आज की ज्वलंत समस्या ! अर्थिक स्वावलंबन का अभिशाप: इंजी.-आर.के.सिन्हा।

 

हिन्दुस्तान वार्ता।

सपनों की दुनियां में खोए हुए युवा,आने वाली पीढ़ी को संस्कृति, संस्कार विहीन करने के जिम्मेदार होंगे I 

विलंब शादी के वाबजूद बच्चे हो भी जाएं तो दादा-दादी,नाना-नानी का प्यार संस्कार बच्चों को नहीं मिल पाएगा,क्योंकि बुजुर्ग की भी एक उम्र तक ही छाया रहेगी ।

चर्चा...

 बडी उम्र की कुँवारी लड़कियाँ घर बैठी हैं ।

सामाजिक चर्चा.....

 अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो सकती हैं।

हमारा समाज आज बच्चों के विवाह को लेकर इतना सजग हो गया है कि आपस में रिश्ते ही नहीं हो पा रहे हैं।

समाज में आज 27-28-32 उम्र तक की बहुत सी कुँवारी लडकियाँ घर बैठी हैं, क्योंकि इनके सपने हैसियत से भी बहुत ज्यादा हैं ! इस प्रकार के कई उदाहरण हैं।

ऐसे लोगों के कारण समाज की छवि बहुत खराब हो रही है।

सबसे बडा मानव सुख, सुखी वैवाहिक जीवन होता है।

पैसा भी आवश्यक है, लेकिन कुछ हद तक।

पैसे की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है। 

पहली प्राथमिकता सुखी संसार व अच्छा घर-परिवार होना चाहिये।

ज्यादा धन के चक्कर में अच्छे रिश्तों को नजर-अंदाज करना गलत है। "संपति खरीदी जा सकती है लेकिन गुण नहीं।"

मेरा मानना है कि घर-परिवार और लडका अच्छा देखें ,लेकिन ज्यादा के चक्कर में अच्छे रिश्ते हाथ से नहीं जाने दें।

- सुखी वैवाहिक जीवन जियें।

 30 की उम्र के बाद विवाह नहीं होता समझौता होता है और मेडिकल स्थिति से भी देखा जाए तो उसमें बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

आप सोचिए जिनके साथ कुंडली मिलती है लेकिन घर और लड़का अच्छा नहीं और जहाँ लड़के में सभी गुण हैं वहां कुण्डली नहीं मिलती और हम सब कुछ अच्छा होने के कारण भी कुण्डली की वजह से रिश्ता छोड़ देते हैं।

आप सोच के देखें, जिन लोगो के 36 में से 20 या फिर 36/36 गुण भी मिल गए फिर भी उनके जीवन में तकलीफें हो रही हैं, क्योंकि हमने लडके के गुण नहीं देखे।

आज कल समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए (लड़के में) चौबीस टंच का सोना खरीदने जाते हैं, देखते-देखते चार पांच साल व्यतीत हो जाते हैं।

उच्च "शिक्षा" या "जॉब" के नाम पर भी समय व्यतीत कर देते हैं। लड़के देखने का अंदाज भी समय व्यतीत का अनोखा उदाहरण हो गया है?

खुद का मकान है कि नहीं? अगर है तो फर्नीचर कैसा है? घर में कमरे कितने हैं ? गाडी है कि नहीं? है तो कौनसी है? रहन-सहन, खान-पान कैसा है? कितने भाई-बहन हैं? बंटवारे में माँ-बाप किनके गले पड़े हैं? बहन कितनी हैं, उनकी शादी हुई है कि नहीं? माँ-बाप का स्वभाव कैसा है? घर वाले, नाते-रिश्तेदार आधुनिक ख्यालात के हैं कि नहीं?

बच्चे का कद क्या है?रंग-रूप कैसा है?शिक्षा, कमाई, बैंक बैलेंस कितना है? लड़का-लड़की सोशल मीडिया पर एक्टिव है कि नहीं? उसके कितने दोस्त हैं? सब बातों पर पूछताछ पूरी होने के बाद भी कुछ प्रश्न पूछने में और सोशल मीडिया पर वार्तालाप करने में और समय व्यतीत हो जाता है। 

हालात को क्या कहें माँ-बाप की नींद ही खुलती है 30 की उम्र पर। फिर चार-पाँच साल की यह दौड़-धूप बच्चों की जवानी को बर्बाद करने के लिए काफी है। इस वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं और माँ-बाप अपने ही बच्चों के सपनों को चूर चूर-चूर कर देते हैं।

 एक समय था जब खानदान देख कर रिश्ते होते थे। वो लम्बे भी निभते थे। समधी-समधन में मान मनुहार थी। सुख-दु:ख में साथ था। रिश्ते-नाते की अहमियत का अहसास था।

चाहे धन-माया कम थी मगर खुशियाँ घर-आँगन में झलकती थी। कभी कोई ऊँची-नीची बात हो जाती थी तो आपस में बड़े-बुजुर्ग संभाल लेते थे। तलाक शब्द रिश्तों में था ही नहीं। 

 दाम्पत्य जीवन खट्टे-मीठे अनुभव में बीत जाया करता था। दोनों एक-दूसरे के बुढ़ापे की लाठी बनते थे और पोते-पोतियों में संस्कारों के बीज भरते थे। अब कहां हैं वो संस्कार? आँख की शर्म तो इतिहास हो गई। नौबत आ जाती है रिश्तों में समझौता करने की।

 लड़का-लड़की अपने समाज के नही होंगे तो भी चलेगा, ऐसी बातें भी सामने आ रही हैं।

 आज समाज की लडकियाँ और लड़के खुले आम दूसरी जाति की तरफ जा रहे हैं और दोष दे रहे हैं कि समाज में अच्छे लड़के या लड़कियाँ मेरे लायक नहीं हैं।

 इस कारण लडकियाँ आधुनिकता की पराकाष्ठा पार कर गई है। जब ये लड़के-लड़कियाँ मन से मैरिज करते हैं तब ये कुंडली मिलान का क्या होता है ? तब तो कुंडली की कोई बात नहीं होती‌। यही माँ बाप सब कुछ मान लेते हैं। तब कोई कुण्डली, स्टेटस, पैसा, इनकम बीच में कुछ भी नहीं आता।

अगर अभी भी माँ-बाप नहीं जागेंगे तो स्थितियाँ और विस्फोटक हो जाएंगी। समाज के लोगों को समझना होगा कि लड़कियों की शादी 22-23-24 में हो जाये और लड़का 25-26 का हो। सब में सब गुण नहीं मिलते।"

 घर, गाड़ी, बंगला से पहले व्यवहार तोलो। माँ बाप भी आर्थिक चकाचोंध में बह रहे है । पैसे की भागम-भाग में मीलों पीछे छूट गए हैं, रिश्ते-नातेदार।

टूट रहे हैं घर परिवार , सूख रहा है प्रेम और प्यार।

परिवारों का इस पीढ़ी ने ऐसा तमाशा किया है कि आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी "संस्कार"।

समाज को अब जागना जरूरी है अन्यथा रिश्ते ढूंढते रह जाएंगे।

एक विचार !

सहमती या असहमति दोनों पर आपके विचार दिए गए फोन पर आमंत्रित!

आर. के. सिन्हा 

भूत पूर्व. महा प्रबंधक !

कोल इंडिया. 

14,मेघ कुंज,सिकंदरा,आगरा 

9557403957/8477877770.