*रामायण त्याग, प्रेम और पावनता की सबसे बड़ी कहानी है। रामायण में हम सबने नाम "माता सुमित्रा" जाना है। उनके कर्तव्यों को लेकिन, किस किस ने पहचान की ..?*
माता सुमित्रा रामायण का सबसे उपेक्षित पात्र है। दो तीन प्रसंगों से ही हम उनके व्यक्तित्व को समझने का प्रयत्न करेंगे। राजा दशरथ की साढ़े तीन सौ रानियों में से हमें तीन रानियों के नाम मिलते हैं। *ये तीन रानियां हैं कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी।* जिन्हें देवताओं ने क्रमश: ह्रीं, श्री और कीर्ति से संबोधित किया है। इनमें से दूसरे स्थान पर सुमित्रा है जिन्हें श्री से संबोधित किया गया है। श्री यानि धर्म और बुद्धि । माता सुमित्रा कहां की राजकुमारी थी। इसका वर्णन ऋषि वाल्मीकी जी ने नहीं किया है। जबकि कौशल्या कौशल प्रदेश की और कैकेयी, कैकेय प्रदेश से संबंध रखती है।
जब राजा दशरथ ने पुत्र कामेष्ठी यज्ञ किया और यज्ञ से प्रसन्न होकर जब अग्निदेवता खीर लेकर प्रकट हुए उस समय राजा दशरथ ने खीर का आधा भाग लेकर कौशल्या को दिया। आधे भाग का आधा सुमित्रा को दिया। फिर जो एक चौथाई भाग बचा था उसको भी दो भागों में बांटा गया और आधा हिस्सा कैकेयी को दिया, और शेष बचा हुआ भाग पुन: सुमित्रा को दिया। यहां पर राजा दशरथ का व्यवहार देखने वाला है। उन्होंने सोच समझकर ही दो बार सुमित्रा को खीर का प्रसाद दिया होगा, जो खोजी बाबा ने व्यक्तिगत अनुभव किया। इसलिए उन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया लक्ष्मण और शत्रुघ्न ।
श्री रामचरितमानस या रामायण में सबसे उपेक्षित मगर महत्वपूर्ण किरदार की बात की जाए तो आपके मन में कौन आएगा..?
उर्मिला के बाद अगर दृष्टि जाए , तो लोग संभवतः भरत का नाम लें, कुछ लोग लक्ष्मण भी कह सकते हैं , तो माता कौशल्या की उदारता और वत्सलता भी लोगों को द्रवित करती है । मगर इन सबके समक्ष होकर भी, प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर ना भी होते हुए... एक चरित्र उज्जवल तारे सा यदा कदा जगमगाता रहता है और जिस प्रकार गहन अंधकार के क्षणों में ही तारे का उज्जवल प्रकाश हमारी नज़रों के सामने आता है उसी प्रकार परिवार की विपत्ति, बड़ों की सेवा और महल के एकाकीपन से होता हुआ एक नाम हमेशा छूट जाता है *"माता सुमित्रा"*
कौशल्या, भरत और श्रीराम के जीवन पर उन्होंने अपना और अपने दोनों बेटों का पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया। तमाम ग्रंथों में लिखित माता सुमित्रा का यश गाते रज कण यत्र - तत्र बिखरे हुए हैं। उनको एकत्र करके हम उस महान चरित्र का एक उज्जवल प्रकाश तो पा ही सकते हैं। कुछ नया लिखना हमेशा जरूरी भी नहीं ।
पुत्रेष्ठी यज्ञ में अग्नि द्वारा हवि के भाग को जब माता कौशल्या और माता कैकेयी के द्वारा माता सुमित्रा गृहण करती है। जिससे उनकी दो संतान लक्ष्मण और शत्रुघ्न होते हैं। कहा जाता है कि, तब ही उनके मन में ये विचार आता है कि , अपनी दोनों संतानों को इन माता और इनके पुत्रों की सेवा में अर्पित कर दूंगी और ऐसा हुआ भी । व्यथित भरत को दिलासा देने उस समय शत्रुघ्न के अलावा कौन था और लक्ष्मण का तो कहना ही क्या ... और खुद वे ... जब श्रीराम वन जाते है तो पुत्र विरह में माता कौशल्या तीन दिन तक जल भी ग्रहण नहीं करती तो उनके सामने तीसरे दिन दूध का कटोरा लेकर प्रार्थना कौन करती हैं ? जबकी वियोग में वे भी थी। पुत्र उनका भी वन गया था। लेकिन वे अपने मन को समझाती हैं और माता कौशल्या के सामने व्यथित नहीं होती । इसके उपरांत भी तरह तरह से उन्हें समझाती है कि भला राम को वन में कौन कष्ट दे सकता है। वाल्मीकि रामायण में इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है।
*आश्वासयन्ती विविधैश्च वाक्यैः*
*वाक्योपचारे कुशलाऽनवद्या।*
*रामस्य तां मातरमेवमुक्त्वा*
*देवी सुमित्रा विरराम रामा ॥ ३० ॥*
श्रीराम जी के वनवास में भी एक विलक्षणता है जहां भिन्न - भिन्न व्यक्ति उनके वन जाने का अलग - अलग कारण मानते हैं , कोई मंथरा कहता है तो कोई कैकयी । त्रषि वशिष्ठ जी ने इसे विधाता का नियम कहा । भारद्वाज जी ने सरस्वती को कारण बताया। जिन्होंने कैकेयी की मती फेरी । तुलसी बाबा ने कहा कि सरस्वती तो कठपुतली है । सूत्रधार तो स्वयं प्रभु राम जी ही है ।
*लेकिन इसी प्रश्न का उत्तर माता सुमित्रा क्या देती है ...?*
*तुम्हरेहिं भाग रामु बन जाहीं।*
*दूसर हेतु तात कछु नाहीं॥*
लक्ष्मण इसमें तुम्हारा ही सौभाग्य है । तुम्हारे ही कारण राम वन जा रहे हैं । दूसरा कोई कारण नहीं है । सभी जानते है कि लक्ष्मण जी शेषनाग का अवतार है, धरती उनके शीश पर है। और धरती पर पाप का भार इतना बढ़ गया है कि उसे संभालने के लिए ही राम वन जा रहे हैं ।
जहां माँ अपना पुत्र नारी को अर्पित करती है माता सुमित्रा ने उसे साक्षात् नारायण को ही अर्पित कर दिया । जब वनवास ने जाने के लिए लक्ष्मण सुमित्रा माँ से आज्ञा लेने जाते हैं । तो उनका संवाद मानस का सर्वश्रेष्ठ संवाद भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे सब सुनकर भी घबराती नहीं अपितु कहती हैं - बेटा! मैं तो तेरी धरोहर की माँ हूँ, केवल गर्भ धारण करने के लिये भगवान् ने मुझे माँ के लिये निमित्त बनाया है।
*"तात तुम्हारी मातु बैदेही,*
*पिता राम सब भाँति सनेही"*
*माता सुमित्रा ने असली माँ का दर्शन करा दिया।*
अयोध्या कहाँ हैं ? अयोध्या वहाँ है जहाँ रामजी हैं, और सुनो लखन !
*"जौं पै सीय राम बन जाहीं*
*अवध तुम्हार काज कछु नाहीं"*
अयोध्या में तुम्हारा कोई काम नहीं है, तुम्हारा जन्म ही श्रीराम की सेवा के लिये हुआ है । धन्य है ऐसी माँ जिनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम पड जाए 🙏🏻 ।
*तभी तो जब कालिदास रघुवंश लिखते हैं तो तीनों रानियों में सर्वप्रथम सुमित्रा जी को स्थान देते हैं ।*
*तमलभन्त पति पतिदेवताः शिखारिणामिव सागरमापगाः ॥* *मगधकोसलकेकयशासिनां दुहितरोऽहितरोपितमार्गणम् ॥ १७॥*
*अर्थात :-* शत्रुओं के ऊपर बाण का संधान करने वाले चक्रवर्ती महाराज दशरथ को मगधराज कन्या सुमित्रा, कोशलराज कन्या भगवती कौशल्या तथा कैकय राजकन्या कैकयी ने उसी प्रकार पति रूप में प्राप्त किया जिस प्रकार पर्वत प्रसूता नदियां समुद्र को प्राप्त कर कृतकृत्य हो जाती है।
माता सुमित्रा जी तेज की अकूत खान है । उनमें तेज का आधिक्य है । अतः उनके दोनों पुत्र तेजपुंज हुए । राम जब वनवास जाते हैं तो माता सुमित्रा के पास खुद ना जाते हुए लक्ष्मण को भेजते हैं , क्योंकि वे जानते हैं कि माता सुमित्रा अगर सत्य का पक्ष लेकर खड़ी हो गई तो उनकी बात टालने का साहस किसी में नहीं है ।
इसीलिए जैसे माता कौशल्या के पुत्र को कौशल्येय, कुंती पुत्र को कौंतेय और द्रौपदी पुत्र को द्रौपदेय कहा जाता है । ठीक उसी प्रकार सुमित्रा के पुत्र सौमित्रेय कहना चाहिए । लेकिन उन्हें *सौमित्रि* कहा जाता है। संस्कृत व्याकरण के सबसे बड़े रचयिता महर्षि पाणिनि कहते हैं कि सुमित्रा का व्यक्तित्व इतना ऊंचा है कि , उन्हें स्त्री कहने का साहस मुझमें नहीं । इसलिए उन्होंने स्त्री वाचक शब्द प्रयोग ही नहीं किया । राम को दाशरथि कहते हैं और लक्ष्मण को सौमित्रि! ऐसी है माता सुमित्रा ।
कृतवास रामायण में तो सुमित्रा का प्रभु राम के प्रति अटूट विश्वास का और भी सुंदर प्रसंग आया है। जब अयोध्या आने के पश्चात लक्ष्मण माता सुमित्रा जी से मिले तो घाव का चिन्ह देखकर उन्होंने श्रीराम से पूछा ये चिन्ह कैसा ? तो श्रीराम रो दिए और पूरी शक्ति लगने और संजीवनी वाली कथा सुनाई । सुनकर माता सुमित्रा ने हंसते हुए कहा कि इतने सब की क्या जरूरत । आप हाथ ही फेर देते उसी से ये ठीक हो जाता । कैसा अटूट विश्वास। वहीं कुंती के पास श्रीकृष्ण होते हुए भी वे कर्ण के पास अपने पुत्रों की रक्षा हेतु जाती है ।
*किसका विश्वास ज्यादा बड़ा ..?*
ठीक ऐसे ही जब लक्ष्मण के लिए हनुमान संजीवनी लेने जाते हैं तो अयोध्या में भरत और शत्रुघ्न से मिलते हैं। समाचार सुनकर माता सुमित्रा भी आती है । लेकिन देखिए इस अवसर पर भी अपने पुत्र वियोग में भी उनका कहना क्या है ?
*कपिसौं कहति सुभाय अँबके अंबक अँबु भरे हैं ।*
*रघुनन्दन बिनु बन्धु कुअवसर जधपि धनु दुसरे हैं ।*
श्रीराम बुरे समय पर भाई से बिछड़ गए । जबकि उनके पास धनु बाण हैं। जिसके होते उन्हें किसी और की सहायता की आवश्यकता ही नहीं । वे अपने आप को धन्य समझती है कि उनके एक पुत्र का जीवन और मृत्यु दोनों श्रीराम के काम आया और उसी समय दूसरे पुत्र को भी वहां जाने का आदेश देती हैं । ऐसे में भी अधीर नहीं होती।
*नतमस्तक हूँ मैं तेरे चरणों में, करूँ प्रणाम बारम्बार... 🙏🏻*
*धन्य है तू माता वो पुत्र जिनकी तू जामाता है ।*
*ऐसा है मेरा सत् सनातन् धर्म 🚩। और किसी धर्म अथवा समुदाय में कहीं नहीं। इसलिए हम सभी हिन्दू सनातनियों को गर्व होना चाहिए।*
*🙏🏻🚩जै राम जी की🚩🙏🏻*
*- "🐂गौसेवक🐂" पं. मदन मोहन रावत*
*"खोजी बाबा"*
*9897315266*
*🙏🏻🕉️🚩हर हर सनातन्🚩🕉️🙏🏻*
*🙏🏻🕉️🚩घर घर सनातन्🚩🕉️🙏🏻*