माता शबरी के पैरों की धूल और माता का व्यक्तित्व : संकलन "गौसेवक🐂" खोजी बाबा।

 



    माता शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। देखने में बहुत साधारण, परन्तु हृदय से बहुत सुकोमल थी। इनके पिता ने इनका विवाह निश्चित किया, लेकिन आदिवासियों की एक प्रथा थी कि किसी भी अच्छे कार्य से पहले निर्दोष जानवरों की बलि दी जाती थी।


     इसी प्रथा को पूरा करने के लिये इनके पिता शबरी के विवाह के एक दिन पूर्व सौ - दोसौ भेड़ बकरियाँ लेकर आये। तब शबरी ने पिता से पूछा - पिताजी इतनी सारी भेड़ बकरियाँ क्यूँ लाये ?


   *पिता ने कहा -* शबरी यह एक प्रथा है , जिसके अनुसार कल प्रातःकाल तुम्हारी विवाह की विधि शुरू करने से पूर्व इन सभी भेड़ बकरियों की बलि दी जायेगी। यह कहकर उसके पिता वहाँ से चले जाते हैं। प्रथा के बारे में सुन शबरी को बहुत दुःख होता है और वो पूरी रात उन भेड़ बकरियों के पास बैठी रही और उनसे बाते करती रही। उसके मन में एक ही विचार था कि कैसे वो इन निर्दोष जानवरों को बचा पाये।


   तब ही अचानक शबरी के मन में एक विचार आता है और वो सुबह होने से पहले ही अपने घर से भाग गई । जिससे वो उन निर्दोष जानवरों को बचा सके। माता शबरी जानती थी, अगर एक बार वो इस तरह से घर से जायेंगी तो कभी उसे घर वापस आने का अवसर नहीं मिलेगा फिर भी माता शबरी ने स्वंय से पहले उन निर्दोषों की सोची ।


    घर से निकल कर माता शबरी एक जंगल में पहुँची। अकेली माता शबरी जंगल में भटक रही थी। तब उसने शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से कई गुरुवरों के आश्रम में गई । परन्तु माता शबरी तुच्छ जाति की थी इसलिये उसे सभी भगा दिया और अपने आश्रम में शरण नहीं दी।


   माता शबरी भटकती हुई मतंग ऋषि के आश्रम पहुंची और उसने अपनी शिक्षा प्राप्ति की, मतंग ऋषि ने शबरी को सहर्ष अपने गुरुकुल में स्थान दे दिया।


    *अन्य सभी ऋषियों ने मतंग ऋषि का तिरस्कार किया लेकिन मतंग ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में स्थान दिया। शबरी ने गुरुकुल के सभी आचरणों को आसानी से अपना लिया और दिन रात अपने गुरु की सेवा में लग गई ।*


    माता शबरी अपने अटूट प्रयास से शिक्षा ग्रहण करने के साथ - साथ आश्रम की सफाई, 🐂गौशाला🐂 की देख भाल , दुग्ध निकालना आदि कार्य के साथ सभी गुरुकूल के वासियों के लिये भोजन बनाने के कार्य में लग गई । कई वर्ष बीत गये, मतंग ऋषि शबरी की गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे।


    मतंग ऋषि आयु के कारण दुर्बल हो चुके थे। इसलिये उन्होंने एक दिन माता शबरी को अपने पास बुलाया और कहा- पुत्री मेरा शरीर अब दुर्बल हो चूका है, इसलिये मैं अपनी देह यहीं छोड़ना चाहता हूँ, लेकिन उससे पहले मैं तुम्हे आशीर्वाद देना चाहता हूँ - बोलो पुत्री तुम्हें क्या चाहिये ?


    *नेत्रों में आसूं भरकर माता शबरी मतंग ऋषि से कहती है कि हे गुरुवर !  आप ही मेरे पिता है, मैं आपके कारण ही जीवित हूँ, आप मुझे अपने साथ ही ले जाये।*


   *तब मतंग ऋषि ने कहा-* नहीं पुत्री तुम्हें मेरे बाद मेरे इस आश्रम की देखरेख करनी है। तुम जैसी गुरु परायण शिष्या को उसके कर्मो का उचित फल अवश्य मिलेगा।


   एक दिन भगवान श्रीराम तुम से मिलने यहाँ आयेंगे और उस दिन तुम्हारा उद्धार होगा और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। इतना कहकर मतंग ऋषि अपनी देह त्याग कर समाधि ले लेते हैं।


   *उसी दिन से शबरी हर रोज प्रातःकाल उठकर बाग़ जाती, बहुत सारे फूल एकत्रित करती थीं और  सुंदर- सुंदर फूलों से अपना आश्रम सजाती। क्यूंकि उसे भगवान श्रीराम के आने का कोई निश्चित दिन नहीं पता था, उसे केवल अपने गुरु की बात पर अति विश्वास था।*


   *इसलिये माता प्रत्येक दिन प्रभू श्रीराम के इंतजार में समय बिता रही थी। वो प्रतिदिन यही कार्य करती थी।*


     *एक दिन माता शबरी आश्रम के पास के तालाब में जल लेने गई , वहीँ पास में एक ऋषि तपस्या में लीन थे। जब उन्होंने शबरी को जल लेते देखा तो उसे अछूत कहकर उस पर एक कंकड़ मारा और उसकी चोट से बहते रक्त की एक बूंद से तालाब का सारा पानी रक्त में बदल गया।*


    यह देखकर ऋषि शबरी को बुरा भला और पापी कहकर जोर जोर से चिल्लाते हैं। माता शबरी रोती हुई अपने आश्रम में चली गई। उनके जाने के बाद  ऋषि फिर से तप करने लगे। उन्होंने  बहुत प्रयास किये । किंतु वो तालाब में भरे रक्त को जल नहीं बना पाये। *उसमें गंगा, यमुना सभी पवित्र नदियों का जल डाला गया । लेकिन रक्त जल में नहीं बदला।*


    कई वर्षों बाद, जब भगवान श्रीराम सीता माता की खोज में वहां आये तब वहाँ के लोगो ने भगवान श्रीराम को बुलाया और निवेदन किया कि वे अपने चरणों के स्पर्श से इस तालाब के रक्त को पुनः जल में पर्णित करने की कृपा करे।


    श्रीराम उनकी बात सुनकर तालाब के रक्त को चरणों से स्पर्श करते हैं। लेकिन कुछ नहीं होता ऋषि उन्हें जैसे - जैसे करने की बोलते हैं, वे सभी करते हैं । *लेकिन रक्त जल में नही बदला।*


   तब भगवान श्रीराम ऋषि से पूछते हैं कि - हे ऋषिवर ! मुझे इस तालाब का इतिहास बताये। तब ऋषि उन्हें शबरी और तालाब की पूरी कथा बताते हैं और कहते हैं - हे भगवान यह जल उसी शूद्र शबरी के कारण अपवित्र हुआ है ।


   *तब भगवान श्रीराम ने दुखी होकर कहा -* हे गुरुवर ! यह रक्त उस देवी (माता) शबरी का नहीं मेरे हृदय का है , जिसे आपने अपने आप शब्दों से मार दिया। *भगवान श्रीराम ऋषि से आग्रह करते हैं कि मुझे देवी शबरी से मिलना है। तब माता शबरी को बुलावा भेजा जाता है। राम का नाम सुनते ही शबरी दौड़ी चली आती हैं।*


   *श्रीराम मेरे प्रभु !* कहती हुई जब वो तालाब के पास पहुँचती हैं , तब उनके पैर की धूल तालाब में चली जाती है और तालाब का सारा रक्त जल में बदल जाता है।


   *तब भगवान श्रीराम कहते हैं -* देखिये गुरुवर आपके कहने पर मैंने सब किया । *लेकिन यह रक्त भक्त माता शबरी के पैरों की धूल से जल में पर्णित हो गया।*


    माता शबरी जैसे ही भगवान राम को देखती हैं , उनके चरणों को पकड़ लेती हैं । और अपने साथ आश्रम लाती हैं। उस दिन भी शबरी प्रत्येक दिन की भाँति सुबह से अपना आश्रम फूलों से सजाती हैं और बाग़ से चख- चख कर सबसे मीठे बेर अपने प्रभु राम के लिये चुनती हैं।


    *वो पुरे उत्साह के साथ अपने प्रभु राम का स्वागत करती हैं और बड़े प्रेम से उन्हें अपने जूठे बेर खिलाती हैं।*


    भगवान राम भी बहुत प्रेम से उसे खाने उठाते हैं, तब उनके साथ गये लक्ष्मण उन्हें रोककर कहते हैं – भ्राता ये बेर जूठे हैं। तब राम कहते हैं लक्ष्मण यह बेर जूठे नहीं सबसे मीठे हैं, क्यूंकि इनमे प्रेम हैं और वे बहुत प्रेम से उन बेरों को खाते हैं।


    मतंग ऋषि का कथन सत्य होता है और देवी शबरी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। और इस तरह भगवान राम, शबरी के राम कहलाए !!..


*🙏🏻🚩जय जय अखिल ब्रह्मांड नायक मेरे प्रभू श्रीराम की🚩🙏🏻*


*🙏🏻🚩ऐसी महिमा है मेरे सत् सनातन् की🚩🙏🏻*


         *- "🐂गौसेवक🐂" पं. मदन मोहन रावत*

                                               *"खोजी बाबा"*

                                              *9897315266*


*नोट : कोरोना नामक दैवीय आपदा (महामारी) से बचाव हेतु सरकारी आदेशों का पालन करें 🙏🏻*


*🙏🏻🕉️🚩हर हर सनातन्🚩🕉️🙏🏻*

*🙏🏻🕉️🚩घर घर सनातन्🚩🕉️🙏🏻*