पटियाला के चंडी माता मंदिर के हमलावर,ये भी जान लें : कृष्ण देवानंद सरस्वती।

 

हिन्दुस्तान वार्ता।

ये जो तुम तलवारे लहरा रहे थे ,ना ये केवल इसलिए लहरा पाए,क्योंकि हमने तुम्हें जवाब नहीं दिया,ऐसा नहीं है कि हम तुम्हें जवाब नहीं दे सकते थे। हमने तुम्हें जवाब इसलिए नहीं दिया क्योंकि आज भी हम तुम्हें अपने परिवार का हिस्सा या कहें कि अपने परिवार का बड़ा बेटा मानते हैं। अपनी ये तलवारें म्यान में रख लो क्योंकि तुम गुरु के वो सिंह नहीं जो सवा लाख से एक लड़ सकते हैं। अब तुम कायरों की तरह घेर कर वार करने लगे हो। अब तलवारे चलाना तुम्हारे बस की बात नहीं है।

 हमने देखा है तुम्हें घेरकर एक मंदबुद्धि व्यक्ति पर अपनी ताकत आजमाते हुए ,

 हमने तुम्हारी बहादुरी देखी है। अभी कुछ ही दिन पहले जब तुम उसी अफगानिस्तान से गुरु ग्रंथ साहब सिर पर रख कर भागे थे। जिस अफगानिस्तान में हरिसिंह नलवा ने मुगलों को शलवार पहनने पर मजबूर कर दिया था। यह तलवार तो तब भी तुम्हारे पास ही थी ना या कहीं गिरवी रख दी थी।

हमने तुम्हें कुछ दिन पहले भी तुम्हारी बहादुरी तब भी देखी थी, जब कश्मीर में तुम्हारी दो बेटियां उठा ली गई थी और तुम लाचार होकर सड़कों पर न्याय की भीख मांग रहे थे।

तब तुम्हारी यह तलवार है कहां खो गई थी।

तुम्हारी ये तलवारे और तुम्हारी बहादुरी कहाँ खो जाती है,जब आज भी आये दिन पाकिस्तान में गुरुद्वारों पर हमले होते है, और गुरु ग्रंथि जी की बेटी को जबरदस्ती अगवा कर उसका धर्मपरिवर्तन करवा दिया जाता है।

यह तलवार है तो उस दिन भी तुम्हारे पास ही थी,ना जब 1984 में तुम कांग्रेसियों के आतंक से केश कटवा रहे थे ,और तुम्हारे परिजनों को टायर डाल कर जिंदा जलाया जा रहा था। ये सब जिन कांग्रेसियो ने किया उन्ही को तुमने पिछले चुनाव में सिर पर बैठाया था आज भी दिल्ली से लेकर पंजाब तक और पूरे देश में हजारों की संख्या में मोने पंजाबी तुम्हारी कायरता की गवाही देते मिल जाएंगे।

 कल तुम काली माता के मंदिर में अपनी तलवारों के साथ आतंक मचा रहे थे और नारे लगा रहे थे कि राज करेगा खालसा,तो सुनो तुम खालसा हो ही नहीं सकते। तुम तो खालसा पंथ के नाम पर एक भद्दी गाली हो।

 शायद तुम खालसा पंथ का इतिहास भूल गए हो, तो आज मैं तुम्हें खालसा पंथ का इतिहास याद दिला देता हूं।

 गुरु गोविंद सिंह जी ने जब खालसा पंथ की नींव रखी थी तब उन्होंने आवाहन किया कि उनकी तलवार प्यासी है उसे शीश चाहिए।

 जो पहला व्यक्ति जो अपना शीश देने आगे आया वो थे भाई दयाराम जो लाहौर से थे।

दूसरा व्यक्ति जो अपना शीश देने आया वो भाई धर्मदासन थे,

 जो नांदेड़ महाराष्ट्र से थे।

तीसरा व्यक्ति जो अपना शीश देने आया वो भाई हिम्मत राय थे,जो उड़ीसा से थे।

चौथा व्यक्ति जो आगे आया वो थे भाई मोहकम चंद जो गुजरात से थे,

और पांचवा व्यक्ति जो आगे आया था वो थे भाई साहिब चंद जो कर्नाटक से थे।

 इन पांचों में से एक भी जन्मजात सिख नहीं था। इन पांचों को अमृत पान करा कर गुरु गोविंद सिंह जी ने पंच प्यारे बनाकर खालसा पंथ की नींव रखी थी।  इन्हीं पंच प्यारों ने गुरु गोविंद सिंह जी को छटा खालसा बनाया था। शायद तुम यह भी भूल गए कि गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान के बाद जब बंजारे उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए ले गए थे, तब औरंगजेब ने यह कहा था कि यदि शव वापस नहीं मिला तो पूरे गांव को आग लगा दी जाएगी।

तब जिस लखीशाह बंजारे ने स्वयं अपना बलिदान देकर गुरु तेग बहादुर जी के शरीर के बदले अपना शरीर औरंगजेब को दिया। वो भी एक बंजारा था,सिक्ख नहीं।

 उसी ने अपनी झोपड़ी के भीतर गुरु तेग बहादुर जी के शरीर को रखकर अपनी झोपड़ी में आग लगाकर गुरु साहिब का अंतिम संस्कार किया था।

गुरु तेग बहादुर जी के साथ जिन तीन लोगों ने अपना बलिदान दिया था,उनमें दो सगे भाई थे, भाई सती दास और भाई मती दास जो ब्रम्हण थे। जिनमें से एक को जिंदा आरे से चिरवा दिया गया था और दूसरे के शरीर पर रुई बांधकर उन्हें जिंदा जलाया गया था।

तीसरे व्यक्ति जिन्होंने गुरु तेग बहादुर जी के साथ बलिदान दिया वो थे भाई दयाला ,जिन्हें देग में रखकर उबाला गया था।

वैसे तुमने खालसा पंथ की जनरल पंडित सिहा सिंह पुरोहित, पंडित कृपा दत्त, पंडित कीरत जी का नाम तो सुना है ना 

और हाँ पंडित परागा दास जो 100 वर्ष से अधिक जीवित रहे और जिन्होंने जिनके नेतृत्व में खालसा पंथ ने अनेकों युद्ध जीते। उन्हें तुम कैसे भूल सकते हो उन्हें तो खालसा फौज का भीष्म पितामह कहा जाता था।

वैसे तुम्हे ये तो याद है ना कि 1704 में जब मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह को घेर लिया था और कई महीनों तक किले में राशन की सप्लाई नही हो पाई थी ,तब भूख डर कर 40 सिख गुरु गोविंद सिंह को छोड़ कर भाग गए थे,

और आनंदपुर साहिब छोड़कर गुरुगोविंद सिंह जी ने जिस गढ़ी में शरण ली वहां उन्हें ससम्मान जिसने अपनी गढ़ी सौंपी वो चौधरी बिद्धू सिंह थे जो सिख नही थे।

 चंडी माता का मंदिर उजाड़ते समय और मां दुर्गा को गाली देते समय,शायद तुम भूल गए कि दसवें गुरु-गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं देवी उपासक थे,

उन्होंने अपनी भक्ति से नैना देवी को प्रसन्न कर शमशीर (तलवार) प्राप्त की थी ,उनकी लिखी चंडी दीवार पढ़ी या सुनी भी है या नही ??

और हां "देह शिवा वर मोहे" यह किसने कहा था और ऐसा कह कर शिवा अर्थात भगवान शिव से वरदान किसने मांगा था,भूल गए क्या, वह गुरु गोविंद सिंह जी ही थे ना और हां गुरु गोविंद सिंह जी के दोनों छोटे साहिबज़ादों  साहिबजादे फतेह सिंह और साहिबजादे जोरावर सिंह जी की कायरता पूर्ण हत्या का बदला जिस बंदा बहादुर ने लिया था उनका असली नाम याद है ना वो स्वामी लक्ष्मण दास बैरागी थे, जो एक कश्मीरी पंडित थे।

और क्या तुम्हें पता है कि दुनिया की सबसे महंगी ज़मीन कौनसी है  वो ज़मीन सरहिंद की है ,जिसे साहिब ज़ादों के अन्तिम संस्कार के लिए 78000 सोने के सिक्के दे कर दीवान टोडरमल ने खरीदा था और दीवान टोडरमल जैन थे। तुमने मलेर कोटला के नवाब शेर मोहम्मद का एहसान तो याद है, जिसकी मजार पर तुम आज भी जाते हो।

 तुम दीवान टोडरमल को भूल गए, आज दीवान टोडरमल की हवेली खंडहर हो गई, आज भी दीवान टोडरमल की हवेली पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का कब्जा है लेकिन उसकी देखभाल तक तुम नही कर पाए।

वास्तविकता तो यह है कि इस मामले में तुम और मुसलमान एक जैसे हो तुमने आज तक किसी गैर सिख का एहसान तब तक नही माना जब तक वो अमृत चखकर सिख नही बन गया और यदि उसने अमृत नही चखा तो तुम कभी उसका जिक्र तक नही करते भले ही उसने तुम पर कितने भी उपकार किये हों।

वैसे अब बात निकल ही आई है तो तुम्हे एक जानकारी और दे दूं कि श्री गुरुग्रंथ साहिब में जयदेव और परमानंद जी जैसे ब्राम्हणों और कबीर, रविदास, नामदेव, सैण जी, सघना जी, छीवाजी, धन्ना जी जैसे संतो की वाणी भी शामिल है और इनमें से एक भी सिख नही था।

हम मानते है कि सिक्खों ने धर्मरक्षा के लिए बहुत बलिदान दिए ,लेकिन हमने कभी सिक्खों का साथ नही छोड़ा, क्योकि हमने सिक्खों को अलग नही मांना।

तुमने हर बार हमें ये अहसान जताया कि सिख्खो ने हमारे लिए बलिदान दिए तो सुनो आज कहता हूँ एक बार इतिहास अच्छे से पढ़ लेना बलिदान दोनों ने एक दूसरे के लिए दिए है क्योकि हम एक ही थे दो नही, तुमने ना जाने कब अपने आप को अलग कर लिया।

तुम खालसा की बात करते हो जाओ और पहले खालसा पंथ का इतिहास पढ़ कर आओ,

तुम ना तो हमारे गुरुओं के सिंह हो ,नाही खालसा,तुम तो हमारे गुरुओं के बलिदान और खालसा पंथ के नाम पर दी गई एक भद्दी गाली हो।

यदि आपका मानना है कि ये सब तो खालिस्तानियों ने किया है और खालिस्तानी असली सिख नही है, तो असली सिक्खों ने उनका विरोध क्यो नही किया। 

ये तो वही बात हो गई कि जो आतंकवादी है वो मुसलमान नही है लेकिन उनके खिलाफ किसी मुसलमान की आवाज नही निकलती।

यदि किसी सिख भाई को लगता है कि ये सब कह कर मैने सिक्खों का अपमान किया है,तो क्षमा करें ,सिक्खों का अपमान मैंने नही, आपने किया है।

 आपका मौन आपको इन खालिस्तानियों के साथ खड़ा करता है, यदि आप असली सिक्ख है तो इन खालिस्तानियों के खिलाफ निकल कर सामने आये।आपके पास केवल दो ही विकल्प हैं या तो इस देश के साथ खड़े होकर इन खालिस्तानियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं,या मौन रहकर अपनी गिनती इन खालिस्तानियों में करवाएं ।

निर्णय आपको करना है ।

हम आपका और आपके सिर पर सजी इस पगड़ी का सम्मान करते हैं,क्योकि हम आपको अपने परिवार का बड़ा बेटा मानते हैं। लेकिन याद रखना जो बेटे परिवार के खिलाफ जाते है उन्हें फुटपाथ पर भीख मांगते देखा जाता है ,क्योकि बेटों का सम्मान तभी तक है जब तक वो परिवार के साथ हैं।

अब तक आपका -

कृष्ण देवानंद सरस्वती

9200058880