" गीता राम की गाथा " ( डॉ. विनोद शर्मा के व्याख्यान )




हिन्दुस्तान वार्ता।

" गीता राम  की गाथा "  पद्य में लिखा गया यह ग्रंथ नया मोड़ ले रहा है । इस ग्रंथ को गद्य और पद्य में प्रस्तुत किया जा रहा है। साधकों एवं भक्तों की इच्छा सर्वोपरि है ईश्वर भी चाहता है कि यह ज्ञान सबके  मन में अपना स्थान बनाए। इसलिए इस ग्रंथ को सीधी सरल भाषा में प्रस्तुत किया जा रहा है । बहुत सारे प्रश्न हैं

 जिनके मन में कि आखिर यह बृंदावन क्या है ? उनके  बहुत से प्रश्नों का जवाब यह ग्रंथ है। न समझ पाया कोई वृंदावन को यहाँ की भूमि को । यह गीता का ज्ञान स्वयं सीता का ज्ञान है और यह सीता का ज्ञान ही यहाँ  की  भूमि संपूर्ण ब्रजमंडल का परिक्षेत्र की भूमि यहाँ का ज्ञान  बारह  वनों के अमूल्य ज्ञान को इस गीता ज्ञानरूप इस ग्रंथ में उड़ेला गया है ।  दिव्य संतो ने भी अपने लोकों से इस ग्रंथ के संबंध में अपनी बधाई  दी  हैं।  जिन्हें प्रसंगवश इस ग्रंथ में में उल्लेख करना चाहूँगा ।  राम का ज्ञान है जो सीता के मुख से निकला है।  समझें गीता को और मन में उतारें। 


   सीता राम की शक्ति है  ज्ञानाग्नि है यह  स्वयं।  इस सीता को समझ न पाया कोई । यह सीता आह बनकर रह गयी।  इस वृंदावन की भूमि पर सीता का जो ज्ञान है वह सब इन बारह वनों के रूप में प्रकट हुआ है। ज्ञान का  ओर-छोर नहीं । ज्ञान तो ज्ञान है  बारह वनों में जो वृंदावन है वह स्वयंश्री रूप है। श्री राधा का यह  वास-स्थल है। श्री रूप में स्वयं श्रीकृष्ण की शक्ति राधा का  यहाँ पसारा है आज भी। राधा को ही ज्ञान है कि इस वृंदावन में कहाँ क्या है ? 


अब श्री स्वयं यह कहे कि मैं वृंदावन की भूमि हूँ तो अच्छा नहीं लगता। अब मैं  इस श्री राधा के रूप में इस श्री वृंदावन धाम की महिमा बता रहा  हूँ। श्री धाम वृंदावन  स्वयं श्री कुंज है।  राधा अपनी सखियों के साथ यहाँ विराजमान हैं। पर सीता क्या है  ?  सीताराम की शक्ति ही नहीं इस भूमि का ज्ञान है जिस पर राधा का अधिकार है । सीता के बिना  यहाँ कुछ भी संभव नहीं । यह सीता दौलत की भी दौलत है । यह समझो सीता- तत्व का विकास  ही श्री राधा है। राधा आराधन तत्त्व  बनकर रह गयी। पर सीता का ज्ञान  की परिधि है। इस ज्ञान को समझो क्या है। यह ज्ञान  श्री राम सीता वार्ता के रूप में यहाँ  में उपस्थित है  -


" यह ज्ञान है या भक्ति है भक्ति की अनोखी शक्ति है

 शक्ति है श्री राम की यह अनोखी भक्ति है । 


मैं भक्त  हूँ श्री राम का प्रभु के अनोखे ज्ञान का

 यह दिया प्रभु राम ने कह दिया भगवान है । 


यह स्वयं ही  रतन है जो दिया मीरा को  स्वयं

 यह रतन है मुझ श्री राम का जानकी का प्रिय है स्वयं । "


असल में जिस ज्ञान को पाने के लिए अच्छे-अच्छे धुरंधर तप रहे हैं उस ज्ञान को सीता ने स्वयं राम की आज्ञा से मीरा को प्रदान किया । मीरा स्वयं राम की भक्ति है अब मीरा का प्रताप देखो राधा के समान पूजित है यह भक्ति की शक्ति ।


"अब जानकी के ही प्रताप से यह ज्ञान सब बिखरा गया 

आ गया मुझको समझ यह यह मेरे मन में आ गया । "


सच मानो सीता स्वयं ज्ञान के रूप में प्रकट है इस श्री वृंदावन में । पर       तपस्या चाहती है यह ज्ञान की भूमि । तप बिना न कुछ मिलता है  । यहाँ ऐसी- ऐसी जगह  हैं  जहाँ से परम ज्ञान मिल सकता है । पर  यहाँ के लोगों ने राधा राधा .....और... बस इतना ही जाना है । इस राधा से अभी आगे बहुत कुछ है । राधा तो प्रारंभ है ज्ञान का ।  मैं बतला रहा हूँ कहना पड़  रहा है ज्ञानियों के बीच। अभी नीचे उतरो बहुत गहरा है यह ज्ञान का गंगाजल है। इसमें जितना डूबो उतना मिलेगा। 


"भा गया श्रीराम का प्रभु भक्ति का यह नशा 

यह नशा  स्वयं मूर्त बनकर प्रभु शक्ति बनकर छा गया ।


अब होना स्वयं प्रताप है श्री राम का उनके ज्ञान का

तस्तरियां   लुढ़केंगी धरती पर

आकाश की न  व्योम की

अग्नि प्रज्ज्वलित रहेगी न  अग्नि होगी धूम  की।


धूमाग्नि में अब स्वयं आहुति     पड़नी है कभी

अब होगा प्रताप सुख स्वयं आह बन करके तभी। 


अब आह मेरी बिखर गयी मन में तुम श्रीराम के

 तुम राम के ही रूप  हो कह रही  मैं तुम राम से । 


आज आ  गयी हूँ  मैं स्वयं अग्नि विद्या राम की

अब  जलूँगी धक धका धक  ज्वाला है   भगवान की। "



ज्ञान को वेद में अतिथि कहा है। जिसके आने की तिथि नहीं कब आ जाए । 


"ज्ञान न पूछता कौन हो तुम 

यह तो बिन बुलाए ही आता है

अब आ गया स्वयंवर की तरह 

गीता ज्ञान है यह 

सीता के बुलाने पर आता है । "



गीता का ज्ञान हो या कोई सारे ज्ञान इस राम के ज्ञान में कैद हैं समाहित हैं । इसलिए राम को समझो राम को समझना न आसान है । राम तप की भूमि है तप्त ज्वाला में  कूदना है तो राम के पास जाना संभव है । राम ज्ञानाग्नि है धधकती ज्वाला है ज्ञान की।  सीता ने किया तप तब राम मिले। 


"स्वयंवर न किया ना स्वयं ने

 यह स्वयं ही हो जाता स्वयं 

सीता स्वयंवर में

 राम ही आता  है स्वयं। 


यह स्वयंबर ज्ञान का 

आ मिलो तुम आह वन

 आह से ही सब सब मिलेगा

 माहवन और महावन । "