अध्यात्म सबके लिए जरूरी: डॉ. विनोद शर्मा ,ज्योतिष एवं पराविद।






सृष्टि के उद्भव के साथ ही ईश्वर ने प्राकृतिक संपदा, वनस्पतियाँ आदि उपादान भी प्रदान किए हैं। विद्याओं के रूप में वेद। मनोरंजन के लिए गीत, वाद्यऔर नृत्य का सम्मिलित रूप नाट्यशास्त्र भरतमुनि के द्वारा ,आयु और आरोग्य के लिए औषधियों के ज्ञान और उनकी उपयोगिता का शास्त्र आयुर्वेद रचा गया । अनेक ग्रंथ बने अपततनी ज्ञान- संपदा रूप ग्रंथों को ऋषियों ने रचकर इस धरती की पालन -पोषण के तहत योग्य बनाने में मदद की। समय बदला समय के साथ सोच में भी परिवर्तन आता रहा । पर परिवर्तन इस हद तक पहुँच जाए कि अपनी मूलभूत प्रकृति से प्राप्त संपदा अन्न जल आदि के प्रति लापरवाही और बर्बादी का आलम अख्तियार करें तो मानव की बुद्धि पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है कि आखिर मनुष्य सोच क्या रहा है ? धरती पर अन्न जल के अलावा प्राकृतिक बतौर औषध समूह भी एक है । अब क्योंकि रक्षा का प्रश्न ही नहीं आज आयु को भी पीछे छोड़ स्वास्थ्य को भी पीछे छोड़ धन को पाने की होड़ में लगा है। व्यवस्था बतौर अन्न धन के विनिमय का साधन पैसा बना । पूर्व काल में अधिक नहीं कुल इक्कीस साल पहले किसान अन्न से अन्न बदलते थे। आज भी बहुत जगह यह प्रचलन है। पर कभी ऐसा हुआ कि अन्न न रहा तब क्या होगा ? तब तुम्हारा पैसा किस काम आएगा? उस विकट परिस्थिति में किस वस्तु का विनिमय करोगे ? यह प्रश्न उपजना जरूरी क्यों नहीं रहा ? आखिर विद्या की देवी सरस्वती और ज्ञान धन की दूसरी देवियां ही क्यों सोचें ? धरती पर तो मनुष्य रहता है उसे अध्यात्म संपदा से मतलब नहीं । अध्यात्म को रोजी-रोटी का साधन मात्र बना देने वाले हम कौन होते हैं? ऋषियों ने जिस ज्ञान को जीवित रखा वह ज्ञान कहाँ है ? प्रश्न चिन्ह है भावी पीढ़ी के लिए नहीं, वर्तमान पीढ़ी के लिए भी। मैंने पूछा जब धरती पर अन्न नहीं रहेगा , जल नहीं रहेगा तब क्या होगा? तब तुम्हारा पैसा काम आएगा? ......तो उत्तर मिला नहीं ।जीवित रहने के लिए अन्न भी चाहिए होता है। ...फिर पैसे के लिए इतनी मारामारी क्यों ? ...क्योंकि हम बिलासी हो गए हैं, अपनी इंद्रियों के दास हो गए हैं । देवताओं की पूजा भी इंद्रियों की पूजा है। इंद्रियां सावधान तो सब सावधान । सावधान का मतलब सधने से ही है। इंद्रियों को साधने से ही हरि (विष्णु ):का ज्ञान मिलता है और यही काम आता है। "हर को पूजा हरि मिले हरि पूजे हर नाहिं। हरि हर को पूजले छांव खडेंगे जाहिं।।" हर कहते हैं शंकर को और हरि विष्णु को । जब हम दोनों को अभेद रूप से पूजेंगे तो दोनों ही छाता लेकर खड़े होंगे हमारी रक्षा के लिए। -------- २१ फेस २ चैतन्य विहार, वृंदावन, मथुरा। चलित दूरभाष: ७३००५२४८०२