मानव तीन भूल छोड़ हनुमान जी के तीन गुण अपना ले तो श्रीराम का प्रिय बन जाएः संत विजय कौशल जी महाराज।




 − एसबी आर्नामेंट परिवार की ओर से किया जा रहा है सात दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन।

− सूरसदन प्रेक्षागृह में चल रही श्री राम कथा के छठवें दिन हुआ सीता हरण और लंका दहन प्रसंग।

− कथा में मध्य लगातार लगते रहे श्रीराम जय राम जय जय राम की जयकारे।

हिन्दुस्तान वार्ता।ब्यूरो

आगरा। मानव स्वभाव की तीन भूलों के कारण माता सीता का हरण हुआ। तो वहीं हनुमान जी अपनी तीन विशेषताओं के कारण ही श्रीराम के प्रिय हुए। माया के पीछे भागना, संत की बात का ध्यान न देना और शास्त्र वर्णित मर्यादा का उल्लंघन सीता हरण का आधार बना। श्रीराम कथा के छठवें दिन सीता हरण और लंका दहन प्रसंग का वर्णन करते हुए कथा व्यास मानस मर्मज्ञ विजय कौशल जी महाराज ने समाज को बड़ी सीख दी। 

सूरसदन प्रेक्षागृह में एसबी आर्नामेंट परिवार द्वारा आयोजित श्री राम कथा के छठवें दिन प्रसंग का आरंभ वनवास के दौरान शूर्पणखा का श्रीराम के प्रति आसक्त होना और लक्ष्मण द्वारा उसकी नाक काटने के प्रसंग के साथ हुआ। संत विजय कौशल महाराजा ने कहा कि शूर्पणखा अपने भाई रावण का स्वभाव जानती थी कि वो स्वर्ण और सौंदर्य के प्रति आसक्त है। इसलिए सीता जी के सौंदर्य का बखान उसके सामने किया। तत्पश्चात मारीच को माध्यम बनाकर रावण ने सीता हरण का पूरा षड़यंत्र रचा। रावण भीक्षा मांगने साधु का वेश बनाकर आया। माता सीता से तीन भूल होनी ही थीं क्योंकि मानव स्वभाव ही ऐसा है। जिनके पास स्वयं मायापति हैं उन्हें मायावी हिरण के पीछे भेज दिया। 

संत रक्षा कर रहा है किंतु उसकी बात भी नहीं मानी और शास्त्रों में वर्णित मर्यादा का उल्लंघन कर दिया। कथा में आगे जटायु प्रसंग और सबरी कथा का वर्णन किया गया। सबरी की भक्ति का वर्णन करते हुए संत विजय कौशल महाराज ने पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का भजन तुमने आंगन नहीं बुहारा, कैसे आएंगे भगवान…जब स्वरबद्ध किया तो भक्त झूमने लगे। हनुमान जी के मिलन का वर्णन करते हुए उनकी तीन विशेषताएं जोकि उन्हें श्रीराम का प्रिय बनाती हैं, का वर्णन किया। कहा हनुमान जी ने अपना नाम कभी नहीं रखा, जिस नाम से भी उन्हें पुकारा जाता है वो सभी उनकी विशेषताएं हैं,क्योंकि हनुमान जी कहते हैं जब में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम। हनुमान जी ने अपना रूप वानर का अपनाया और अपने यश को त्यागा। जामवंत द्वारा हनुमान जी को उनका पुरुषार्थ स्मरण कराने के बाद जब सागर पार कर हनुमान जी लंका पहुंचे उसका मानो कथा व्यास जी ने सजीव वर्णन कर दिया। मार्ग की तमाम बधाओं को पार कर लंका पहुंचे। दिन ढलने के बाद रात के अंधकार में रावण स्वभाव जाना। दिन में जो रावण मर्यादित और भक्त बनता था वो ही रात में मदिरा और मांस का भक्षण करता है। विडंबना थी कि रावण की लंका में सभी मकान मंदिरों की आकृति के थे। विभिषण मिलन पर जब संत मिलन हो जाए, तेरी वाणी हरी गुण गाए तब इतना समझ लेना अब हरी से मिलन होगा…भजन ने भक्तिमय भाव का संचार किया।    

हनुमान जी अशाेक वाटिका में दुखी मन से बैठीं माता सीता से मिले। मुद्रिका सौंप कर जब कहा कि मैं करुणानिधान का सेवक हूं तब माता सीता का मार्मिक भाव दृश्य हर श्रद्धालु के नेत्रों में उतर आया और नेत्र सजल हो गए। 

लंका दहन एवं प्रभु श्रीराम से माता सीता की व्यथा वर्णन के साथ छठवें दिन की कथा का समापन हुआ।  

जब भी बैठें सीधे बैठें।

संत विजय कौशल महाराज ने जीवन का सूत्र बताया, कहा कि जहां सुमति तहां संपत्ति नाना और जहां कुमति वहां बिपत्ति निदाना। मन का स्वभाव कीचड़ में गिरना है। यदि ध्यान लगाएंगे और सदैव रीढ़ की हड्डी को सीधा करके बैठेंगे तो मन उपर की ओर उठने लगेगा। जीवन में संत का प्रवेश अवश्य होना चाहिए और गलत का प्रतिकार करना भी आना चाहिए। राव कितना ही पापी क्यों न था किंतु उसने शास्त्रों में वर्णित मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। कभी भी माता सीता से एकांत में भेंट करने नहीं गया। सदैव रानियों के साथ गया क्योंकि परस्त्री से एकांत में भेंट शास्त्रों में वर्जित है।   

 होगा राज तिलक संग समापन। 

शुक्रवार को रावण वध और श्रीराम के राज तिलक के साथ कथा का समापन होगा। इससे पूर्व सुबह समापन हवन किया जाएगा। 

मंगलमय परिवार दिसंबर में उदयपुर में कराएगा कथा। 

मंगलमय परिवार,आगरा द्वारा 23 से 28 दिसंबर को उदयपुर,राजस्थान में संत श्री विजय कौशल महाराज की श्रीराम कथा का आयोजन किया जाएगा।