नर्मदा नदी के लाखों वर्ष पूर्व बदले प्रवाह मार्ग और बेलैंसिंग राॅक के गुरुत्व केन्द्र पर स्थिर होने सहित कई भू-वैज्ञानिक तथ्यों को विद्यार्थियों ने समझा।

 



-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विषय के विद्यार्थियों ने किया भू-वैज्ञानिक शैक्षणिक भ्रमण।

-ब्लैक बोर्ड में समझ न आने वाले कांसेप्ट्स को समझने भूविज्ञान में फील्ड वर्क अतिआवश्यक- डॉ. बी. एस. राठौर।

मदन साहू,जबलपुर।

शासकीय विज्ञान महाविद्यालय जबलपुर के भू-गर्भशास्त्र विभाग द्वारा रुसा वर्ल्ड बैंक परियोजना से आर्थिक सहायता प्रदत्त मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा गुणवत्ता उन्नयन कार्यक्रम के तहत् 14 मार्च, 2022 को एकदिवसीय भू-वैज्ञानिक शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन किया गया। इस भू-वैज्ञानिक शैक्षणिक भ्रमण के दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. बी. एस. राठौर के मार्गदर्शन और डॉ. ईश्वरलाल दांगी व डॉ. रोहिणी सिंह के सहयोग से विद्यार्थियों ने लमेटा पावर हाउस के समीप स्थित गार्नेट युक्त माइका शिस्ट,स्टेरोलाइट युक्त माइका शिस्ट व क्वार्ट्जाइट,घुघरा जलप्रपात स्थित महाकौशल ग्रुप व नवीन लमेटा संस्तर के मध्य उपस्थित कोणीय विषमविन्यास व  कांग्लोमेरेट,पाॅट होल्स वेदरिंग,लमेटाघाट रिवर बेड में क्लोराइट शिस्ट,माइका शिस्ट व लघु कोणीय वलन,अवनमनी वलन सहित अन्य कई वलनों के प्रकार,क्वार्ट्ज वेन्स इत्यादि का अध्ययन कर उनके भू-वैज्ञानिक तथ्यों को समझा। वहीं धुंआधार जलप्रपात में नर्मदा नदी का मेटाबेसाइट्स के इरोजन से लाखों वर्षों पूर्व पुरानी चैनल को छोड़कर वर्तमान में नए निर्मित चैनल में धुआंधार जलप्रपात बनाते हुए,  प्रवाहित होने को देखकर विद्यार्थी आश्चर्यचकित रह गए, बरसात के समय जब पानी नदी में अत्यधिक मात्रा में होता है, तो आज भी नर्मदा नदी का प्रवाह पूर्व चैनल से होकर जाता है और अल्प समय के लिए पानी से घिरे एक द्वीप की तरह संरचना का निर्माण करता है। धुंआधार जलप्रपात को अपने जल में हवा को मिश्रित कर लगभग 30 मीटर की ऊंचाई से धुंएं के रूप में गिरते हुए देखकर सभी का मन मोहित हो गए। इसके अलावा  जलप्रपात के सामने मेटाबेसाइट्स के इरोजन से निर्मित गाॅर्ज,एलीफेंट स्किन वेदरिंग, संगमरमर में उपस्थित सेकेराॅइडल टेक्सचर, महाकौशल बेल्ट में डिफोर्मेशन की विभिन्न अवस्थाओं से निर्मित संरचनाओं इत्यादि की महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की।इसी दौरान भेड़ाघाट स्थित पंचवटी में 23 मीटर  चौड़ाई की स्वर्गद्वारी डोलेरिटिक डाइक को देखकर विद्यार्थी दंग रह गए।डाइक में उपस्थित भ्रंश के तीन सेट के प्रभाव से वर्गाकार ब्लॉक में टूटने और उसमें स्फेराॅइडल वेदरिंग से गोल ब्लॉक के बनने की प्रक्रिया, संगमरमर में एंथोफिलाइट शिस्ट उपस्थित होने इत्यादि से भी अवगत हुए। वहीं मदन महल ग्रेनाइट में शारदा देवी मंदिर के निकट स्थित बैलेंसिंग रॉक को देखकर विद्यार्थी रोमांचित हुए, विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर रहे डॉ. बी.एस. राठौर द्वारा बताया गया कि बैलेंसिंग रॉक जैसी संरचना, ग्रेनाइट में उपस्थित म्यूरल संधि से पहले वर्गाकार ब्लॉक्स में टूटने तत्पश्चात उन ब्लॉक्स से प्याज के छिलके के समान परतें निकलने,जिसे एक्सफोलिएशन वेदरिंग कहा जा जाता है, के द्वारा निर्मित होती हैं। जिसकी अन्य कई संरचनाएं बैलेंसिंग रॉक के आस-पास भी देखीं जा सकती हैं। वहीं उन्होंने बैलेंसिंग रॉक के गुरुत्व केन्द्र के सिद्धांत पर आज भी स्थिर होने को भी समझाया।

 यहां बताते चलें कि इस भ्रमण से पूर्व विद्यार्थियों द्वारा जबलपुर स्थित बड़ा सिमला,पाटबाबा,छुई हिल व छोटा सिमला का भू-वैज्ञानिक फील्ड वर्क कर बड़ा सिमला व छुई हिल में डेक्कन फिलो के कारण आउटलायर का विकास,पाटबाबा में डायनासोर के अंडों के जीवाश्म और गोंडवाना क्ले में विभिन्न प्रकार के पादप जीवाश्मों का भी भू-वैज्ञानिक अध्ययन किया जा चुका हैं।

  इस भू-वैज्ञानिक शैक्षणिक भ्रमण में एमएससी अंतिम वर्ष के अभिलाषा अहिरवार, आयुषी पटेल, दीक्षित, गौतमी हरोडे, जितेश ननवानी, मदन साहू, मौलिक पाण्डे, नवनीत भालेकर, प्रचिती भट्ट, प्रज्ञा दुबे, पुष्पम चौकसे, रागिनी अहिरवार, संजय कुमार पटेल, श्रेया तिवारी, श्वेता, स्मिता कथेरिया और एमएससी पूर्वार्द्ध वर्ष से अनिकेत, आशुतोष चौरसिया, ख्याति सेठ, कुन्दन प्रजापति, प्रयास नामदेव, सिद्धार्थ खरे, सोनाली श्रीवास्तव, सूर्यांश अग्निहोत्री, विवेक कुमार युइके, आशीष नामदेव, प्रबल श्रीवास्तव, सुधीर कुमार, वैशाली कुमारी ने शामिल होकर जबलपुर के भू-विज्ञान के कई अनोखे तथ्यों को समझा। वहीं विद्यार्थियों ने इस भू-वैज्ञानिक शैक्षणिक भ्रमण को अति महत्वपूर्ण और बहुपयोगी बताते हुए इसके आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया है।