शुक्र प्रदोष " डॉ विनोद शर्मा , ज्योतिष एवं पराविद्

 


हिन्दुस्तान वार्ता।

प्रदोष कोई भी हो सब प्रदोष 'भगवान शिव' को अर्पित हैं। शिव स्वयं  शक्ति है ज्ञान की । इस ज्ञान की जो स्वयं सृष्टि के कल्याण का द्योतक है । शिव शब्द में समाहित ज्ञान का यह रूप स्वयं   वार, नक्षत्रों मेंआकर भी अपनी छवि को  तदरूपता में प्रदर्शित करता है । यूं मानो तो सब कुछ शिव ही है । इस ईश्वर -शक्ति के अनुरूप सब स्वयं हो जाता है । सूर्य शक्ति के नजदीक जाकर देखें तो सूर्य ही शिव है । 

 सूर्य ज्ञान का द्योतक यह शिव स्वयं" महासमाधि " का ज्ञान है । इस महासमाधि में ही वह प्राणों का संगमन करता है। इस संगमन के अर्थ में ही जितने भी वार, नक्षत्र हैं स्वयं  समाहित हो जाते हैं। वार नाम दिन का है। दिन  का संबंध सूर्य से  यानि सूर्य की किरणों से है ।  सूर्य की किरणें जिस ज्ञान को प्रदर्शित करना चाहती हैं इन वारों के नाम के रूप में प्रकट होती हैं।  "शब्द " ब्रह्म है सब कुछ और इस शब्द ब्रह्म में ही देखें तो शब्द का  तात्पर्य समझ आता है । अब "शुक्र" शब्द स्वयं आरामदेह जिंदगी और एशोआराम का प्रतीक है और यह  स्वयं शांति का अर्थ भी प्रकट करता है । बल -  वीर्य का भी इस से संबंध है। इस अर्थ में देखें तो शुक्र प्रदोष इस हेतु से अपना प्रभाव देता है । इस दिन प्रदोष रखने से आरामदेह जिंदगी बसर करने का सौभाग्य मिता है और बल -वीर्य तथा शांति भी । शिव के अर्थ में सब कुछ समाहित है पर देश काल का असर स्वाभाविक है, जिस काल में पूजा की जा रही है उस वार के देवता का स्मरण करना भी आवश्यक है।  शिव का सेव

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 २१ फेस २  चैतन्य विहार , वृंदावन ,मथुरा 

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