आगरा के निर्यातकों को कंटेनर की अनुपलब्धता से बहुत बड़ी हताशा। नेशनल चैम्बर



आगरा में डिपो होते हुए भी कोंकर नहीं उपलब्ध करा रहा है कंटेनर। 

मजबूरी में अधिक भाड़ा देकर कंटेनर मंगाने पड़ रहे हैं, दादरी,कानपुर, ग्वालियर आदि से। 

विभिन्न शिपिंग लाइनों की कंपनी कंटेनर के भाड़े की मनमानी से निर्यातकों में रोष। 

आगरा से लगभग 6000 करोड़ का निर्यात होता है प्रतिवर्ष, जिसमें विभिन्न उद्योग शामिल है जैसे जूता, उद्योग फाउंड्री उद्योग हस्तशिल्प आदि। 

निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ की बैठक आज हुई चैम्बर भवन में। 

निर्यातकों ने व्यक्त की अपनी पीड़ा।  

चेंबर लिखेगा माननीय कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल एवं विभिन्न मंत्रालयों को पत्र ।

अगर ऐसे ही हाल रहा तो आगरा से रुक सकता है निर्यात व्यापार।  

आगरा।हि.वार्ता (धर्मेन्द्र कु.चौधरी)

आज चैम्बर भवन में नेशनल चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल एवं व्यापार प्रकोष्ठ के चेयरमैन जय अग्रवाल की संयुक्त अध्यक्षता में निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ की बैठक आयोजित की गई जिसमें निर्यातकों ने आगरा से निर्यात करने में जो परेशानियां आ रही हैं उन्हें व्यक्त किया। 

अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने कहा कि आगरा के निर्यातकों की परेशानियों के संबंध में माननीय कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल जी एवं विभिन्न मंत्रालयों को  पत्र लिखकर अवगत कराएंगे और हालातों को सुधारने के लिए अनुरोध करेंगे नहीं तो  हालात न सुधरने पर आगरा से निर्यात व्यापार रुक जायेगा। 

निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ के चेयरमैन जय अग्रवाल ने बताया कि आगरा में  कंटेनर उपलब्ध न होने तथा साथ ही विभिन्न शिपिंग लाइन की कंपनियों में कंटेनर की उपलब्धता न होने से निर्यात व्यापार में बहुत पेरशानी का सामना करना पड़ रहा है।   पूर्व में कंटेनर इनलैंड हॉलेज चार्ज ( आईएचसी)  (अर्थात रेलभाड़ा आगरा से मुंबई तक) कोंकर द्वारा निर्वहन किया जाता था जिसका भुगतान निर्यातक करता है जो अब कोंकर ने कंटेनर की अपनी  जिम्मेदारी शिपिंग लाइन कंपनियों पर डाल दी है जिसके चलते शिपिंग लाइन की  कंपनी मनमानी वसूली कर रही हैं।  निर्यातकों को शिपिंग लाइनों से कंटेनर मंगाना उनकी मजबूरी है क्योंकि समय पर निर्यात न होने पर कई पेनल्टियों का सामना करना पड़ता है।  जैसे निर्यात में सबसे बड़ी शर्त है *समय पर आपूर्ति का करना* जिसके न होने पर निर्यातक बर्बाद तक हो सकता है।  जैसे एल/सी का  कैंसिल होना, विदेशी क्रेता (आयातकर्ता) द्वारा ऑर्डर कैंसिल कर देना या निर्यात किये गए माल लेने से अस्वीकार कर देना इत्यादि। 

निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ के सलाहकार राजेश अग्रवाल ने अवगत कराया कि कंटेनर के उपलब्ध न होने से निर्यातक स्वयं अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए दादरी, मुरादाबाद, कानपुर, ग्वालियर आदि से कंटेनर सड़क मार्ग द्वारा आगरा मंगाते है। यह खर्चा अतिरिक्त होता है।  आज की प्रतिस्पर्धा में यह खर्चे निर्यातक के लिए भारी बोझ है। 

राजेश अग्रवाल ने आगे बताया कि निर्यातक कंपनी पर कस्टम द्वारा चेकिंग में उन्हें  रिस्की एक्सपोर्टर फ्लैग मार्क कर दिया जाता है जिसके चलते निर्यातक को जो प्रोत्साहन मिलता है उस पर रोक लग जाती है।  विभिन्न  विभागों द्वारा कागजी कार्यवाही से मानसिक उत्पीड़न किया जाता है।  निर्यातक द्वारा कई बार बड़े-बड़े आर्डर पूरे करने के लिए क्रेडिट के रूप में बैंकों का सहारा लेना पड़ता है जिसकी ब्याज तय समय पर चुकानी पड़ती है। परन्तु रिस्की एक्सपोर्टर की कागजी कार्यवाही के चलते समय पर निर्यात नहीं हो पता और कोई भी नुक्सान निर्यातक को ही झेलना  पड़ता है। 

निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ के सलाहकार अनूप गोयल ने बताया कि निर्यातक को  सबसे बड़ा व अहम मुद्दा जीएसटी रिफंड का भी है। जीएसटी रिफंड भी रोक दिया जाता है। साथ ही जीएसटी विभाग द्वारा मानसिक व कागजी कार्रवाई के लिए उत्पीड़न किया जाता है। 

चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने कहा कि आगरा के निर्यातक व्यापारियों के समक्ष यह एक बहुत बड़ी गंभीर समस्या है कि आगरा में डिपो होते हुए भी निर्यातकों को कंटेनर उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं।   चेंबर इस संबंध में सभी संबंधित विभागों के समक्ष इस पेरशानी को पुरजोर उठाएगा ताकि आगरा के निर्यात व्यापार के लिए कोंकर द्वारा कंटेनर समय पर उपलब्ध कराये जा सकें।  

बैठक में अध्यक्ष मनीष अग्रवाल, निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ के चेयरमैन जय ग्रवाल,  भुवेश कुमार अग्रवाल, कपोषाध्यक्ष गोपाल खंडेलवाल, निर्यात व्यापार प्रकोष्ठ के सलाहकार राजेश अग्रवाल, अनूप गोयल एवं विशेष आमंत्रित सदस्य मयंक मित्तल उपस्थित थे।