जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी,तिन्हहि बिलोकत पातक भारीः आचार्य सुशील महाराज।

       

                   

                   


− लोहामंडी स्थित महाराजा अग्रसेन भवन में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में हुआ सुदामा चरित्र प्रसंग

− श्रीकृष्णःसुदामा की मित्रता सुन भावुक हुए श्रद्धालु, कथा व्यास ने दिया प्रेम से परिवार में जीने का सूत्र 

हिन्दुस्तान वार्ता। ब्यूरो

आगरा। भगवान कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज समाज में देखने को भी नहीं मिलती है। वो मित्र ही क्या जो मित्र के दुख में दुखी और सुख में सुखी न हो। सुदामा चरित्र का बखान करते हुए ये कहा अन्तर्राष्ट्रीय संत आचार्य सुशील महाराज ने। 

लोहामंडी स्थित महाराजा अग्रसेन भवन में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में सातवें दिन सुदामा चरित्र प्रसंग एवं फूलों की होली लीला हुए। जजमान विकास गुप्ता एवं पूनम गुप्ता थे। 

कथा व्यास आचार्य सुशील महाराज ने कहा मित्र कितना भी धनवान हो जाए, बचपन की मित्रता को नहीं भूलना चाहिए। सुदामा जी ने स्वयं ही भगवान के हिस्से के चने खाकर,भगवान के ऊपर आने वाले कष्ट को अपने ऊपर लिया था। यह बात भगवान श्रीकृष्ण को भलीभांति ज्ञात थी। इसलिए भगवान कृष्ण ने स्वयं केवट बनकर सुदामा जी को नदी से पार करा द्वारिका पहुंचाया। सुदामा चरित्र के बाद 24 गुरुओं का वर्णन करते हुए कहा कि शिक्षा जहां से भी मिले वहां से प्राप्त करनी चाहिए। दत्तात्रेय जी के प्रसंग से यह महाज्ञान प्राप्त होता है। इसके बाद महाराज जी ने व्यास पूजन और फूलों की होली का प्रसंग वर्णन कर भक्तों को मंत्रमुग्ध किया। आज ब्रज में होली मेरे रसिया….भजन पर भक्त जमकर झूमें। समापन पर कथा प्रेमियों से संकल्प लिया कि हमारे परिवार में, इष्ट मित्रों में आपसी कलह को आज समाप्त करें और प्रेम से जीना सीखें। ये संसार दुखालय है, यहां आपस में प्रेम रहेगा तभी सुख की अनुभूति हो सकती है। इस अवसर पर हिमांशु गुप्ता,पार्षद हेमंत प्रजापति, रिषभ गुप्ता, श्रेया, सुरभि,नीरज शिवहरे, अशोक गोला, संतोष अग्रवाल, अमित बंसल आदि उपस्थित रहे।