अलविदा ! पंकज धीर (9 नवम्बर 1956 -15 अक्टूबर 2025)

हिन्दुस्तान वार्ता।✍️ शाश्वत तिवारी

पंकज धीर के निधन ने यह याद दिलाया कि चाहे कितनी भी प्रसिद्धि हो, जीवन की नश्वरता से कोई नहीं बच सकता। उनकी कहानी इस ओर इशारा करती है कि प्रसिद्धि और आदर के बीच व्यक्ति को निरंतर स्वास्थ्य, मानसिक मजबूती और संतुलन बनाए रखना पड़ता है।

कभी-कभी कलाकार की असल पहचान और निजी जीवन छुपा रह जाता है। यह सार्वजनिक रूप से नहीं पता है कि उनके किस अंग या किस प्रकार का कैंसर था।

रोग-प्रबंधन और सामाजिक जागरूकता :

उनकी बीमारी और अंत की स्थिति ने यह संदेश दिया कि समाज में, स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता, समय पर निदान, नियमित जांच, और उपचार बाद की देखभाल कितनी अहम है। कई लोग स्वास्थ्य से जुड़ी छोटी-छोटी शिकायतों को अनदेखा कर देते हैं।

पंकज धीर के मामले में बताया गया है कि वह पहले कैंसर से उबरने की स्थिति में थे, लेकिन फिर पुनरावृत्ति हुई। पारिवारिक एवं आर्थिक दबाव, समाचारों में एक विवादित लेकिन चिंताजनक तथ्य सामने आया है, यह बताया गया है कि पंकज धीर के परिवार ने एक समय में अभिनेत्री गीता बाली के लिए एक वचन निभाने के कारण बहुत कठिनाई झेली थी,जिससे उनका आर्थिक संसाधन प्रभावित हुआ। 

पंकज धीर का निधन कैंसर की जटिलताओं और पुनरावृत्ति से हुआ माना जा सकता है। ऐसे रोगियों में लगातार निगरानी, स्वास्थ्य परीक्षण और जीवनशैली नियंत्रण बेहद आवश्यक होता है। इस प्रकार बीमारी के बोझ को पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक तरीके से संभालना एक बड़ी चुनौती हो सकती है। स्वास्थ्य सेवा, अस्पताल शुल्क, जीवनशैली बदलना, ये सब दबाव बढ़ाते हैं।

उनका करियर बहुत विविध था, टीवी सीरीज़, फिल्मों, और अन्य माध्यमों में उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी। उनके परिवार में उनकी पत्नी अनिता धीर और पुत्र (जो स्वयं अभिनेता हैं) निकितिन धीर हैं। 

पंकज धीर का निधन 15 अक्टूबर 2025 को मुंबई में हुआ। उनके निधन की पुष्टि CINTAA (Cine & TV Artistes’ Association) और उनके जानकारों ने की। अंतिम संस्कार उसी दिन मुंबई के पवन हंस (Vile Parle, Santacruz क्षेत्र) के पास किया गया। 

श्रद्धांजलि देने वालों में बॉलीवुड एवं टीवी कलाकार, साथ ही उनके पुत्र निकितिन धीर और कई साथी कलाकार उपस्थित हुए। सलमान खान को अंतिम संस्कार में शामिल होने और शोक व्यक्त करने के लिए देखा गया। 

रिपोर्ट्स के अनुसार,कैंसर से उनकी हालत गंभीर थी। विशेषज्ञों द्वारा यह कहा गया है कि कैंसर पुनरावृत्ति एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है, विशेष रूप से यदि पहले उपचार हुआ हो, और रोग की कोशिकाएँ फिर सक्रिय हो जाएँ। 

पंकज धीर की पहचान ‘कर्ण’ से इस कदर जुड़ गई थी कि जनता और प्रशंसक उन्हें उसी रूप में देखते थे। यह एक तरह की पात्र-प्रतीकात्मक जड़ता थी।

कई समाचारों ने “कैंसर” शब्द का उपयोग किया है, लेकिन कौन सा प्रकार फेफड़ों, पेट, आदि स्पष्ट नहीं है।उनकी ‘कर्ण’ की भूमिका न सिर्फ दर्शकों के दिलों में उतरी बल्कि भारतीय टीवी इतिहास में एक मील का पत्थर बन गई।उनकी अन्य प्रसिद्ध भूमिकाएँ में, चंद्रकांता (Shiv Dutt), टीवी शो जैसे Yug, The Great Maratha, Badho Bahu, आदि। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी छोटे-छोटे भूमिका निभाईं: Soldier, Baadshah, Tumko Na Bhool Paayenge, Sadak, Andaz आदि। उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने के लिए Abhinay Acting Academy की स्थापना भी की थी।

उनके अभिनय की इतनी प्रतिष्ठा थी कि उनकी मूर्तियाँ बनीं और उन्हें कर्ण मंदिरों में पूजा जाता है,जिसमें करनाल और बस्तर खास हैं।पंकज धीर की जीवन "संघर्ष यात्रा" बहुतों के लिए उदाहरण पेश करती है कि एक कलाकार का जीवन कितना पंक्तिबद्ध, संघर्षपूर्ण और संवेदनशील हो सकता है।उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएँ, विशेषकर कर्ण, आदर्श, वीरता, त्याग और मानवीय संघर्ष की कहानियों को जनसाधारण के बीच पहुँचाने का माध्यम बनीं।

अक्सर कलाकारों को आर्थिक संकट, अस्वस्थता, बीमारी आदि पर सहायता कम मिलती है। यदि सार्वजनिक संस्थाएँ या कलाकर्म मंच उनके लिए सुरक्षा-जाल बनाएँ, तो उनकी कठिनाइयाँ कम हो सकती हैं। पंकज धीर के परिवार की आर्थिक चुनौतियों की खबरें यह दर्शाती हैं कि कलाकर जीवन में अनिश्चितताएँ, विज्ञप्तियों के बाहर भी होती हैं। 

किसी एक भूमिका का प्रभाव इतना बड़ा हो सकता है कि उसकी छाया कलाकार की अन्य भूमिकाओं या असली व्यक्तित्व को ढक दे। यह कलाकार को आनंद और बोझ, दोनों दे सकता है।

उनकी जीवन-यात्रा हमें यह सिखाती है कि प्रसिद्धि के बीच भी असली मनुष्य की कमजोरियाँ और संघर्ष होते हैं। हमें स्वास्थ्य, परिवार और सामाजिक सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही, कलाकारों के लिए सामाजिक,संस्थागत और भावनात्मक सहयोग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।