ये मानव जन्म अनमोल है, हमें इसे भक्ति मार्ग से सार्थक बनाना है।महामंडलेश्वर हिमांगी सखी




आगराः हिन्दुस्तान वार्ता(प्रतिभा जिंदल)

विश्व की प्रथम किन्नर भागवताचार्य महामंडलेश्वर हिमांगी सखी मां शनिवार को सुबह आगरा आईं। दोपहर को अतिथिवन में उन्होंने पत्रकारों से बातचीत की। वार्ता के कुछ अंश ......

प्रश्न:-आपने अपने जीवन में किस प्रकार का संघर्ष किया।

 महामंडलेश्वर हिमांगी: जब मुंबई में मेरे मम्मी पापा का निधन हुआ, तब बहन की शादी करके हम वृंदावन आ गए। वृंदावन में गुरुकुल में रह कर शास्त्रों का अध्ययन किया। यदि आपको शास्त्रों का अध्ययन करना है, गुरुकुल में रहना है और कुछ प्राप्त करना है तो आपको कुछ तो त्याग करना पड़ेगा। मैंने जितना हो सका, शास्त्रों का अध्ययन किया। गुरु की शरण में रहकर। बाद में गुरू जी ने कहा कि शास्त्रों के आधार पर धर्म का प्रचार कीजिए। गुरुजी के बात मानी, क्योंकि वह शायद कृष्ण की आज्ञा थी। मैंने वृंदावन छोड़ मुंबई गई, तब से धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगी।

प्रश्नः- ग्लैमर वर्ल्ड से नाता रखने वाला एक धार्मिक व्यक्ति कैसे हो सकता है।

महामंडलेश्वर हिमांगी:- शास्त्रों का अध्ययन और भगवान के प्रति रुचि तो हमें बचपन से ही थी। हमारे पास पेट पालने के लिए उस वक़्त कुछ भी नहीं था। यह जो कला हमारे अंदर थी, उसका हमने उपयोग किया। हमने फिल्म इंडस्ट्री में काम किया और साथ-साथ शास्त्रों का अध्ययन भी किया। जब शास्त्रों का अध्ययन पूर्ण हुआ तो उसके बाद हमने फिल्म इंडस्ट्री का काम छोड़ दिया। सिर्फ श्री हरि के नाम का सिमरन और उनके नामों का प्रचार कर अपने जीवन को समर्पित किया।

प्रश्न:-आपको मां मंडलेश्वर की उपाधि कहां से मिली?

महामंडलेश्वर हिमांगी:-हमें मां मंडलेश्वर की उपाधि पशुपति पीठ से मिली है। कुंभ में हमारे गुरुजी गौरी शंकराचार्य जी महाराज को जब यह पता चला हम भागवत कथाएं करते हैं और आने वाली पीढ़ीयों एक संदेश देना चाहते हैं। उन्होंने कहा हम आपको इस उपाधि से सम्मानित करेंगे, क्योंकि आप इनके योग्य लगती हैं। आपको हमारे अखाड़े की तरफ से पूरा सहयोग रहेगा। आगे जो आपने शास्त्रों का अध्ययन किया है, वह जन जन तक आ पहुंचे।

प्रश्न:-क्या यह अखाड़ा भारत वर्ष से है ?

महामंडलेश्वर हिमांगी:- नहीं नेपाल से।

प्रश्न:- ऐसा क्या रहा कि आप नेपाल से ही महामंडलेश्वर बनी?

महामंडलेश्वर हिमांगी: - किन्नर अखाड़ा जब बना तो है तो जाकर पूरे विश्व में किन्नरों को सम्मान मिला। किन्नर अखाड़ा बनने के बाद इतना प्रेम किया है कि समाज में किन्नरों को अपने गले लगाया। उनको स्थान दिया है और आज वह पूजनीय है विश्व में। किन्नर अखाड़ा से अगर हमने महामंडलेश्वर लिया तो एक आम बात होती है, क्योंकि किन्नर अखाड़े में किन्नरों को तो महा मंडलेश्वर, उनके आचार्य जी तो देंगे ही। इसके अलावा कोई और अखाड़ा अगर किन्नर को मान्यता देता है अपनाता है, उन्हें महामंडलेश्वर बनाता है तो यह एक बहुत पॉजिटिव मैसेज समाज को जाता है। अब तो और भी अखाड़े हैं जो है किन्नरों को अपनाने लगे हैं।

प्रश्न:- अब आप पद गरिमा का ध्यान रखते हुए आपका अगला कदम क्या होगा?

महामंडलेश्वर हिमांगी:-पद की गरिमा सर्वप्रथम है। हमें आने वाली पीढ़ी को शास्त्रों के माध्यम से संदेश देना है कि अपनी गरिमा को बनाए रखना है। मानव जन्म मिला है, वह अनमोल है। हमें मानव का जन्म मिला है तो मैं तो यही जानती हूं मुझे यह मनुष्य जन्म मिला है मनुष्य का जन्म सार्थक करना है। अगर यह जन्म मिला है तो हमारी आने वाली पीढ़ी और हमारे बच्चों के लिए समर्पित करते अपने लिए तो हर कोई जीता है जीना उसका नाम है जो औरों के लिए जिएं।

प्रश्न: अब तक कितनी कथाएं कर चुके हैं और आगे क्या योजना है।

महामंडलेश्वर हिमांगी:- बैंकॉक, सिंगापुर, दुबई, मॉरीशस, मुंबई, पटना आदि में 50 से अधिक कथाएं कर चुकी हैं।

प्रश्न:- सामान्य वर्ग के लोग भी आपकी कथा में जुड़ते हैं?

महामंडलेश्वर हिमांगी:- सामान्य वर्ग ने अपना माना है। तभी तो हम यहां तक पहुंचे हैं।

प्रश्न: हमारी सनातन पद्धति में इस तरह की शिक्षा व्यवस्था देखना चाहती हैं।

महामंडलेश्वर हिमांगी:-हम अपने बच्चों को सबसे पहले स्कूल भेजें। उसके साथ-साथ सनातन धर्म का ज्ञान दीजिए। जब धर्म का ज्ञान होगा तो उनको जीवन जीने की कला अपने आप पता चल जाएगी। क्योंकि धर्म व शास्त्र जीवन जीने की कला सिखाते हैं।

 वार्ता में ...

कार्यक्रम संयोजक डीके शर्मा गुरु जी, सूरत से आए अंतरराष्ट्रीय वैश्य समाज के महामंत्री राजू खंडेलवाल, आदर्श नंदन गुप्त, मुकेश नेचुरल, प्रतिभा जिंदल, नारायन बहरानी, नवीन अग्रवाल, भूपेंद्र जुरैल, हर्ष अग्रवाल, शरद गुप्ता आदि उपस्थित थे।