सिद्ध पुरूष थे बागपत शुगर मिल स्थित दुर्गा मन्दिर के पुजारी।





- कई दशकों तक बाबा की कर्मभूमि और तपोभूमि रहे इस मन्दिर की प्रतिमाओं में है आलौकिक शक्तियों का निवास

- समस्त भगवानों, देवी-देवताओं को माता-पिता के समतुल्य मानते हुए पूरी निष्ठा और श्रद्धाभाव के साथ की सेवा

बागपत, उत्तर प्रदेश। विवेक जैन

बागपत की धरती हमेशा से ही ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण रही है। इस धरती पर जहाॅं एक और भगवान परशुराम ने भगवान शिव के शक्ति से सम्पन्न शिवलिंग की स्थापना की, वहीं दूसरी और महर्षि वाल्मीकि की कर्म स्थली रहे इस क्षेत्र में माता सीता और लव-कुश को आश्रय मिला। बागपत की इसी चमत्कारिक भूमि पर सरूरपुर खेड़की गांव में हुक्मचंद नाम के एक सिद्धपुरूष ने जन्म लिया। उन्होंने ज्ञान की प्राप्ति के लिये भारतवर्ष के कई क्षेत्रों का भ्रमण किया। जिस समय बागपत कोपरेटिव शुगर मिल परिसर में मां दुर्गा मन्दिर निर्माण का कार्य पूर्ण हुआ उस समय मां दुर्गा मंदिर समिति के सदस्यों के बहुत आग्रह करने के उपरान्त मन्दिर के मुख्य पुजारी बनने के लिये बाबा राजी हो गये। बताते है कि वह अस्वस्थ होने के बाबजूद भी हर ऋतु में सभी भगवानों, देवी-देवताओं की एक छोटे से बच्चे की भांति देखभाल किया करते थे। वे पूरी निष्ठा और श्रद्धाभाव के साथ पूजा करते थे। बढ़ती उम्र के साथ-साथ उनकी कमर तक लगभग पूरी तरह झुक चुकी थी इसके बाबजूद उन्होंने नियमित समय पर पूजा-अर्चना करनी नही छोड़ी। अनेकों दशकों तक भगवान की सेवा करने के उपरान्त वे नवम्बर 2010 को ब्रहमलोक के लिये गमन कर गये। कहते है कि बाबा की कर्म और तपस्थली रहे इस मन्दिर की मूर्तियों में आलौकिक शक्तियों का वास है। लोग बाबा को सिद्ध पुरूष, महान संत मानते है। बाबा मन्दिर परिसर को शांत रखने का पूरा प्रयास करते थे, जिससे वहां उपस्थित भगवान, देवी-देवताओं के विश्राम में कोई व्यवधान उत्पन्न ना हो। अगर कोई असमय मंदिर की शांति भंग करता था उस पर क्रोधित हो जाते थे। कहते है कि आज भी बाबा की इस मंदिर पर विशेष कृपा दृष्टि है। इस मंदिर में श्रद्धापूर्वक माथा टेकने से बाबा की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है, दुख-दर्द दूर होते है।