मैं हवा हूँ,खुशबू हूँ,घटा हूँ इस चमन की..।माधुर्य संस्था के कवि सम्मेलन में गूंजे काव्य तराने।



सामाजिक विसंगतियों पर किए प्रहार।

हिन्दुस्तान वार्ता।

आगराः साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था माधुर्य द्वारा शुक्रवार को आयोजित कवि सम्मेलन में काव्य धारा प्रवाहित हुई। कवियों ने जहां राष्ट्रीय भावनाओं को जन-जन तक पहुंचाया,वहीं सामाजिक विसगंतियों पर प्रहार भी कवियों ने की। श्रंगार और वीर रस की कविताओं का भी पाठ किया गया। 

संस्था के राजदीप एंक्लेव,दयालबाग स्थित कार्यालय पर आयोजित,समारोह के मुख्य अतिथि थे केंद्रीय हिंदी संस्थान के कुलसचिव डा.चंद्रकांत त्रिपाठी। उन्होंने व डॉक्टर मधुरिमा शर्मा ने समारोह का शुभारंभ दीप जला कर किया। 

श्री त्रिपाठी ने कहा कि आज के तनाव भरे जीवन में कविताएं जहां लोगों को मानसिक शांति प्रदान करती हैं, वहीं समाज को एकता, प्रेम और सद्भावना का संदेश भी देती है। 

 माधुर्य सांस्कृतिक एवं साहित्यिक मंच इस दिशा में लगातार सक्रिय है,इसलिए उसके पदाधिकारी बधाई के पात्र हैं। 

प्रारंभ में संस्था की संस्थापक अध्यक्ष निशी राज ने आयोजन के बारे में बताया और कहा कि संस्था निरंतर इसी प्रकार के कार्यक्रम करके शहर में साहित्यिक, सांस्कृतिक चेतना जाग्रत करेगी। 

सरस्वती वंदना के बाद काव्य धारा प्रवाहित करने का सिलसिला शुरू हो गया। प्रो. (डा.) शशि तिवारी ने अपनी मधुर वाणी से गजल सुनाकर सभी का दिल जीत लिया। 

कार्यक्रम अध्यक्ष डा.रूचि चतुर्वेदी के इन शब्दों से तालियां गूंज उठीं 

निशी राज की ग़ज़ल, 

"मैं हवा हूं, खुशबू हूं, घटा हूं इस चमन की, मैं बाद ए सबा हूं ये हकीकत मैं कहती हूं तुमसे,

साथ तुम जो नहीं तो मैं क्या हूं।

पर श्रोता झूम उठे।

कवि एवं साहित्यकार डा.राजेंद्र मिलन के गीत को भरपूर दाद मिली। उन्होंने अपनी भावनाओं को इन पंक्तियों में उकेरा-

 हम तो बिरवे शूल के।

बंजारों से भटके-फिरते उड़े बगुले धूल के।

हास्य कवि हरीश अग्रवाल ढपोर शंख के काव्य पाठ का अंदाज निराला था। उन्होंने अपनी रचना में गरीब की बेबसी पर इस प्रकार व्यक्त किया- 

उनके तो मुस्कराने का अंदाज निराला है,

लगता है जरूर कुछ दाल में काला है।

और ये काली दाल, गरीब को ही नहीं मिल रही है।

इसलिए बेचारे, गरीब की दाल, कहीं नहीं गल रही है।           

वीर रस के कवि एवं विशिष्ट अतिथि मोहित सक्सेना ने अपनी विशेष शैली में काव्य पाठ करके सभी के मन को मोह लिया। उन्होंने देश के गद्दारों को ललकारते हुए एक रचना सुनाई-

कभी कपट से,षड्यंत्रो से, मक्कारों से हार गए।

और कभी हम अपने घर के गद्दारों से हार गए।

विशिष्ट अतिथि दीक्षा रिसाल की भी ये पंक्तियां सभी ने सराही-

उनका दावा है वही अहद ए वफ़ा जानते हैं,

वो सितम ढाने की हर एक अदा जानते हैं।

समारोह की अध्यक्षता डा.रुचि चतुर्वेदी ने की। विशिष्ट अतिथि राकेश निर्मल,पदम गौतम, प्रकाश गुप्ता बेबाक व शरद कुमार गुप्ता ने भी काव्य पाठ किया। 

संस्था के संरक्षक राजकुमार जैन, उपाध्यक्ष दुर्गेश पांडेय,रजनी सिंह,उप्पल आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन डॉक्टर शशि गुप्ता ने किया आभार व्यक्त किया संरक्षक आदर्श नंदन गुप्ता ने।

रिपोर्ट-असलम सलीमी।