रमजान के महीने में 'सहरी'के लिए सबसे ज्‍यादा प्रचलित हैं 'खजला-फेनी।



                            'छाया-असलम सलीमी'

आगरा का मशहूर'खजला-फेनी' भी अब ऑनलाइन।

हिन्दुस्तान वार्ता। 

आगरा: खाने-पीने के मामले में प्रदेश के अन्‍य कई महानगरों  के समान ही आगरा की अपनी खासियत है। पूर्व और परंपराओं से जुडा कोई व्‍यंजन या पकवान हो तो बात ही कुछ और है। रमजान के पवित्र महीने में फेनी और खजला की जबरदस्‍त मांग रहती है ।हलवाई इन्‍हें उपलब्‍ध करवाने के लिये खास काउन्टरों का इंतजाम तक करते हैं। 

ताज सिटी में खजला और फेनी की सबसे ज्‍यादा खपत लोहामंडी, ढोलीखार,नाई की मंडी,तिलक बाजार,नईबस्‍ती,काला महल और गुदडी मंसूर खां जैसे घने बसे पुराने मौहल्‍लों में होती है। लेकिन इनमें भी कश्‍मीरी बाजार क्षेत्र की दूकानों की बात ही कुछ और है। इनमें भी 'देहली स्वीट हाउस' के तो कहने ही क्‍या।  

आगरा में खाने और व्‍यंजनों के लिये मशहूर दिल्‍ली परिपाटी(दिल्ली घराने) की भी एक दूकान है। आरिफ़ परवेज़ और यासिर अराफात इसके संचालक हैं। यह प्रतिष्‍ठान उनका पुष्‍तैनी है और 100 साल से ज्‍यादा समय इसको हो गया है।चार पूर्व पीढियों की परंपरा को बनाये रखने के लिये पूरी सजगता रखते हैं। इस्‍तेमाल किये जाने वाले मैदा,सूजी, रिफाइंड आदि की शुद्धता और उपयुक्‍त अनुपातों में इनका इस्‍तेमाल।इनके खजला और फेनी के स्‍वाद की परंपरा को बनाये रखने का मुख्‍य आधार है ।

डिमांड बढने के साथ ही ब्रिक्री का पैटर्न भी बदलना पडा है।ऑन लाइन आर्डर लेने की व्‍यवस्‍था शुरूकरदी है। काउन्टर पर क्‍यूआर कोड से ईपेमेंट किए जाने की व्‍यवस्‍था है। जबकि पूर्व में ग्राहकों के लिए भीडभाड वाले संकरे कश्‍मीरी बाजार से गुजर कर दूकान तक पहुंचना अनिवार्यता थी। हालांकि ज्‍यादातर बिक्री अब भी काउन्टर पर ही होती है किन्‍तु  ईपेमेंट,आनलाइन आर्डर और होमडिलीवरी की सुविधाजनक विकल्‍प भी उपलब्‍ध हो गया है।

आरिफ़ परवेज़ और यासिर अराफात बताते हैं कि खजले- फैनियो के लिए ऑनलाइन माध्‍यम का उपयोग उन्‍होंने काफी संकोच के साथ शुरू किया था। लेकिन अबलगता है कि उनका फैसला सही था। 

 पैकिजिंग का उच्‍चीकरण कर सील पैकिट के रूप में खजला -फैनी आगरा ही नहीं उनकी सहजरीच के किसी भी स्‍थान पर उपलब्ध है ।

खजला:

खजला हमेशा ही सबको स्‍वादिष्‍ट लगता है किन्‍तु रमजान के पवित्र महीने में शायद ही कोई ऐसा मुस्‍लिम परिवार हो जहां रोज ही इसकी मांग नहीं हो।दरगाहों पर लगने वाले मेलों और उर्सो के अवसरों पर इसकी मांग ज्‍यादा होती है।सामान्‍य तौर पर सहरी के लिए लेते हैं।  इसलिये कुछ स्‍थानों पर इसे  'मेले की मिठाई' के नाम से भी जाना जाताहै।खजला बनाने में खासकर सूजी,चीनी, घी ( रिफाइंड या देसी) , दूध और खोवा का उपयोग किया जाता है।

यूपी में प्राय: पांच प्रकार का खजला तैयार किया जाता है,जिनमें खोवा खजला, दूध खजला, सिंगल खजला, डबल खजला, नमकीन खजला मेलों के अवसर पर बनाया जाता है। इनमें से सिंगल खजला व नमकीन खजला की बिक्री सर्वाधिक मानी जाती है। ये एक माह तक रखे रहने के बावजूद भी खराब नहीं होते। सूजी या मैदा और घी से बनाये जाने के कारण यह धीरे-धीरे पचता है और व्रत के दौरान आपको भूख नहीं लगती है। खजला 100 से 240 रुपये प्रति किलो के भाव से मिलता है।

 फेनी:

फेनी भी रमजन के महीने में सबसे ज्‍यादा उपयोग की जाती है।सामान्‍य तौर पर इसका दूध के साथ ही सेवन किया जाता है। उत्‍तर भारत के शहरों में फेनी साल भर खायी जाती है, दूध के साथ सूखी मेवाओं का उपयोग कर इसेऔरअधिक स्‍वादिष्‍ट बना दिया जाता है। 

फेनी को बनने में केवल सूजी और घी से बनाया जाता है इसलिए यह धीरे-धीरे पचती है और रोजे के दिनों में सुबह के दौरान आपको भूख नहीं लगती है। सहरी के लिये इसका सेवन बहु प्रचलित है। अब तो सामान्‍य दाबतों और उत्‍सवों के व्‍यंजनों में भी फेनी की विशिष्‍ट पहचान है।

रिपोर्ट-राजीव सक्सेना।