समाज की एक गंभीर समस्या - विवाह की बढ़ती उम्र पर समाज की खामोशी क्यों...?


संकलन- इंजी. आर. के.वर्मा




रि.चीफ इंजीनियर-आर. के.वर्मा



     यूँ तो सपने किसी भी उम्र में देखे जा सकते हैं लेकिन हसीन सपने देखने की एक उम्र होती है युवावस्था.. और वह अवस्था 18 साल से लेकर के 27 - 28 वर्ष तक ही होती है। तब हर युवा चाहे वह लड़का हो या लड़की कुछ रंगीन ख्वाब संँजो कर रखता है। परंतु आजकल इन सपनों को, इन ख्वाबों को ग्रहण लग गया है। एक उचित उम्र में विवाह हो जाना चाहिए ना जाने क्यों वह उम्र निकल जाती है और देखने में तो यहांँ तक आ रहा है कि 30, 32, 35, 38 वर्ष तक युवा विवाह नहीं करते। उनके परिवारजन या समाज उदासीन है या वे स्वयं विवाह के प्रति उदासीन हैँ ? आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? *कारण व निवारण पर विस्तार से आलेख प्रस्तुत है! अवश्य ही पढ़ें !!*


!! विवाह और उम्र !!


     28-32 साल के युवक-युवतियाँ  बैठे है कुंँवारे, फिर मौन क्यों हैं समाज के कर्ता-धर्ता ?


     कुंँवारे बैठे लड़के लड़कियों की एक गंभीर समस्या आज सामान्य रुप से सभी समाजों में उभर के सामने आ रही है। इसमें उम्र  तो एक कारण है ही मगर समस्या अब इससे भी कहीं आगे बढ़ गई है। क्योंकि 30 से 35 साल तक की लड़कियां भी कुंँवारी बैठी हुई हैँ । इससे स्पष्ट है कि इस समस्या का उम्र ही एकमात्र कारण नहीं बचा है। ऐसे में लड़के लड़कियों के जवान होते सपनों पर न तो किसी समाज के कर्ता-धर्ताओं की नजर है और न ही किसी रिश्तेदार और सगे संबंधियों की। हमारी सोच कि हमें क्या मतलब है ? में उलझ कर रह गई है। बेशक यह सच किसी को कड़वा लग सकता है लेकिन हर समाज की हकीकत यही है, 25 वर्ष के बाद लड़कियांँ ससुराल के माहौल में ढल नहीं पाती है, क्योंकि उनकी आदतें पक्की और मजबूत हो जाती हैं अब उन्हें मोड़ा या झुकाया नहीं जा सकता, जिस कारण घर में बहस, वाद विवाद, विवाह विच्छेद  होता है |  बच्चे सिजेरियन ऑपरेशन से होते हैं जिस कारण बाद में बहुत सी बीमारियों का सामना करना पड़ता है ।

शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल व लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए ये तो अब बस आंकड़ों में ही रह गया है। एक समय था जब संयुक्त परिवार के चलते सभी परिजन अपने ही किसी रिश्तेदार व परिचितों से शादी संबंध बालिग होते ही करा देते थे। मगर बढ़ते एकल परिवारों ने इस परेशानी को और गंभीर बना दिया है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि एकल परिवार प्रथा ने आपसी प्रेम व्यवहार ही खत्म सा कर दिया है। अब तो शादी के लिए जांँच पड़ताल में और कोई तो नेगेटिव करें या न करें अपनी ही खास सगे संबंधी नेगेटिव कर बनते संबंध खराब कर देते हैँ ।


उच्च शिक्षा और ऊँचा जॉब बढ़ा रहा है उम्र !!


     यूँ तो शिक्षा शुरू से ही मूल आवश्यकता रही है लेकिन पिछले डेढ़ से दो दशक में  इसका स्थान उच्च शिक्षा या कहें  कि खाने कमाने वाली डिग्री ने ले लिया है। इसकी पूर्ति के लिए अमूमन लड़के की उम्र 23-24 या अधिक हो जाती है। इसके दो-तीन साल तक जॉब करते रहने या बिजनेस करते रहने पर उसके संबंध की बात आती है। जाहिर है इतना होते-होते लड़के की उम्र तकरीबन 30 के इर्द -गिर्द हो जाती है। इतने तक रिश्ता हो गया तो ठीक, नहीं तो लोगों की नजर तक बदल जाती है। यानि 50 सवाल खड़े हो जाते हैँ ।


★चिंता देता है उम्र का यह पड़ाव !!


     प्रकृति के हिसाब से 30 प्लस का पड़ाव चिंता देने वाला है। न केवल लड़के-लड़की को बल्कि उसके माता-पिता, भाई-बहन, घर-परिवार और सगे संबंधियों को भी। सभी तरफ से प्रयास भी किए, बात भी जंँच गई लेकिन हर संभव कोशिश के बाद भी रिश्ता न बैठने पर उनकी चिंता और बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, शंका-समाधान के लिए मंदिरों तक गए, पूजा-पाठ भी कराए, नामी विशेषज्ञों ने जो बताए वे तमाम उपाय भी कर लिए पर बात नहीं बनी। मेट्रीमोनी वेबसाइट्स व वाट्सअप पर चलते बायोडाटा की गणित इसमें कारगार होते नहीं दिखाई देते। बिना किसी मीडिएटर के संबंध होना मुश्किल ही होता है। मगर कोई मीडिएटर (मध्यस्तता) बनना चाहता ही नहीं है। मगर इन्हें कौन समझाए कि जब हम किसी के मीडिएटर नहीं बनेंगे तो हमारा भी कोई नहीं बनेगा। एक समस्या ये भी है कि हम पैदा करते जा रहे हैँ  कि हम सामाजिक न होकर एकांतवादी बनते जा रहे हैँ ।


★आखिर कहांँ जाए युवा मन !!


     अपने मन को समझाते-बुझाते युवा आखिर कब तक भाग्य भरोसे रहेगा। अपनों से तिरस्कृत और मन से परेशान युवा सब कुछ होते हुए भी अपने को ठगा सा महसूस करता है। हद तो तब हो जाती है जब किसी समारोह में सब मिलते हैं और एक दूसरे से घुल मिलकर बात करते हैं लेकिन उस वक्त उस युवा पर क्या बीतती है, यह वही जानता है। ऐसे में कई बार नहीं चाहते हुए भी वह इधर - उधर कदम बढ़ाने को मजबूर हो जाता है जहाँ  शायद कोई सभ्य पुरूष जाने की भी नहीं सोचता या फिर ऐसी संगत में बैठता है जो बदनाम ही करती हो।  


ख्वाहिशें अपार अरमान हजार !!


     हर लड़की और उसके पिता की ख्वाहिश से आप और हम अच्छी तरह परिचित हैं। पुत्री के बनने वाले जीवनसाथी का खुद का घर हो, कार हो, परिवार की जिम्मेदारी न हो, घूमने-फिरने और आज से युग के हिसाब से शौक रखता हो और कमाई इतनी तगड़ी हो कि सारे सपने पूरे हो जाएं, तो ही बात बन सकती है। हालांँकि सभी के अरमान ऐसे नहीं होते, लेकिन चाहत सबकी यही है। शायद हर लड़की वाला यह नहीं सोचता कि उसका भी लड़का है तो क्या मेरा पुत्र किसी ओर के लिए यह सब पूरा करने में सक्षम है। यानि एक गरीब बाप भी अपनी बेटी की शादी एक अमीर लड़के से करना चाहता है और अमीर लड़की का बाप तो अमीर से करेगा ही। ऐसे में सामान्य परिवार के लड़के का क्या होगा? यह एक चिंतनीय एवं विचारणीय विषय सभी के सामने आ खड़ा हुआ है। संबंध करते वक्त एक दूसरे का व्यक्तिव व परिवार देखना चाहिए ना कि पैसा। कई ऐसे रिश्ते भी हमारे सामने आए हैँ कि जब शादी की तो लड़का आर्थिक रूप से सामान्य ही था मगर शादी के बाद वह आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हो गया। ऐसे भी मामले सामने आते है कि शादी के वक्त लड़का बहुत अमीर था और अब स्थिति सामान्य रह गई। इसलिए लक्ष्मी तो आती जाती है ये तो नसीबों का खेल मात्र है।


क्यों नहीं सोचता समाज !!


     समाजसेवा करने वाले लोग आज अपना नाम कमाने के लिए लाखों रुपए खर्च करने से नहीं चूकते, लेकिन बिडम्बना यह है कि हर समाज में बढ़ रही युवाओं की विवाह की उम्र पर कोई चर्चा करने की व इस पर कार्य योजना बनाने की फुर्सत किसी को नहीं है। कहने को हर समाज की अनेक संस्थाएं हैं वे भी इस गहन बिन्दु पर चिंतित नजर नहीं आतीं।


पहल तो करें !!


     हो सकता है इस मुद्दे पर समाज में पहले कभी चर्चा हुई हो, लेकिन उसका ठोस समाधान अभी नजर नहीं आता। तो क्यों नहीं बीड़ा उठाएं कि एक मंच पर आकर ऐसे लड़कों व लड़कियों को लाएं जो बढ़ती उम्र में हैं और समझाइश से उनका रिश्ता कहीं करवाने की पहल करें। यह प्रयास छोटे स्तर से ही शुरू हो। रोशन भारत का हर समाज के नेतृत्वकर्ताओं से अनुरोध है कि वे इस गंभीर समस्या पर चर्चा करें और एक ऐसा रास्ता तैयार करें जो युवाओं को भटकाव के रास्ते से रोककर विकास के मार्ग पर ले जा सके। स्वार्थ न समझकर, परोपकार समझ कर सहयोग करें। *प्रश्न नही चिंतन करें।*