व्यस्तता और इंटरनेट के डिजिटल दौर में भी पुस्तकों का अपना महत्व: डा.विनोद महेश्वरी


                                छाया:असलम सलीमी

डा.विनोद महेश्वरी से वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना की बातचीत। 

आगरा में हुआ राष्ट्रीय पुस्तक मेला साबित हुआ साहित्य जगत का बडा आकर्षण।

हिन्दुस्तान वार्ता।ब्यूरो

आगरा:पुस्तकों का जितना महत्व पहले था,उतना ही आज भी है,यह कहना है आगरा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य एवं नागरी प्रचारणी सभा के उपसभा पति डा.विनोद महेश्वरी का है। वे आगरा के जीआईसी ग्राऊंड में जीआईसी मैदान में लगे अक्षरा साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय पुस्तक मेला एवं साहित्य उत्सव बुक फैस्टेविल के संपन्न आयोजन को लेकर चर्चा कर रहे थे।डा.महेश्वरी ने कहा कि 25 नवम्बर से 3दिसम्बर 2025 तक चले इस आयोजन में हुए ‘फुटफाल ‘ अपने आप में इस बात का प्रमाण हैं कि लेखकों और प्रकाशकों का महत्व व्यस्तता का दौर अब भी समाप्त नहीं कर सका है।

आगरा का साहित्य और भाषा से पुराना रिश्ता।

श्री महेश्वरी ने कहा कि उपमुख्यमंत्री श्री ब्रजेश पाठक की पुस्तक मेले में मौजूदगी अपने आप में यह संदेश है कि सरकार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक आयोजन के प्रति गंभीर है। 

श्री महेश्वरी ने कहा कि आगरा का हिन्दी, हिन्दुस्तानी और बृज भाषा और उनमें रचे गये साहित्य से गंभीर और पुराना रिश्ता रहा है। हिन्दी के पहले साहित्यकार के रूप में विख्यात लल्लू लाल जी आगरा में ही जन्मे थे,गोकुलपुरा और बल्काबस्ती में उनका निवास था। इस प्रकार इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को हिन्दुस्तानी सिखाने का काम आगरा के ही युवा अब्दुल करीम ने किया था।

मौजूदा दौर के प्रेरक थे दुर्गा शंकर मिश्र।

श्री महेश्वरी का कहना है कि आगरा की साहित्यिक गतविधियों और साहित्यकारों को उत्साहित करने के मौजूदा दौर की शुरूआत मौजूदा मुख्य सचिव श्री दुर्गाशंकर मिश्र के द्वारा अपने आगरा में रहे जिलाधिकारी पद के कार्यकाल में की गयी। जिसे कि अन्य जिलाधिकारी श्री नीतेश्वर कुमार के कार्यकाल में ‘ताज बुक फैस्टेविल’ के आयोजन के रूप में नयी दिशा मिली।उन्होंने कहा कि पुस्तक मेले या प्रदर्शनी का आयोजन जहां पुस्तक प्रेमियों और रचनाधर्मियों को आपस में साक्षात्कार करने का अवसर देता है,वहीं प्रकाशकों के लिये तो यह व्यवसाहिक संभावनाओं से भरपूर अवसर होता है।

डा.महेश्वरी ने कहा कि आगरा में देश भर से पर्यटक आते रहते हैं, इसलिए यहां का आयोजन और भी खास हो जाता है।इसे अगर उ प्र के पर्यटन विभाग और सांस्कृतिक विभाग के कार्यक्रम कलैंडरों में शामिल कर दिया जाये तो लिट्रेचर और कल्चरर एक्टिविस्ट के लिये आगरा आने का बडा कारण साबित हो सकता है।

बाल सहित्य सर्जन।

डा.महेश्वरी ने कहा कि आगरा बाल साहित्य सर्जन की भी भूमि रहा है, सूर दास जी ने कृष्ण के बालस्वरूप की कल्पनाओं को यहीं सजीव किया था ,हिन्दी साहित्य जगत में बालसुलभ रचनाओं के कारण ‘बच्चों के गांधी’ के रूप में स्थापित अपने पिता स्व द्वारिका प्रसाद महेश्वरी से जुडी स्मृतियों को ताजा करते हुए कहते हैं कि बहुत ही मुश्किल होता है मौलिक साहित्य का सृजन खास कर जब जब कलम बच्चों के लिए चलानी हो। अमृत लाल नागर के ‘नौरंगी और बजरंगी ‘ आगरा की ही गलियों के जन्में किरदार ही तो हैं,’बीरबल’ के किस्से बच्चों को ही नहीं ‘आज के अकबरों ‘ को भी भरपूर सीख देने उतने ही पैने हैं जितना कि छै सौ साल पहले थे। उन्हें खुशी होगी कि सार्थक और बालबुद्धि के सहज ग्राह्य योग्य साहित्य सर्जन का दौर नये तेवरों के साथ पुन:शुरू हो।

✍️ राजीव सक्सेना"वरिष्ठ पत्रकार"