बाल मजदूरी बोझ है, बचपन पर।बाल श्रम विरोध दिवस, पर विशेष।




हिन्दुस्तान वार्ता।

घुमन्तु पाठशाला की संस्थापक एवं समाजसेवी डॉ हृदेश चौधरी का कहना है कि बचपन पढ़ने के लिए और खेलने के लिए है, न कि नन्हे हाथों से लोहे के हथौड़ों से काम करने का है और न ही किसी ईंट के भट्टे और होटल में बर्तन साफ करने का होना चाहिए। बच्चों के इन्ही अधिकारों को दिलाने के लिए घुमन्तु पाठशाला स्थापित कर डॉ चौधरी ने सड़क के किनारे जीवन यापन कर गाड़िया लुहार एवं भीख मांगने वाले बच्चों को शिक्षित करके उनको समाज की मुख्यधारा में शामिल करना का संकल्प लिया ताकि कोई भी मजदूरी की तरफ कदम न बढ़ा सकें। डॉ चौधरी का सोचना है कि सड़क के किनारे रह रहे बच्चों को बेहतर भविष्य देना हम सबका दायित्व है।

आज हम ऐसे बच्चों की वास्तविक तस्वीर पर नजर डाले तो स्थिति बहुत भयावह है क्योंकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या लगभग दो करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार लगभग पाँच करोड़ है. इसमें भी लगभग साढ़े चार लाख बाल श्रमिक पांच वर्ष से कम आयुवर्ग के हैं. इन बाल श्रमिकों में लगभग 19 प्रतिशत घरेलू नौकर हैं. सड़क किनारे लोहा पीटकर घरेलू सामान बनाने वाला एक बहुत बड़ा समाज जिसको गढ़िया लुहार कहते हैं वो अपने बच्चों को शुरू से ही अपने धंधे में लगा लेता है। ऐसे तमाम बच्चों को इनको अपना बचपन मिल सके इसी प्रयास में डॉ चौधरी करीब पिछले दस वर्षों से निरन्तर इन बच्चों के हाथों में कलम थमाकर उनके सपनों को साकार करने में जुटी हुई हैं।

कोरोना वायरस महामारी साफतौर पर बाल अधिकारों के लिए संकट के रूप में उभरी है जिससे कई और परिवारों के गरीब होने के कारण बालश्रम बढ़ने का जोखिम और बढ़ गया, ऐसी विषम परिस्थितियों में ये जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि इनका हमदर्द बनकर सम्बल प्रदान करें। और कहते भी हैं कि जिस तरह एक छोटा सा दीपक घनघोर अंधेरे को दूर कर देता है उसी तरह छोटे छोटे प्रयासों से बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, आज हम सबको वही छोटे दीपक बनकर इन बच्चों के जीवन को रोशन करना है और बाल मजदूरी बोझ है बचपन पर इस कलंक को मिटाने का काम करना है।


डॉ हृदेश चौधरी

समाजसेवी एवं लेखिका

प्रदेश सचिव, आम आदमी पार्टी ।