शुभ नव रात्रि : माँ नव दुर्गा के जिन नौ रूपों की पूजा होती है वे इस प्रकार हैं।


शैलपुत्री- 

सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का प्रथम स्वरूप माने जैते है। पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का ही रूप हैं। मां शैलपुत्री की पूजा का अर्थ है कि प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।

ब्रह्मचारिणी - 

जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।

चन्द्रघण्टा -

भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है, जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।

कूष्माण्डा - 

अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।

स्कन्दमाता - 

पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।

कात्यायनी- 

इस रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।

कालरात्रि- 

देवी भगवती का सातवां रूप है, जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है।भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।

महागौरी -

भगवती का आठवाँ स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।अर्थात महा गौर वर्ण वाली (अति सुन्दरता बिखेरने वाली) माँ।

सिद्धिदात्री-

भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा जाता है।

ये नौ रूप हर स्त्री में हैं...।

हम यही सुनते आए हैं कि हर स्त्री पूज्यनीय है,लेकिन न जाने क्यों यह केवल मन बहलाने और शास्त्रों की मोटी मोटी किताबों में दर्ज गूढ़ अभिव्यक्तियों और सूक्तियों का विषयभर ही है।

दुखद है कि कितनी ही बेटियां हर दिन अपना तिरस्कार झेलती हैं।

कितनी ही स्त्रियां घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं।चीखना चिल्लाना, अपशब्द और न जाने क्या क्या वे चुपचाप झेलती हैं।

कितनी ही वृद्धाएं आश्रमों मेें असहाय पड़ी राह तकती हैं अपने उन अपनों की जो एकबार वहां छोड़ गए और मुड़कर लेने नहीं आने वाले।

सच पूछिए तो देवी तभी तक देवी है जब तक वह पत्थर की मूरत बनी चुपचाप सजीधजी खड़ी रहती है।

जिस दिन देवी ने मुँह खोला,  सवाल पूछे, हक मांगा,  उसे देवी के सिंहासन से उतार दिया जाता है।

खैर... 

स्त्रियों की पूजा करते हो तो नौ रूपों की क्यों नहीं करते।

दुर्गा के रूप को लेकर स्त्रियों का उपहास क्यों उड़ाते हो।

स्त्री हाड़ मांस से बनी है पत्थर की नहीं। देवी छोड़ो इंसान ही समझ कर सम्मान करना सीख लो।

देवी स्त्री है या स्त्री देवी है यह हर स्त्री जानती है, तभी तो वह मरते दम तक हार नहीं मानती।

लेकिन देवी को लेकर कितनी सिलेक्टिव अप्रोच होती है न समाज की।

✍️ दीपिका गुप्ता

अध्यक्ष - माथुर वैश्य केंद्रीय महिला मंडल।