क्यों उम्र के पड़ाव पर खुशी की जगह, पलायन' और पुनः बचपन में जाने की इच्छा होती है।



55 की उम्र में बचपन की चाहत।

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हिन्दुस्तान वार्ता

बचपन में दिमागी स्थिति 'इड' की होती है जहां हर जिद को पूरा करना ही मकसद होता है, परंतु उम्र के बढ़ने के साथ रिस्पांसिबिलिटी भी जीवन का मुख्य फैक्टर हो जाता है। रिस्पांसिबिलिटी को यदि तोड़ कर समझा जाए तो अर्थ निकलता है- 'रिस्पांस विद एबिलिटी' मतलब स्थिति- परिस्थितियों को आकलन करते हुए पूरी जवाब देही के साथ प्रति उत्तर देना,परंतु हम रिस्पांस विद 'एबिलिटी' ना कर रिस्पांस विद'रिएक्शन' कर बैठते हैं और नतीजा अपने साथ-साथ दूसरों के भी जीवन में जहर घोल देते हैं।

 तब अचानक,जीवन से क्षोभ लगने लगता है,कि बड़ा होना ही गलत हुआ।

बचपन ही ठीक था,जहां किसी बात का विश्लेषण नहीं करना पड़ता था। सिर्फ और सिर्फ अपनी जिद्द,अपनी चाहत को पूरा करना मकसद था और अचानक बचपन की ओर पलायन करने की इच्छा सताने लगती है...।

"हम रूठ कर आये ,अपने गाँव में,अब वहां भी कंक्रीट के जंगल ,आपस मे जलन के सिवा कुछ दिखता नही मुझे।

ये मेरा गाँव है जिसके हालात साँसों पर अटक गए।

काश ! कोई हमें हमारा..वो बचपन,पहले का गाँव और वो आवोहवा लौटा दे।

'परिवर्तन' प्रकृत्ति का नियम है,उम्र जिम्मेवारीयों का बोध कराती है, जुझना सिखाती है,जिन्दगी प्रगति का नाम है!हर पल एक नया संदेश है/बोध है,इसे उपयोगी बनाएं, खुश रहें और खुशियां बांटे।

"राष्ट्रीय पर्व ,गणतंत्र दिवस" पर सभी देश वासियों को हार्दिक बधाई/ शुभकामनाएं।

जय हिन्द🙏🏼

रवीन्द्र कुमार सिन्हा (रंजन)

पूर्व महाप्रबंधक - कोल इंडिया।

मो.84778 77770