संस्कार :संकलन-ध्रुव अग्रवाल।



 प्रेरक प्रसंग:-

 विवाह के बाद बेटी पहली बार मायके आयी, तो बेटी का स्वागत सप्ताह भर चला। सम्पूर्ण सप्ताह भर बेटी को जो पसन्द है, वही सब किया गया। जब बेटी वापिस ससुराल जाने लगी, तब पिता ने बेटी को एक अगरबत्ती का पूड़ा दिया।

माँ ने कहा कि बिटिया प्रथम बार मायके से ससुराल जा रही है, तो ऐसे कोई अगरबत्ती जैसी चीज कोई देता है भला। अब पिता ने झट से जेब मे हाथ डाला और जेब मे जितने भी रुपये थे, वो भी सब बेटी को दे दिए।

ससुराल में पहुंचते ही सासू-माँ ने बहू से पूछा कि मात-पिता ने बेटी को बिदाई में क्या दिया? जब उन्हें अगरबत्ती का पूड़ा भी दिखा, तो सासू-माँ ने बहू को कहा कि कल पूजा में यह अगरबत्ती लगा लेना।

सुबह जब बेटी पूजा करने बैठी, तो उसने वह अगरबत्ती का पूड़ा खोला, जिसमें से एक चिट्ठी निकली। चिठ्ठी में लिखा था..।

"बेटी ! यह अगरबत्ती स्वतः जलती है, मगर  संपूर्ण घर को सुगंध से भर देती है। इतना ही नहीं यह आजू-बाजू के वातावरण को भी अपनी महक से प्रफुल्लित कर देती है....!!

हो सकता है कि तुम कभी पति से रूठ जाओ या कभी अपने सास-ससुरजी अथवा देवर-ननद से नाराज हो जाओ या कभी तुम्हें किसी से बातें सुननी पड़ जाए या फिर कभी पड़ोसियों से तुम्हारा दिल खट्टा हो जाये, तब तुम मेरी यह भेंट का ध्यान करना। स्वयं अगरबत्ती की तरह जलना और पूरे घर को प्रफुल्लित रखना। तुम स्वतः सहन कर ससुराल को अपने व्यवहार और कर्म से सुगंधित करना...।

बेटी चिट्ठी पढ़कर फफक-फफकर रोने लगी। सासू-माँ लपककर आयी। पति और ससुरजी भी पूजा घर मे पहुंचे, जहां बहू रो रही थी।

"अरे हाथ को चटका लग गया क्या?" ऐसा पति ने पूछा।

"क्या हुआ ? यह तो बताओ" - ससुरजी बोले।

सासू-माँ आजू-बाजू में  देखने लगी, तो उन्हें बहू के पिता द्वारा सुंदर अक्षरों में लिखी चिठ्ठी नजर आयी। चिट्ठी पढ़ते ही उन्होंने बहू को गले लगा लिया और चिट्ठी ससुरजी के हाथों में दे दी। चश्मा ना पहने होने की वजह से उन्होंने चिट्ठी बेटे को देकर पढ़ने के लिए कहा। सारी बात समझते ही संपूर्ण घर स्तब्ध हो गया।

"सासू-माँ बोली "अरे ! यह चिठ्ठी फ्रेम करानी है। यह मेरी बहू को मायके से मिली हुई सबसे अनमोल भेंट है। इसे पूजा-घर में ही होना चाहिए.....।

  "यही हैं संस्कार.....।

   जय माता दी......🙏

लेखक-युवा व्यवसाई/समाज सेवी हैं।