"दुआओं की दीवाली"जय श्री महाकाल।संकलन:अजय कुमार गुप्ता



    

प्रेरक प्रसंग : दीपावली विशेष।

एक दिन एक महिला ने अपनी किचिन से सभी पुराने बर्तन निकाले। पुराने डिब्बे, प्लास्टिक के डिब्बे,पुराने डोंगे,कटोरियां,प्याले और थालियां आदि। सब कुछ काफी पुराना हो चुका था।

फिर सभी पुराने बर्तन उसने एक कोने में रख दिए और बाजार से नए लाए हुए बर्तन कायदे करीने से रखकर सजा दिए।

बड़ा ही पॉश लग रहा था अब उसका किचिन। फिर वो सोचने लगी कि अब ये पुराना सामान भंगारवाले‌ को दे दिया जाए तो समझो हो गया काम ,साथ ही सिरदर्द भी ख़तम औऱ सफाई की सफाई भी हो जाएगी ।

इतने में उस महिला की कामवाली आ गई। दुपट्टा खोंसकर वो फर्श साफ करने ही वाली थी कि उसकी नजर कोने में पड़े हुए पुराने बर्तनों पर गई और बोली- बाप रे! मैडम आज इतने सारे बर्तन घिसने होंगे क्या? और फिर उसका चेहरा जरा तनावग्रस्त हो गया।

महिला बोली-अरी नहीं!ये सब तो भंगारवाले को देने हैं...सब बेकार हैं मेरे लिए ।

कामवाली ने जब ये सुना तो उसकी आंखें एक आशा से चमक उठीं और फिर चहक कर बोली- मैडम! अगर आपको ऐतराज ना हो तो ये एक पतीला मैं ले लूं?(साथ ही साथ उसकी आंखों के सामने उसके घर में पड़ा हुआ उसका इकलौता टूटा पतीला नजर आ रहा था)

महिला बोली- अरी एक क्यों! जितने भी उस कोने में रखे हैं, तू वो सब कुछ ले जा अगर तेरे काम के हैं तो । मेरा उतना ही सिरदर्द कम होगा।

कामवाली की आंखें फैल गईं- क्या! सब कुछ?

उसे तो जैसे आज अलीबाबा की गुफा ही मिल गई थी।

फिर उसने अपना काम फटाफट खत्म किया और सभी पतीले, डिब्बे और प्याले वगैरह सब कुछ थैले में भर लिए और बड़े ही उत्साह से अपने घर की ओर निकली।

आज तो जैसे उसे चार पांव लग गए थे। घर आते ही उसने पानी भी नहीं पिया और सबसे पहले अपना जूना पुराना और टूटने की कगार पर आया हुआ पतीला और टेढ़ा मेढ़ा चमचा वगैरह सब कुछ एक कोने में जमा किए, और फिर अभी लाया हुआ खजाना (बर्तन) ठीक से जमा दिये।

आज उसके एक कमरेवाला किचिन का कोना पॉश दिख रहा था।

तभी उसकी नजर अपने पुराने बर्तनों पर पड़ी और फिर खुद से ही बुदबुदाई- अब ये सामान भंगारवाले को दे दिया कि समझो हो गया काम।

तभी दरवाजे पर एक भिखारी पानी मांगता हुआ हाथों की अंजुल करके खड़ा था- मां! पानी दे।

कामवाली उसके हाथों की अंजुल में पानी देने ही जा रही थी कि उसे अपना पुराना पतीला नजर आ गया और फिर उसने वो पतीला भरकर पानी भिखारी को दे दिया।

जब पानी पीकर और तृप्त होकर वो भिखारी बर्तन वापिस करने लगा तो कामवाली बोली- फेंक दो कहीं भी।

वो भिखारी बोला- तुम्हें नहीं चाहिए? क्या मैं रख लूं अपने पास?

कामवाली बोली- रख लो, और ये बाकी बचे हुए बर्तन भी ले जाओ और फिर उसने जो-जो भी भंगार समझा वो उस भिखारी के झोले में डाल दिया।

वो भिखारी खुश हो गया।

पानी पीने को पतीला और किसी ने खाने को कुछ दिया तो चावल, सब्जी और दाल आदि लेने के लिए अलग-अलग छोटे-बड़े बर्तन, और कभी मन हुआ कि चम्मच से खाये तो एक टेढ़ा मेढ़ा चम्मच भी था।

आज उसकी फटी झोली पॉश दिख रही थी।

सुख किसमें माने, ये हर किसी की परिस्थिति पर अवलंबित होता है।

हमें हमेशा अपने से छोटे को देखकर खुश होना चाहिए कि हमारी स्थिति इससे तो अच्छी है। जबकि हम हमेशा अपनों से बड़ों को देखकर दुखी ही होते हैं और यही हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण होता है।

हमेशा जरूरतमंद को देने की आदत डालने से एक चेन बनती जाती है । अगर हम चेन मार्केटिंग के कॉन्सेप्ट को हमेशा ध्यान में रखें तो चेन के अंतिम लाभार्थी की दुआ ,पहले दानदाता को मिलती है ।

दीपावली की सफाई का समापन है,

हमारी शुभकामनाएं हैं आपका घर नये क्रॉकरी, कपड़े, फ़र्नीचर से जगमग हो ,पुराने का क्या करना है आप बहुत बेहतर जानते हैं!

बस आप सभी की झोली हमेशा दुआओं से भरे, यही आदिदेव महादेव-श्री महाकालेश्वर जी से प्रार्थना है।

सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।सा.पौराणिक कथाएं।

जय जय श्री महाकाल..🙏