पत्नी की माँग केवल पति ही भर सकता है,और प्राणों का पति सिर्फ परमात्मा ही हैः संत विजय कौशल जी महाराज।



 एसबी आर्नामेंट परिवार की ओर से किया जा रहा है सात दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन।

सूरसदन प्रेक्षागृह में चल रही श्री राम कथा के चौथे दिन हुआ श्रीराम जानकी विवाह।

रामनगर कॉलोनी में बनी मिथिलानगरी,बारात लेकर निकले चारों भाइयों के स्वरूप।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। देह का पति मानव है, किंतु प्राणों का पति तो सिर्फ परमात्मा ही है। पति ही है जो अपनी पत्नी की माँग भर सकता है। परिवार का पोषण कर सकता है। 

जब एक बार उस परमात्मा से जीव का मिलन हो जाता है,संबंध हो जाता है तो जीवन को पार लगने में देर नहीं लगती। कथा व्यास मानस मर्मज्ञ विजय कौशल महाराज ने श्री राम−जानकी विवाह प्रसंग की दिव्यता का जब उपरोक्त शब्दों से बखान किया तो जैसे आध्यात्म के मर्म को श्रद्धालुओं के हृदय में उतार दिया। गुरुवार को सूरसदन प्रेक्षागृह में एसबी आर्नामेंट परिवार द्वारा आयोजित श्री राम कथा के चौथे दिन श्री राम जानकी विवाह और परशुराम लीला का वर्णन किया गया। 

अयोध्या नगरी के रूप में सजा प्रेक्षागृह आस्था के सैलाब का साक्षी बन रहा है। संत विजय कौशल जी महाराज ने प्रसंग का आरंभ जनकपुर में श्रीराम और लक्ष्मणजी के गुरु विश्वामित्र संग प्रवेश के साथ किया। 

माता सीता का स्वंवर का वर्णन करते हुए जैसे सजीव झांकी के साक्षात्कार कथा व्यास ने करवा दिये। 

अन्य क्षत्रिय राजाओं के असफल होने पर व्यथित राजा जनक ने स्वयंवर समाप्त करने की घाेषणा कर दी। इस पर लक्ष्मण जी अपने भ्राता पर क्रोधित हुए और कहा कि उठाे भ्राता,जैसे हाथी कमल की डंडी को मरोड़ देता है वैसे ही आप महादेव के इस धनुष को तोड़ दीजिए।

 गुरु आज्ञा लेकर भगवान श्री राम ने धनुष को मध्य से तोड़ा क्योंकि अहंकार जीवन की मध्य आयु यानि युवावस्था में चढ़ता है, उसकाे तोड़ना उसी वक्त चाहिए। धनुष टूटने की गूंज से परशुराम जी जनकपुर आते हैं और क्रोधित होते हैं। प्रभु श्रीराम से नारायण होने के साक्ष्य मांगते हैं तो उनके स्वयं के कंधे पर लगा नारायण अस्त्र टूट कर श्रीराम के चरणाें में गिर जाता है। यहां कथा व्यास ने कहा कि महापुरुषाें की कोई भी जाति नहीं होती। न भगवान राम क्षत्रिय थे और न परशुराम जी ब्राह्मण। वे तो महापुरुष, ब्रह्म अवतार थे। सृष्टि के भगवान को जाति की राजनीति में बांधना अपराध है। इसके बाद परशुराम जी द्वारा श्रीराम की स्तुति और फिर माता जानकी का अलौकिक दिव्य श्रंगार। माता सुनयना और राजा जनक के भाग्य की महिमा अपरंपार क्योंकि स्वयं जगत जननी उनकी गोद में बड़ी हुईं और ब्रह्म उनके जमाई बनने जा रहे हैं। इसके बाद बखान हुआ प्रभु राम सहित चारों भाइयों की बरात निकासी का। जिसकी सजीव झांकी मिथिला नगरी बनी रामनगर कॉलोनी में हुई।

जब रथ पर बैठकर चारों भाइयों के स्वरूप निकले। श्रद्धालु गाने लगे आज मिथिला नगरिया निहाल सखी रे, चारों दूल्हा में बड़का कमाल सखी रे..। सकुचाती वैदेही हरी साड़ी में अपनी बहनों और सखियों संग भांवरों के लिए पधारीं। एक ओर कथा प्रसंग और दूसरी ओर सीया रघुवर जी के संग परन लागी हरे− हरे…गीत पर झूमते श्रद्धालु थे। वहीं कथा व्यास संत विजय कौशल जी ने जनक पुर की महिमा का भी अद्भुत वर्णन किया। कहा कि जनकपुर की महिमा बखानी नहीं जाती,उपमा नहीं दी जाती। दिव्यता से परिपूर्ण दुल्हन की भांति श्रंगारित मिथिला नगरी और एक जैसे रूप में सुशाेभित होते चारों भाई और दोनों समधि। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीहरि विष्णु के सभी अवतारों में विवाह सिर्फ श्रीराम अवतार में ही हुआ,इसलिए उनके विवाह के हर संस्कार की महिमा दिव्य ही है। बड़हार के प्रसंग के बाद आरती के साथ चौथे दिन के कथा प्रसंग का समापन हुआ।  

 होंगे ज्यौनार और वनवास लीला प्रसंग। 

श्रीराम कथा के पांचवे दिन भगवान श्रीराम और माता जानकी के विवाह वर्णन में ज्यौनार का वर्णन होगा और वनवास लीला प्रसंग का बखान किया जाएगा।