देश को चार अभिशापों से मुक्त करेगा ‘‘ रोजगार ’’

 




प्रेम शर्मा,लखनऊ।

भारत वर्तमान समय में चार अभिशापों से जुझ रहा है। इन अभिशापों को कोरोना संक्रमण काल ने आक्सीजन देने का काम किया है। बेरोजगारी, कुपोषण, बाल श्रामिक और गरीबी को जो आंकड़ा वर्तमान समय में सामने आ रहा है वह देश को शर्मशार कर रहा है। इन चारों अभिशापों से मुक्ति के लिए केवल भारत सरकार को रोजगार देने का एक लक्ष्य निर्धारित करना होगा और उसे इन चार अभिशापों से मुक्ति मिल जाएगी। कोरोना काल के दौरान देश में बेरोजगारी का विस्फोटक स्वरूप सामने आया है। चालू वित्त वर्ष की इसी अवधि के दौरान 39.52 करोड़ लोग ही रोजगार में थे। पिछले साल की तुलना में इस साल 1 करोड़ कम नौकरियों का अनुमान है। वैसे तो देश में 2011 के बाद गरीबों की गणना नहीं हुई है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के हिसाब से 2019 में देश में करीब 36 करोड़, 40 लाख गरीब थे, जो कुल आबादी का 28 फीसद है। कोरोना के कारण बढ़े गरीबों की तादाद इन गरीबों में जुड़ेगी। दूसरी ओर, शहरी क्षेघ्त्रों में रहने वाले लाखों लोग भी गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 5 से 14 साल के 25.96 करोड़ बच्घ्चों में से 1.01 करोड़ बाल श्रम कर रहे हैं. भारत में करीब 43 लाख से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते हुए पाए गए हैं. यूनिसेफ के मुताबिक, दुनियाभर के कुल बाल मजदूरों में 12 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले भारत की है। इसके बाद अगर हम कुपोषण के मामले में चर्चा करे तो 107 देशों में से केवल 13 देश ही कुपोषण के मामले में भारत से खराब स्थिति में दर्शाए गए हैं। वर्ष 2019 में भारत 117 देशों की सूची में 102वें स्थान पर था, जबकि 2018 में 103वें स्थान पर था। इस सूचकांक के साथ जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित है एवं बच्चों में बौनेपन की दर 37.4 प्रतिशत है।अब जबकि देश एक बार फिर अनलाॅक हो चुका है तो मजदूरों और कामगारों का समूह गाॅव देहात से शहरों की तरफ निकल चुका है। बसों की भीड़ और ट्रेनों में प्रतीक्षा सूची इसका प्रमाण है कि लोगों बिना रोजगार के बिन पानी मछली की तरह तड़प रहा है। कोरोना के कहर ने न केवल उनके सपनों को बेपरदा कर दिया है, बल्कि ‘ग्राम-स्वराज’ की उस अवधारणा को खत्म कर दिया है। इसका प्रमाण गत दिवस प्रधानमंत्री की उस घोषणा से अच्छी तरह से लगाया जा सकता है कि देश की कुल आबादी की आधी से अधिक संख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। केंद्र और राज्य सरकारों ने लगभग 80 करोड़ लोगों तक मुफ्त राशन और थोड़ी-बहुत रकम पहुंचाई, पर इंसान को भोजन के साथ काम भी चाहिए। ऐसे में महानगरों की ओर लौटने को लालायित हजारों लोग साबूत है। अब प्रश्न यह कि क्या काम पर वापस पहुंच जाने भर से उनकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी ? महामारी ने लोगों की जेबें खाली कर दी हैं। बाजार खुल गए हैं, पर वहां सन्नाटा पसरा पड़ा है। कारखानों का उत्पादन बाधित है। इसका असर रोजगार और वेतन के भुगतान पर पड़ना स्वाभाविक है। ऑक्सफेम के पिछले साल प्रकाशित हुए शोध के एक बड़ी कंपनी का सीईओ 10 मिनट में जितना कमाता है, वह घरों में काम करने वाली एक महिला की सालाना आमदनी के बराबर होता है। विश्व बैंक की पिछले हफ्ते जारी रिपोर्ट कहती है कि कोरोना की वजह से यह आर्थिक खाई और चैड़ी होगी।  इस साल की शुरुआत तक महामारी के कारण लगभग 12.5 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए। यह संख्या 1.9 डॉलर से कम में रोजाना गुजर-बसर करने वालों की है। भारत में तो 32 रुपये से अधिक रोजाना खर्च करने वालों को गरीबी रेखा के नीचे नहीं गिनते। जबकि अमेरिका में रोजाना 14 डॉलर से कम खर्च करने वाले निर्धन माने जाते हैं। अजीम पे्रमजी यूनिवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार, 23 करोड़ भारतीय अब तक इस शर्मसार कर देने वाली रेखा से नीचे जा चुके हैं। भारत में  1990 से कोरोना का कहर बरपा होने तक भारत ने लगभग 30 करोड़ लोगों को आर्थिक दुर्बलता उबार गया था लेकिन कोरोना संक्रमण ने इस पर पानी फेर दिया है। स्पष्ट है, महामारी के बाद की दुनिया को अपना रंग-रोगन बदलना ही होगा। हर महामारी और महायुद्ध के बाद ऐसा ही होता आया है। पहले विश्व युद्ध ने राजतंत्रों की विदाई का रास्ता साफ किया  था। ऐसे मंें अगर भारत सरकार की बहुतायत आबादी को रोटी कपड़ा और मकान देने का श्रेय लेकर देश को बेरोजगारी, बालश्रम, गरीबी और कुपोषण जैसे अभिशाप से मुक्त करना चाहती है तो उसे देश में वास्तविक रोजगार के अधिकाधिक अवसर देने होगे। किसानों को राहत राशि, बेरोजगारों और गरीबों को सहयोग राशि आदि से अब देश का भला नही होने वाला, अन्न वितरण आदि योजना भी बिचैलियों से बच नही पाती इस लिए ऐसी योजनाओं को छोड़कर उसे पढ़े लिखे बेरोजगारों के साथ, तकनीकि ज्ञान वाले, ग्रामीण मजदूरों और शहरी कामगारों को उनकी क्षमता के अनुसार रोजगार का सृजन करना होगा। फौरी तौर पर सरकार जो कदम उठा रही है उनका लाभ क्षणिक साबित होगा। निश्चित तौर से रोजगार के अवसर सृजन करना एक कठिन लक्ष्य होगा लेकिन अगर केन्द्र की सरकार और राज्य सरकारें 75 प्रतिशत बेरोजगारी दूर करने में सफल होती है तो निश्चित ही देश कई अभिशपों से मुक्ति पाएगा।