देश में दसवें पायदान पर ताज सिटी ! "गंदगी से गौरव तक का सफर"



हिन्दुस्तान वार्ता। ✍️ ब्रज खंडेलवाल

कभी देश के सबसे गंदे शहरों में शुमार आगरा ने आज एक ऐसा कमाल कर दिखाया है,जिस पर पूरा शहर फ़ख्र कर सकता है। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में आगरा ने दसवां स्थान हासिल करके यह साबित कर दिया है कि इरादे नेक हों तो तस्वीर बदलते देर नहीं लगती।

कुछ साल पहले तक आगरा की गिनती उन शहरों में होती थी जहाँ नालों से बदबू आती थी,गलियाँ कचरे से पटी रहती थीं और प्रशासन बेबस नज़र आता था। लेकिन स्मार्ट सिटी मिशन और स्वच्छ भारत अभियान के ज़रिये नगर निगम ने जो जमीनी काम किया है,वह काबिल-ए-तारीफ़ है।

साल 2017 में आगरा की रैंक 282 थी,यानि हाल बेहाल। लेकिन इसके बाद साल दर साल सुधार होता गया और अब शहर टॉप-10 में शामिल हो गया है। यह सफलता सिर्फ़ ऊपरी चमक नहीं है, बल्कि कूड़ा प्रबंधन,साफ़-सफाई, डिजिटल निगरानी और जनसहभागिता जैसे मोर्चों पर गंभीर प्रयासों का नतीजा है।

आज आगरा में 100 से अधिक कम्पैक्टर, 250+ कचरा संग्रहण वाहन, और लगभग 90 प्रतिशत घरों में डोर-टू-डोर कलेक्शन की सुविधा है। सफाई कर्मियों के लिए GPS सिस्टम, मैकेनाइज्ड रोड स्वीपिंग मशीनें और मोबाइल ऐप्स के ज़रिये निगरानी की व्यवस्था की गई है।

नगर निगम ने 600 से ज़्यादा सार्वजनिक शौचालयों को अपग्रेड किया है, जिनकी ऑनलाइन निगरानी होती है। बायो-मेथेनेशन प्लांट,कंपोस्ट यूनिट्स, और सूखा-गीला कचरा पृथक्करण जैसे आधुनिक उपाय लागू किए गए हैं।

बावजूद इसके,चुनौतियाँ अभी भी बाक़ी हैं। यमुना आज भी बदबूदार है, पिछली गलियाँ अभी भी उपेक्षित हैं और झुग्गी इलाकों में गंदगी आम है। 

सदर बाजार, फतेहाबाद रोड और ताजगंज जैसे इलाकों की तसवीर तो बदली है,लेकिन लोहमंडी, मंटोला और कच्छपुरा जैसे क्षेत्रों में हालात जस के तस हैं।

इस सफाई यात्रा की सबसे बड़ी रुकावट क्या है? जवाब है—राजनीतिक उदासीनता। हमारे जनप्रतिनिधियों की दिलचस्पी सफाई जैसे मुद्दों में नहीं के बराबर है। किसी भी बड़े पैमाने की जनचेतना मुहिम, जैसे इंदौर या सूरत में देखी गई,आगरा में देखने को नहीं मिलती।

डॉ.देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, "साफ़गोई से कहें तो यह शहर अफसरशाही के भरोसे चल रहा है, नेताओं के नहीं। नगर निगम, RWA, स्वयंसेवी संस्थाएं और कुछ जागरूक नागरिकों ने मिलकर जो काम किया है, वही आज रंग ला रहा है। पिछले दो वर्षों में 2,500 से अधिक जनजागरूकता कार्यक्रम, लाखों बायोडिग्रेडेबल बैग्स का वितरण और पुरस्कार योजनाएँ चलाई गईं। हकीकत यह है कि साफ़-सफ़ाई सिर्फ़ म्युनिसिपैलिटी का काम नहीं है, यह हम सबका साझा फर्ज़ है। लेकिन हमारे नेता अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं,या तो फ्लाईओवर बनवाने की बात करते हैं,या मूर्तियाँ लगाने की। जबकि असल ज़रूरत है एक जनांदोलन की जो लोगों को यह समझा सके कि सफाई सिर्फ़ सरकार की नहीं, हर इंसान की जिम्मेदारी है।"

रिवर कनेक्ट कैंपेन के चतुर्भुज तिवारी का मानना है, "ताजमहल जैसे विश्व धरोहर स्थल के लिए मशहूर आगरा शहर अंदरूनी तौर पर कई नागरिक समस्याओं से जूझ रहा है। शहर के विभिन्न हिस्सों में खुले में कचरा फेंकना आम बात है—चाहे वो झुग्गी-झोपड़ियों वाला इलाका हो या पुराना शहर। खाली प्लॉट, नालों के किनारे और सड़कें कूड़े के ढेर से पटे रहते हैं। अधिकतर स्थानों पर डस्टबिन या तो टूटे हुए हैं या कचरे से लबालब,जिससे गंदगी तेज़ी से फैलती है।"

आगरा प्रतिदिन लगभग 750 से 924 मीट्रिक टन ठोस कचरा उत्पन्न करता है, लेकिन कूड़े का पृथक्करण (segregation) बहुत कम होता है। बिना छांटा हुआ कचरा आवारा कुत्तों, गायों और बंदरों को आकर्षित करता है, जो हर दिन राहगीरों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं, कहती हैं सोशल एक्टिविस्ट पद्मिनी अय्यर।

नाला व्यवस्था भी बेहाल है—पुरानी सीवर लाइनों में प्लास्टिक और ठोस कचरे की वजह से अक्सर रुकावट आती है। बारिश के मौसम में नाले उफन पड़ते हैं और गंदा पानी गलियों व घरों में घुस जाता है। बदबूदार नालों के पास से गुजरना मुश्किल हो जाता है और इससे गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न होता है।

शहर की सड़कें जगह-जगह टूटी हुई हैं, गड्ढों से भरी हुई। गंदगी और जलभराव मिलकर शहर की छवि को बेहद खराब कर रहे हैं। आवारा पशु भी एक बड़ी समस्या हैं। शहर की सड़कों पर हज़ारों की संख्या में गायें, कुत्ते और बंदर घूमते हैं,कभी कूड़े में मुंह मारते हैं,तो कभी राहगीरों पर हमला करते हैं। कुत्तों के काटने और बंदरों की शरारतें आम हो गई हैं, लेकिन सरकारी कार्रवाई ऊंट के मुँह में जीरा साबित हो रही है।

"जहाँ साफ़-सफ़ाई नहीं, वहाँ तरक्की नहीं"—इस कहावत को अब अमल में लाने का वक़्त आ गया है। रोशनी की किरणें एक नए सवेरे का इंतजार कर रही हैं। इस बार की उपलब्धि में आगरा के बाशिंदों का भी बड़ा हाथ है। जागरूकता बढ़ी है, सोशल मीडिया पर मुहिमें चली हैं, स्कूलों में प्रतियोगिताएं हुई हैं, युवाओं ने आगे बढ़कर हिस्सेदारी निभाई है। ताजमहल जैसे आलमी विरासत स्थल को अगर हम गर्व से दुनिया के सामने पेश करते हैं, तो ज़िम्मेदारी बनती है कि शहर भी उसी शान से चमके।

यमुना आरती महंत पंडित जुगल किशोर के मुताबिक, "आगरा की यह उपलब्धि सिर्फ़ जश्न का मौक़ा नहीं, बल्कि आने वाले रास्ते की झलक है। टॉप 10 से अब टॉप 1 की ओर बढ़ना है। मगर यह तभी मुमकिन होगा जब हर नागरिक, हर नेता और हर मोहल्ला इस बात को समझे कि साफ़-सफ़ाई हमारी तहज़ीब का हिस्सा है,महज़ सरकारी योजना नहीं।

- लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरण विद हैं।