जीतूँगा मैं..... अजितप्रताप सिंह लालू।




जीतूँगा मैं, यह ख़ुद से वादा करो, !

जितना सोचते हो, कोशिश उससे ज्यादा करो।

तकदीर भी रूठे पर हिम्मत न टूटे।

मजबूत इतना बसअपना इरादा करो।।

हर हालात में जीवन को संरक्षित करने के लिये करोना से लडना‌ होगा? बार बार ठोकरें लगे तब‌ भी हर कदम पर सम्लना होगा? आज चौतरफा मार झेल रहा है आदमी! करोना की महमारी, भरष्टाचार सरकारी हर कदम पर दुश्वारी ही दुश्वारी  झेल रहा है किसान हो या ब्यापारी?!जंग के हालात हैं हर तरफ मुंह बाये खड़ा सवालात है!बहुमत की सरकार हर तरफ केवल भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है।इस देश के परिवेश मे महंगाई की मार है! मौत का चल रहा ब्यापार है। निरंकुश होती जा रही सरकार है।जिधर देखिये हाहाकार ही  हाहाकार है। डीजल महंगा, पेट्रोल महंगा, राशन महंगा ,श्मशान की लकड़ी महंगी, ब्यवस्यथा की मार झेलता शासन प्रशासन महंगा? इस सरकार में जीवन का मोल खत्म  हो गया ?होनहार हाथों का हूनर खत्म हो गया! तरक्की के साधन खत्म दकिया नूसी ब्यवस्था में सब कुछ खत्म। जिधर देखिये सियासी आग में जलकर सब कुछ हो गया भष्म?इस कदर भयावह मंजर है कि अब मौत के बाद भी पूरा नहीं हो रहा है आखरी रस्म?__ भाईयों बहनों'' बताओ आज कौन सी तारीख है चार? कल क्या होगी पांच बताओ देश आगे बढ़ रहा है की नहीं।वाह भाई गजब का लब्ज बोलकर सब्ज बाग दिखाने के हूनर में माहीर देश के ब्यवस्थापक के हर जुमले का सच हो चुका है जग जाहीर? दिल के अरमां आंसुओं में बह‌ गये, हम वफा‌ करके भी तन्हा‌ रह‌ गये?

 शायद इनका आखरी हो यह सितम सोचकर ये हर सितम हम सह गये? हकीकत को छूती वर्तमान ब्यवस्था पर यह लाईनें सौ प्रतिशत सच साबित हो रही है।नाव कहीं पतवार कहीं है टीबी चैनल कभी अखबार कहीं!।इतिहास के पन्नों में दर्ज फर्ज के लिये जहर पीने वाले सुकरात को भी बहुमत से जहर दिया गया था?.अदालत में 221 न्यायधीशों के विरुद्ध 280 के बहुमत से तय हुआ कि सुकरात को मार देना चाहिए.! सुकरात को जहर का प्याला पकड़ाने वाला उसका बचपन का मित्र क्रेटो ही था जो प्याला थमाते हुए सुकरात से कह रहा था कि "बहुमत का सम्मान करना पड़ेगा.?.मुझे माफ़ कर देना..!क्या  एक बार फिर ऐसा नहीं हो सकता? बिल्कुल हो सकता है।कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो? दर्द के सैलाब बे रुआब होती जिन्दगी सियासी‌ दरिन्दगी का शिकार हो गयी। हंसती खेलती गृहस्थी बेकार हो गयी।

सुकरात के मरने के 12 साल बाद पता चला कि बहुमत गलत था..! यह जरूरी नहीं कि हर बहुमत का निर्णय सही हो! वह भीड़ को उकसा कर भी पाया जा सकता है प्रचंड_बहुमत? जो कुछ भी हो अनिश्चितता के भंवर जाल में फंसी जिन्दगी त्रासदी की मार से टूट चुकी है।किस्मत फूट चुकी है।गम के बादल चहूं ओर घनघोर वारिश‌ कर रहे हैं! लोग थोक भाव में बे मौत‌ मर रहे हैं!शम्मशान भी परेशान हैं! कब्रिस्तान भी हैरान है!कहीं सुनामी है कहीं तूफान है! फिर भी सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा!का तराना पुराना नहीं हुआ सियासतदिर नमक हराम है सबसे अच्छा हिन्दुस्तान है।