बृज के कण-कण में है,महादेव का वास: पंडित प्रदीप मिश्रा जी।


                     

                      


- राधा रानी की सखी बन माता-पार्वती देवी लक्ष्मी व सरस्वती ने भी रचाईं है रास।

- बृज धरा है भक्ति व वैराग्य की भूमि, यहां की गई सेवा नहीं जाती निर्थक।

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

श्री जी निकुंज,कोसीकलां (मथुरा) बृज के कण कण में है देवाधिदेव महादेव का वास,इस धरा पर आने के लिए ऋषि मुनियों के साथ ही देवी देवता भी लालायित रहते हैं, यहां रास रचाने के लिए गौरा, लक्ष्मी और सरस्वती ने भी भेष बदल कर नित्य नित्यानंद प्रभु की लीलाओं में प्रवेश किया है ।

  शिव भक्त परिवार के तत्वावधान में राजमार्ग के अजीजपुर सीमा क्षेत्र के श्री जी निकुंज परिसर में चल रही श्री गोपेश्वर गोपी शिव महापुराण कथा के छठवें दिन विश्व विख्यात वक्ता भागवत भूषण शिव कथा मर्मज्ञ परम श्रद्धेय पंडित प्रदीप मिश्रा ने बृज की महिमा का गुणगान करते हुए उपस्थित भक्त वत्सल श्रद्धालुओं को बताया कि बृज में रास रचाने के लिए सभी देवी देवता भी लालायित रहे हैं, यहां की तप और बल की जगह है । यह आध्यात्म की भूमि है यहां आकर पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

 व्यासजी ने बताया कि एकबार तीनों देव मिले तो चर्चा होने लगी कि यह पार्वती, लक्ष्मी व् सरस्वती  प्रदोष काल में ही कहाँ निकल जाती हैं । जब इस बारे में बातें होने लगी तो महादेव ने अपनी ज्ञान इंद्री से ज्ञात किया और वह कहाँ हैं । इसपर उनके गौलोक धाम (बृज धरा) की सूचनाएं मिलीं और वह ढूढ़ते ढूढ़ते बृज भूमि पर वहां पहुँच गए जहां राधा रानी रास रचा रहीं थीं और उनके इर्द गिर्द यह तीनों देवी रास कर रही थीं । उन्होंने बाहर खड़ीं राधा रानी की मुख्य सखी ललिता देवी से अंदर जाने को कहा तो भोले बाबा को ललिता जी ने रोक दिया और कहा कि यहां पर सिर्फ गोपी ही जा सकती हैं । इस पर भोलेनाथ ने कहा कि हमारी गौरा को बाहर बुला दो और पार्वती माँ का सचरित्र वर्णन कर सुनाया तो ललिता सखी ने अंदर जाकर देखा और गौरा माँ से उनका परिचय पूछा और कहा कि महादेव बाहर बुला रहे हैं।गौराजी ने उन्हें मना करवा दिया और कहा कि उनसे कह दो कोई देवी अंदर रास नहीं रचा रही है । जब ललिता सखी बाहर लौटकर आईं और उन्होंने भोलेनाथ को बताया कि यहां ऐसी कोई देवी नहीं है, देवाधिदेव सबकुछ जानते हुए भी अनभिज्ञ बने रहे । वहां माता पार्वती देवी लक्ष्मी व् सरस्वती के साथ राधा रानी संग रास रचा रही थीं ।

  भागवत भूषण परम पूज्य श्रद्धेय पंडित प्रदीप मिश्राजी ने कहा कि बृज की धरा में आने के लिए सभी देवी देवता लालायित रहते हैं, यहां के कण कण में भक्ति व् वैराग्य है । यहां के किसी भी शिव मंदिर में एक लोटा जल चढ़ाकर सच्चे मन से की गई सफल होती है ।

कथा के मध्य में बृज भूषण मंदिर कोटवन के महंत माधव दास जी महाराज मौनी बाबा और प्रख्यात श्री मद भागवत वक्ता अनिरुद्राचार्य महाराज ने व्यास जी का माल्यार्पण कर स्वागत किया, वहीं व्यासजी ने रुद्राक्ष की माला एवं दुपट्टा भेंट किया ।

कथा के समापन पर मुख्य यजमान सुभाष चंद बांसईया, रेनू बांसईया, सौरभ बांसईया व् सोनल बांसईया आदि ने अपने सगे संबंधियों संग आरती उतारी ।

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रिपोर्ट-बी.एस.शर्मा'उपन'।