ॐ धन्वन्तर्ये नमः।



मकर संक्रांति पर्व के दिन से धरती पर शिशिर ऋतु आरंभ हो चुका है। आयुर्वेद के अनुसार तथा भारतीय काल गणना के अनुसार अब के बरस पौष मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि तक शिशिर ऋतु है। जो कि क्रिश्चियन काल गणना के अनुसार 14 January 2021 से 14 March 2021 तक शिशिर ऋतु है। समय के अभाव से शिशिर ऋतु चर्या भेज नहीं पाए। आज भेज रहे हैं।

*आयुर्वेद के अनुसार। ""शशन्ति धावन्ति यस्मिन् पथिका:, शशा-प्लुतगतौ किरचि, शशेरूपधाया इति शिशिर:।""*


*अर्थात् शश- खरगोश। आपने देखा होगा कि जब खरगोश उछल कुद कर चलता है , तब थर्राते हुए चलता है। जिस ऋतु में प्राणी खरगोश की तरह ही चलते हैं इसलिए ही इस ऋतु को "शिशिर ऋतु" कहते हैं।*


*यश्चतुर्भ्य समुद्रेभ्यो वायुर्ध्दारयते जलम्।*

*उद् धृत्य तदते चापो जीमूतेऽम्बरेऽनिल:।।*

*योऽभि संयोज्य जीमूतान् पर्जन्याय प्रयच्छति।*

*तद् वहो नाम वंर्हिष्णस्तुताय: स सदागति:।।*


*अर्थात् शिशिर ऋतु में मेघ एवं वायु का संगम होने से शिशिर ऋतु में चलने वाली वायु को  "उद् वह"  कहा गया है। अतः जहां पर ठंडी हवा न चलतीं हों वहां पर रहना चाहिए।*


*शिशिर ऋतु में क्या नहीं खाना चाहिए।*


*कटुतिक्त कषायाणि वातलानि लघुनि च।*

*वर्जयेदन्नपानानि शिशिरे शीतलानि च।।*


*अर्थात् शिशिर ऋतु में तीखा नहीं खाना चाहिए, करेला आदि कड़वा भी नहीं खाना चाहिए, तथा कसैला स्वाद के चीजें भी नहीं खाना चाहिए। जो खाद्यान्न शीघ्र पचने वाली हों तथा वात को बढाता हों एवं ठंडी चीजें नहीं खाना चाहिए।*


*शिशिर ऋतु में क्या खाएं?*


*तस्मात्तुषारसमये स्निग्धाम्ललवणान् रसान्।*

*औदकानूप मांसानां मेद्यानामुपयोजयेत्।।*

*विलेशयानां मांसानि प्रसहानां भृतानि च।*

*भक्षयेन् मदिरा शिधुं मधु  चानुपिवेन्नर:।।*

*गोरसानिक्षुविकृतिर्वसां तैलं नवोदकम्।*

*शिशिरेऽभ्यस्यतस्तोयमुष्णं चायुर्नहीयते।।*


*अर्थात् शिशिर ऋतु में भी वायु में रुखापन रहता है, अतः घी, सरसों का तेल, अम्ल रस, लवण रस युक्त खाद्यान्न का सेवन करना चाहिए, पानी में रहने वाले जीवों का सेवन कर सकते हैं। अष्टवर्ग से युक्त ( मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, ऋषभ, ऋद्धि तथा वृद्धि इन आठों को आयुर्वेद में अष्टवर्ग कहते हैं।) च्यवनप्राश का सेवन सतत करना चाहिए।*


*बिल में रहने वाले जीवों का मांस , पक्षियों का मांस, नया चावल एवं गर्म पानी का सेवन करना चाहिए। तथा मधु (शहद) का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। आयुर्वेद में वर्णित सुरा ( मृतसंजीवनी सुरा, पिप्पल्यादि सुरा, रसोनादि सुरा, अंगुरासव एवं फलासव आदि का सेवन करना चाहिए।*


*शिशिर ऋतु में शरीर में सुगंधित तेल मालिश करें, काला अगुरु को चंदन की भांति घिसकर शरीर में लगाना उचित है।*


*हसंतीं च हसंतीं च हसंतीं वामलोचना।*

*शिशिरे ये न सेवंते ते नूनं दैववंचिता।।*


*जो कोई प्राणी शिशिर ऋतु में संभोग नहीं करते हैं तो समझना चाहिए कि वह बड़े अभागा है , अर्थात् शिशिर ऋतु में संभोग करने की अनुमति मिली है, जो कि स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।*


धन्यवाद


✍ सत्यवान नायक