस मयूर तुमको प्रणाम ।।*


                               श्रद्धा सहित


                              रामेन्द्र त्रिपाठी


                            ९४१२२६४९८८