उफ! क्या ये है स्वतंत्रता...✍️ अनिल कुमार शर्मा

 


हिन्दुस्तान वार्ता।

उफ!  ये स्वतंत्रता...

किसी को पसंद नहीं पराधीन रहना 

कोई नहीं चाहता तानाशाही 

सभी चाहते हैं 

स्वतंत्रता।

आखिरकार

बरसों तक जुल्म सहते हुऐ

शहीदों की क़ुर्बानियों के बाद

मिल ही गई “हमको”

भी थाल में परोसी हुई स्वतंत्रता 

पराक्रम व परिश्रम के बिना

मगर अफसोस!

बलिदानियों के संघर्ष को भूल गये,

स्वतंत्रता का मूल्यांकन न कर सके। 

स्वतंत्र क्या हुए

अनुशासन-हीन हो गए। 

तानाशाह हो गए। 

लापरवाह हो गए।

स्वच्छंद हो गए।

मत देने की अमूल्य स्वतंत्रता मिली,

तो हमने चुने भ्रष्ट जन-प्रतिनिधि

ये परजीवी 

राशन, रहन-सहन, हवाई व रेल आवागमन, 

उच्च स्तरीय भत्ता, चिकित्सा 

जनता के परिश्रम से जमा टैक्स से 

मुफ्त में उपभोग करते हैं ?

महलनुमा आवास ,पैट्रोल पम्प, गैस ऐजेन्सी ,बडे़ बडे़ माल व होटल पर इनका पहला हक़ है।

ये बहरूपिये देश के ठेकेदार 

जनता के सेवक कहलाते हैं !

इनके संरक्षण में “चयनित” गुर्गे

मनमानी करने के लिए स्वतंत्र है।

जिसको चाहे गरियाये

मसल कर फेंक दे सड़क पर 

और बच निकलें, 

स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने के लिए,

अनपढ़ व दागी सांसद स्वतंत्रता की देन हैं। 

जो पढे लिखी जनता को पढ़ाते हैं।

सीख देते हैं।

देश भक्ति का पाठ पढ़ाते हैं।

इसी स्वतंत्रता के जहाज पर बैठकर,

प्रायोजित स्वतंत्र लोग,

देश की जनता का पैसा लेकर भाग रहे हैं।

विदेशों में बस रहे हैं। 

कुछ विशेष स्वतंत्र लोग, 

जमीन हड़प रहे हैं।

पानी सहित पूरा तालाब पीये जा रहे हैं।

जंगल निगल रहे हैं। 

गरीबों को उजाड़ रहे हैं।

किसान का शोषण कर रहे हैं।

आत्महत्या करने पर मजबूर हैं किसान,

नई पीढ़ी 

इतनी स्वतंत्र हो गई है कि 

अपने मां बाप को ही पीट रही है।

उन्हीं के घर से उनको ही,

बेदख़ल कर रही है।

अनंत रूपों में व्याप्त है। 

स्वतंत्रता। 

उफ! अब भयभीत करती है

स्वतंत्रता।

✍️ अनिल कुमार शर्मा