लघु कथा...पुण्य के पाँच मिनट।



प्रेरक प्रसंग :-

रोज़ाना घर से निकलते समय राकेश दो-चार टोस्ट के टुकड़े एक बेज़ुबान को ज़रूर डालता था। वो भी उसे देखते ही उसके क़रीब आ जाती थी और कभी दुम हिलाकर या कभी पैर चाटकर अपने प्यार का इज़हार किया करती थी। यह रवैया बहुत दिन से चलता चला आ रहा था।

वैसे भी बड़े बूढ़े कहते हैं कि थोड़ा बहुत पुण्य करते रहने से बहुत सी बलाएं कन्नी काट कर निकल जाया करती हैं।शायद यही सोचकर राकेश उस मासूम सी कुतिया को रोज़ाना टोस्ट खिलाया करता था,और वो भी उसके पैरों में लेटकर शायद उसकी सारी बलाएं अपने सर लेना चाहती हो।

एक दिन घर से निकलते वक्त राकेश बहुत ही जल्दी में था और अत्यधिक तनावग्रस्त भी दिखाई दे रहा था।रोजाना की तरह वह घर से निकला और वो बेज़ुबान उसके पैरों में आकर लिपटने लगी।लेकिन राकेश ने उसे टोस्ट खिलाने के स्थान पर उसमें कस कर लात मार दी और स्कूटर ले लेकर आगे बढ़ने लगा।वह भी उसके साथ साथ चलने लगी जैसे शायद वह उसे कुछ समय के लिए रोक लेना चाहती हो ! कुछ दूर जाकर वह मायूस होकर लौट आई।

राकेश बमुश्किल एक किलो मीटर ही चला होगा कि उसका स्कूटर स्लिप हो गया और उसके पैर में फ्रेक्चर होने के साथ साथ कई अन्य चोटें भी आईं।

फिर क्या था, दुर्घटना घट चुकी थी और राकेश को अपनी गलती पर रह रह कर पछतावा हो रहा था। वह मन ही मन कह रहा था कि अगर वह पांच मिनट रुक जाता तो......! शायद बहुत सारी बलाएं उसके बगल से कन्नी काट कर निकल जातीं।

प्रकाश गुप्ता 'बेबाक'

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