गीता राम की गाथा : डॉ विनोद शर्मा के व्याख्यान।




हिन्दुस्तन वार्ता।

गीता ज्ञान जिस जगह प्रकाशित किया वाणी से श्री कृष्ण ने । वह कुरुक्षेत्र की भूमि थी। पर गीता संपूर्ण रूप से इन बारह वनों के रूप में  यहाँ वृंदावन की भूमि ब्रज प्रदेश की भूमि में मौजूद है ।  


"मौजूद है यह धरती 

जिसे कृष्ण कहते हैं । 

यह राम की भूमि है स्वयं

 सीता ज्ञान की धातृ है।।


सीता ने बताया  न कृष्ण को

 यह तो स्वयं ही आया है ।

यह गीता ज्ञान है 

जो सूर्य बन बिखराया है।। 


लगा लो भूमि का चंदन 

यह गीता की भूमि है । 

इसको ही करो वंदन

 यह श्री राम की भूमि है।।


लगाया माथ पर चंदन 

तो स्वयं श्रीकृष्ण ने लगाया था। 

यह राधा की भूमि यह सीता की भूमि है।।"


आज समय बदला है इस गीता ज्ञान की आवश्यकता जान पड़ी है। इसे जन-जन तक पहुंचाना जरूरी है। गीता ज्ञान निरंतर है इसलिए गीता ज्ञान उभरकर आया है। 


"होता स्वयं प्रकाश तन मन में भी स्वयं। 

जब मैं स्वयं परिज्ञान को खुद ही आ जाती स्वयं।।


अब होगा प्रकाश सब श्रीविद्या जग जायगी । 

करेगी काम तुम्हारा सब यह ही सब करायगी।।


लिखेगी भी करेगी भी सब सब यही बतलायगी । 

न रहेगा कुछ अलग  अभेद बनकर छायेगी ।।


आ गयी सुख की कली यह जो लिखा भाग्य में। 

मैं स्वयं पछता रही क्यों न होता परमार्थ में ।।


अब परमार्थ की वेला स्वयं ही आ गई आ जायगी वेद में। 

ज्ञान हो जायेगा स्वयं ही वेद में और भेद में ।।


मैं स्वयं सुख की कली न रूप तेरा जानती। 

स्वयं ही रहती भूल में अभेद मैं न मानती ।।


इसलिए  दुख पा रही सुख की कली मैं क्यों कहीं । 

अब तो स्वयं अब स्वयं भेद में न जाऊंगी कभी।। "


यह गीता ज्ञान स्वयं भेद में अभेद में सब सब रूप में प्रकट होना चाह रहा है इसे जानना जरूरी है । इसलिए इसका बखान किया जा रहा है -


 "भेद सारा जगत भेद वेदन में लिखा। 

अब न तू  भेद में वेद भेदों का हो गया ।।


तुमने कराकर ज्ञान सब सब स्वयं बतला दिया । 

न लिखा कुछ भेद में वेद में सब आ गया ।।


यह आ गया जो शब्द है अज्ञान का ही रूप है । 

अब आ गया शब्द को हटा दो यह स्वयं अज्ञान है ।।


अब ज्ञान को तू जाग जा  कर

कुंडलिनी का ज्ञान तू । 

यह आत्मवत ही है स्वयं इसका स्वयं परमान तू ।। 


अब स्वयं हो गया स्वयं ही वेद है इस ज्ञान का। 

न रहा कुछ दूर अज्ञान के भी ज्ञान का । । 


अज्ञान ही है स्वयं जो तम रूप नहीं तम का ज्ञान ही है। 

इस अज्ञान को नहीं तम को ही समझो यह सबसे बड़ा महाज्ञान है।। 


अब इस गीता ज्ञान को ही सुदृढ़ बनाना है । यह धरती का ज्ञान है पुण्य भूमि है यह  यहाँ  की भूमि।    "रसखान "ने स्वयं इस भूमि को ही चाहा है अनेक जन्मों तक यहाँ रहकर ही हरि को भजूं । चाहें किसी भी रूप में आना पड़े। चाहे गाय बनना पड़े या पशु पक्षी इस भूमि पर ही सूख है यहाँ ही स्वर्ग है। 

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२१ फेस २ चैतन्य बिहार, वृंदावन मथुरा

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