बुन्देलखण्ड की चट्टानें आज से 250 करोड़ साल पहले चार चरणों में हुईं थी निर्मित - डाॅ. वी. के. सिंह

 


हिन्दुस्तान वार्ता।

विश्वविद्यालय की भूगर्भशास्त्र अध्ययन शाला में व्याख्यानमाला का हुआ सार्थक आयोजन।

  छतरपुर। महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर की भू-गर्भ शास्त्र अध्ययन शाला द्वारा रूसा एवं विश्व बैंक परियोजना की गुणवत्ता उन्नयन योजना अंतर्गत तथा आजादी का अमृत महोत्सव के तहत्  27 व 28 दिसम्बर को दो दिवसीय व्याख्यान माला का आयोजन विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो.टी.आर.थापक के संरक्षण एवं कुलसचिव डॉ. जे.पी.मिश्र के निर्देशन में किया गया। भूगर्भशास्त्र अध्ययन शाला के  विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पी.के.जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि 27 दिसम्बर को प्रोफेसर एम.एम.सिंह, आचार्य, भूविज्ञान विभाग, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी द्वारा 'सुदूर संवेदी तकनीकी का भूआकृति विज्ञान, संरचनाओं,शैल विज्ञान एवं भूजल विज्ञान में अनुप्रयोगों' पर विशेष व्याख्यान दिया गया।इस दौरान उन्होंने सुदूर संवेदन तकनीक से परिचय करवाते हुए,वर्तमान में कृषि,भूविज्ञान,पुरातात्विक,समुद्र विज्ञान, आर्किटेक्चर, वानिकी और लैण्ड कवर व लैण्ड यूज के लिए रिमोट सेन्सिंग की बढ़ती उपयोगिता और संभावनाओं से अवगत कराया।

       व्याख्यान माला के दूसरे दिन 28 दिसम्बर को डॉ. वी. के. सिंह, झांसी यूनिवर्सिटी, 'बुंदेलखंड क्रेटोन की जियोलॉजी एण्ड स्ट्रक्चर' विषय पर व्याख्यान देते हुए,उन्होंने बुन्देलखण्ड में पायी जाने वाली चट्टानों और संरचनाओं के विकास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बुन्देलखण्ड में स्थित शैलों का निर्माण आज से 250 करोड़ या 2500 मिलियन वर्ष पहले चार विभिन्न चरणों में हुआ था। कार्यक्रम के दौरान भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूतपूर्व डायरेक्टर जनरल व प्रख्यात भूवैज्ञानिक श्री एन. के. दत्ता द्वारा ऑनलाइन जुड़कर सभी का उत्साहवर्धन किया गया,वहीं उन्होंने इस व्याख्यानमाला को बहुपयोगी बताते हुए सराहना भी की।इस व्याख्यान माला को ऑफलाइन आयोजित करने के साथ ही, गूगल मीट के माध्यम से ऑनलाइन भी उपलब्ध कराया गया,जिससे देश के विभिन्न हिस्सों से भी विद्यार्थियों ने शामिल होकर लाभ उठाया। व्याख्यानमाला में भूगर्भ शास्त्र के स्नातकोत्तर प्रथम सेमेस्टर व तृतीय सेमेस्टर के विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में ऑफलाइन शामिल होकर सुदूर संवेदन और बुंदेलखंड क्रेटान से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल कीं और इसे अत्यंत लाभकारी बताते हुए गागर में सागर भरने की संज्ञा दी।कार्यक्रम को सफल बनाने में इमरान सिद्दीकी,आशी जैन व लक्ष्मण लोधी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा।