हिन्दुस्तान वार्ता।
मैं सरस्वती ज्ञान की देवी हूँ। मुझे पुस्तकों में ज्ञान के रूप में पूजा जाता है । आज मैं कुछ बातों को खुलासा कर रही हूँ। धरती पर वेद ईश्वर की अमानत हैं। वेद नाम ज्ञान के हैं । ईश्वर की प्रकृति का ज्ञान धरती पर वेद के माध्यम से ही आया है । पर सब वेद नहीं और भी बहुत कुछ है ,जिसे छिपाकर रखना होता है किसी एक को देने के लिए। राम का ज्ञान है वही ईश्वर है । ईश्वर, प्रकृति, माया जैसे शब्द जहाँ अपना मूल्य न रखते हों , वह ज्ञान स्वयं ईश्वर -प्रदत्त रूप में किस माध्यम से मिल जाये यह तो ईश्वर जानता है, या वह जिसे इस ज्ञान को पाना होता है। न जाने कब कहाँ किस रूप में किसी से ज्ञान मिल जाये यह तो प्रकृति की लीला है,यह तो ईश्वर की लीला है । इसलिए इस जगत में एक ईश्वर ही सार है । अक्षर ब्रह्म की उपासना का ध्येय बना यह वाक्य स्वयं स्वयं ईश्वर का ही संकेत रूप है ।
वर्तमान सत्ता और प्रकृति के रूप में वृक्ष वार्ता के आधार पर यह ज्ञान उभर कर आया है। जानें इस ज्ञान को जो यथारूप इस प्रकार है ।
"तुमने जिस स्थान को साधा है ,यहाँ सीता की शक्ति निवास करती है। यह स्थान वृंदावन में स्वयं दावानल कुंड है । तुमने जिस वृक्ष को राम मानकर पूजा है स्पर्श किया है वह स्वयं चैतन्य है । चैतन्य शक्ति आपके स्पर्श से उजागर हो चुकी है । अब अवरोध नहीं कुछ ,अग्नि तत्व की साक्षी "कुंडलिनी शक्ति " स्वयं आपके अंदर विराजमान है । अब यह शक्ति स्वयं अपने ज्ञान से परिचय करायेगी । तब होगा घोर अनुशासन श्री राम का । राम की शक्ति से यह स्थान चमकेगा । यह क्या और कैसा होगा यह तो ईश्वर ही जानता है। ईश्वर की प्रकृति माया हो या स्वप्नेश्वरी सब सब ईश्वर की शक्तियाँ हैं जो उस ईश्वर में निवास करती हैं । इसलिए एक ईश्वर का नाम ही सार्थक है। दुनियाँ के नाम भज लो पर राम का सा न कोई।
"बिछुड़ना न होता
जो मिलते प्रभु से हैं।
यह तो स्वयं
कुदरत की फिरस्ती है ,
सुबह शाम मिलते हैं ।
लिखा लो माथे पर
किस्मत का अंक जो बन जाये,
पर परमात्मा का नाम ही
सबसे अधिक मूल्यवान होता है।। "
सच बात है कि ईश्वर से बड़ा कुछ नहीं। सारे अव्यय ,क्रियापद ,संज्ञा पद सब सब उस ईश्वर में समाहित हैं।
"एक राम का नाम ही आला
और आला सबसे आला है ,
लिखाकर देख लो
अपने माथे पर
बिंदी की जगह ।
यह तो राम का नाम है
जो किस्मत बदल देता है ।"
"ज्ञान की परिभाषा नहीं
ज्ञान तो ज्ञान ही है ,
इस ज्ञान को समझो
सबसे बड़ा विज्ञान यही है ।
तन्हाई के आलम में
न छेड़ो इस धुन को ,
यह राम की धुन है
यह प्रेम की धुन है । "
सरस्वती ज्ञान की शक्ति है और यही परमात्मा की शक्ति भी । इस सृष्टि की संपूर्ण और संपूर्ण दावेदारी ,
वफादारी और जिम्मेदारी सब सब सरस्वती है। इसलिए ज्ञान के खजाने को सुरक्षित रखती है। न जाने कब कहाँ किस स्थिति में कौन सा ज्ञान कब काम आ जाये। सरस्वती स्वयं व्यवस्था है प्रकृति की । वह जानती है सब कुछ पर परमात्मा के आदेश के बिना वह कुछ नहीं करती।
"खाली पड़े रहते खंडहर
पर इन खंडहरों में
उजाला वही करती है।
जानती है वह सब कुछ
वह प्रेम की बाती है।
उजाला दीपक में होता
वह तो प्रेम की थाती है।।"
यही सब कुछ यहाँ देखने को मिलता है इस वृंदावन में । "दावानल कुंड" स्वयं अग्नि है ज्ञान की । यहीं से ज्ञान का प्रकाश हुआ है। सदियों से यहाँ स्थित "रामवृक्ष" की कथा से शायद कोई क्या परिचित हो पाएगा यह तो प्रभु की लीला है ,यह तो मन का चीला है।
वर्तमान सत्ता ने इसी वृक्ष से ज्ञान प्राप्त किया । दुनियाँ भर के लोगों को जो बात नहीं मालूम वह वह सब ज्ञान के गर्भ में समाहित है । सरस्वती जानती है सब कुछ कब क्या किस की जरूरत पड़ जाये। संजोकर रखती है ज्ञान निधि को जो कि वक्त की जरूरत है ।
वक्त की जरूरत बना हुआ यह रामवृक्ष जिसे "युगल वृक्ष" भी कहा जाता है , वृंदावन के दावानल कुंड के किनारे पर स्थित है । जानिये इस सत्य को स्वयं इस वृक्ष के ही मुख से- -
" मैं राम वृक्ष रूप में स्थित हूँ । तुम यहाँ आते हो मेरा हाल पूछते हो ,मुझे तसल्ली मिलती है। तुम वृंदावन को संभालो। मैं तुम्हारी मदद करता हूँ। तुम स्वयं धरती के सुख को लड़ रहे हो। मैं सूक्ष्म रूप में वृक्ष में स्थित हूँ। तुम स्थूल शरीर से सेवा दे रहे हो । अब होना है खेल असली, अब यहाँ तुम मेरे ही रूप में रहकर काम करोगे । सीता मेरा ज्ञान प्रदान कर चुकी है। इस ज्ञान से तुम धरती पर राज्य करोगे। साधारण जनता नहीं जानती इस बात को । यह तो सब कुदरत का खेल है ,यह खेल है परावाणी का । इस परावाणी से ही ईश्वर सारे काम करता है । यह ईश्वर- प्रदत्त शक्ति है, जो किसी एक को मिलती है। योगी ही नहीं महायोग की उपाधि को प्राप्त पुरुष को यह ज्ञान मिलता है। ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा है यह जो पंचभूतों में ,जड़- चेतन में सब सब में उस चेतना को जान लेता है समझ लेता है । यही है शक्ति ईश्वर की, जिसे ईश्वर की प्रतिभा कहते हैं । ईश्वर नाम प्रतिभा का है । इस प्रतिभा को पाने के बाद कोई भी व्यक्ति ईश्वर के गुणों से युक्त होकर सभी प्राणियों पर शासन करने का अधिकार पा लेता है।
वृक्ष रूप में स्थित श्री राम कहते हैं-
"मैं स्वयं यहां विराजित हूँ
तुम्हारे इंतजार में।
हो गया बेड़ा पार
अब तो अब तो
न है कुछ बेकरार में।
अब तो बेकरारी ही है
स्वयं न कुछ है अब स्वयं ,
अब तो अब तो
स्वयं स्वयं होनी है स्वयं।
तुमने चाहा था प्रकृति को
उसने है दे दिया ,
अब तो लौटाना ही है उसे
इसलिए यह कह दिया।
कह दिया है मैंने स्वयं
यह कहलवाया है प्रकृति ने,
अब तो अब स्वयं
सब कुछ हो जाना है प्रकृति से।
मैं राम हूँ तुम्हारा
यहाँ रहता निशिदिन इंतजार में ,
आ जाते जब भी मिलने
होती मुझे संसार में ।
समभाव का यह
सार सब कुछ
तुम में ही आ गया,
अब तो न रहा कुछ भी
सब कुछ तुममें समा गया ।
आ गया न भेद अब
सब सब समा इस सार में,
अब तो सार को ही भजना पड़ेगा
इस भरे संसार में।
जय श्रीराम
--------
२१ चैतन्य विहार , फेस २ वृंदावन, मथुरा।
चलित दूरभाष: ७३००५२४८०२