हिन्दुस्तान वार्ता।
राजनैतिक पार्टियों को किस ने दिया अधिकार, टैक्स के पैसे से ,फ्री स्कीम दे कर वोटरों को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में , मतदाता को लुभाने का वादा करने का ?
लगता है अब पोलिटिकल विचार धारा का कोई महत्व नहीं है, हर कोई टिकट के लिए कोई भी पार्टी ज्वाइन कर रहा हो या टिकट न मिलने पर अपनी भड़ास निकालने के लिए निर्दालिये पर्चा भर जुदा विचार धारा की पार्टी प्रत्याशी को समर्थन दे. तब प्रदेश सरकार के टैक्स के पैसे मुफ्त स्कीमों की झड़ी लगा कर हर वर्ग को लुभा कर इलेक्शन जीतना चाहता है. पार्टी राष्ट्रीय, रीजनल और क्यूँ ना दो महीने पहले रजिस्टर हुई हो. क्या राजनीतिक पार्टियां विचारधारा से भटक कर अर्थशास्त्र में एक्सपर्ट हो गयी हैं?
इस बदलते परिवेश में वोटर को बहुत सावधान हो कर मतदान करना चाहिए. उनके टैक्स का पैसा अगर सही जगह नहीं लगेगा तो विकास कैसे होगा? विकास के नाम पर, बहुत कुछ कहा गया ,पर जब मौका आया तब जीतने वाली पार्टी ने उसे जुमला कह कर टालने की कोशिश की।
ऐसा कहा जाता है माया तो ठगनी है, कृष्ण ने गीता में कहा है जुआ खेलने वालों का जुआ भी मै हूँ.-वो मुझ मै हैं पर मै उनमें नहीं हूँ. मतदाता को जो कि बहुत समझदार है, अपने मत को अर्जुन कि तरह सिर्फ मछली कि आंख (विकास) पर केंद्रित कर सही जनतंत्र को स्थापित करने का प्रयास करना होगा. चाहे वो निगम का चुनाव हो, विधानसभा का या लोक सभा का।
आगरा की बात करें तो यहां मुद्दों की राजनीति का अभाव रहा है. शहर ने कई मंत्री, अफसर और दिग्गज दिए पर सभी सफलता के मुकाम पर पहुँच कर आगरा के लिए कुछ नहीं करवा पाए. चुने हुए जनप्रतिनिधि भी प्रदेश और केंद्र की योजनाओं के क्रियान्वयन में उदासीन दिखे. होना तो यह चाहिए मुद्दों कि राजनीति जैसे रोजगार के अवसर, अच्छी शिक्षा, हर जिले के अपने मुद्दों को प्राथमिकता दे कर चुनाव लड़ना चाहिए. ना कि सिर्फ वोट की जोड़तोड़ और जनप्रतिनिधि की अनंत काल तक चुनाव लड़ने की तरह लालसा तक सिमित होना चाहिए।
क्या आगरा मुद्दा विहीन राजनीति का अड्डा रहेगा? हर बार आगरा का मतदाता मत डालने के बाद अगले पांच साल तक ठगा हुआ महसूस करेगा?
यह विचार अनिल शर्मा , सचिव , सिविल सोसाइटी ऑफ़ आगरा के हैं.